इंडिया न्यूज नई दिल्ली
Baisakhi 2022, Why Baisakhi is celebrated only on April 13, know what are the beliefs : भारत में कई धर्मो को मानने वाले लोग रहते है जहां सालभर अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं। इसी प्रकार हर साल 13 अप्रैल का दिन सिख धर्म के लोगों के लिए खास होता है।
इस दिन खेतों में रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है, किसान पकी हुई फसलों को देखकर खुश दिखाई देते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इसी खुशी में किसान यह त्योहार मनाते हैं।
बैसाखी का त्योहार मनाए जाने के कारण को लेकर कई अलग-अलग मान्यताएं भी हैं। ज्योतिषों की मानें तो इस दिन सूर्य मेष राशि मे प्रवेश करता है जिस कारण यह भी त्योहार मनाया जाता है।
ऐसा भी माना जाता है कि सन 1699 मे इसी दिन सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोबिन्द सिह जी ने सिखो को खालसा के रूप मे संगठित किया था। गुरु के आदेश पर सभी आनंद पुर साहेब मैदान मे एकत्रित हुए। यहां गुरु ने शिष्यो की परीक्षा ली।
ऐसा माना जाता है कि गुरु ने अपनी तलवार को कमान से निकाल कर कहा कि मुझे सिर चाहिए, गुरु के ऐसे वचन सुनते ही सारे भक्त आश्चर्य मे पढ़ गए।
लाहौर के रहने वाले दयाराम ने अपना सिर गुरु की शरण मे अपना सिर देने को कहा तो गुरु गोबिन्द सिंह जी उसे अपने साथ अंदर ले गए और उसी समय अंदर से रक्त की धारा प्रवाहित हुई।
वहा मौजूद सभी लोग इससे डर गए।
फिर दोबारा गुरू जी ने कहा की मुझे एक और सिर चाहिए। इस बार सहारनपुर के धर्मदास आगे आए। उन्हे भी गुरु अंदर ले गए और फिर खून की धारा बहती हुई दिखाई दी। इसी तरह से जगन्नाथ निवासी हिम्मत राय, द्वारका निवासी मोहक चंद, तथा बिदर निवासी साहिब चंद ने अपना सिर गुरु के शरण मे अर्पित किया।
सभी को लगा की इन पाचो लोगो की बली दी जा चुकी है। इसके बाद गुरु इन पाचो लोगो के साथ बाहर आए। गुरु ने वहा उपस्थित लोगो को बताया कि इन पाचो की जगह अंदर पशु की बली दी गर्इ्र है, मै इन लोगों की परीक्षा ले रहा था और ये सफल हुए।
गुरु ने इस प्रकार इन पाच लोगो को अपने पाच प्यादों का नाम दिया। इन्हे अमृत का रसपान कराया। इसी घटना के बाद से ही गुरु गोबिन्द राय, गुरु गोबिन्द स्ािंह कहलाए और सिखों के नाम के साथ भी सिह शब्द जुड़ गया और यह दिन भी खास हो गया।
इस त्योहार को लेकर एक दूसरी मान्यता महाभारत के पांडवो से जुड़ी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि जब अपने वनवास के समय पांडव पंजाब के कटराज ताल पहुचे, तो उन्हे प्यास लगी और युधिष्ठिर को छोड़कर चारो भाई जिस सरोवर के पास पहुचे, तो यक्ष ने पानी पीने से कर दिया।
मना करने के बाद भी पानी पीने से उन चारो की मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद जब वे वापस नहीं आए तो युधिष्ठिर उनकी तलाश मे निकल पड़े। जब युधिष्ठिर भी उस तालाब के पास पहुचकर पानी पीने लगे तो यक्ष ने युधिष्ठिर से कुछ प्रश्नो का उत्तर मांगा।
यक्ष प्रश्न करते गए और युधिष्टिर उत्तर देते गए और यक्ष प्रसन्न गए और कहा कि आपके भाइयो मे आप किसी एक को जीवित करवा सकते है। इस पर यीधिष्ठिर ने अपने भाई सहदेव को पुनर्जीवित करने की प्रर्थना की यक्ष ने आश्चर्य से पूछा, कि अपने सगे भाइयो को छोड़कर अपने सौतेले भाई को जीवित करने को क्यों कहा।
इस पर युधिष्ठिर ने कहा की, माता कुंती के दो पुत्र जीवित रहे, इससे अच्छा होगा की माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे। युधिष्ठिर की इस बात पर यक्ष बहुत प्रसन्न हुए और चारो भाइयो को जीवित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि तब से ही इस दिन पवित्र नदी के किनारे विशाल मेला लगता है, और जुलूस मे पाच प्यादे नंगे पाव सबसे आगे चलते है और बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है। Baisakhi 2022
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