India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Yudh: महाभारत काल के महाकवि युद्ध और पराक्रम के प्रतीक कई वीर योद्धाओं का जिक्र करते हैं। इनमें अर्जुन, कर्ण, भीष्म पितामह आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। हालांकि, इन सभी योद्धाओं से अधिक पराक्रमी एक ऐसा योद्धा भी था, जो अगर महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेता, तो युद्ध मात्र एक मिनट में समाप्त हो जाता। यह योद्धा था बर्बरीक, लेकिन श्री कृष्ण की एक लीला के कारण वह युद्ध में भाग नहीं ले पाया।
बर्बरीक, पांडव भीम के पौत्र थे और घटोत्कच और अहिलावती के पुत्र थे। उन्हें पराक्रम और युद्ध कौशल में अद्वितीय माना जाता था। बर्बरीक का विशेष संकल्प था कि वे हमेशा उस पक्ष की ओर से लड़ेंगे जो हार रहा होता था। शिव के अवतार माने जाने वाले बर्बरीक ने कठोर तपस्या करके तीन विशेष बाण प्राप्त किए थे, जिनकी शक्ति से वे एक ही बाण से पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। इन बाणों का विशेष गुण यह था कि लक्ष्य को भेदने के बाद ये बाण स्वतः वापस उनके तरकश में लौट आते थे, इसलिये बर्बरीक को कभी कोई हरा नहीं सकता था।
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जब बर्बरीक महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने के लिए आए, तो भगवान श्री कृष्ण ने उनका पराक्रम देखने का निश्चय किया। श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि वे एक वृक्ष के नीचे खड़े होकर एक बाण से वृक्ष के सारे पत्तों को भेदकर दिखाएं। बर्बरीक ने तुरंत तीर चलाया और वृक्ष के सभी पत्तों को भेद दिया। लेकिन भगवान कृष्ण ने चुपके से वृक्ष के एक पत्ते को अपने पैर के नीचे दबा लिया। जब बाण भगवान कृष्ण के पास आया, तो वह रुक गया।
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बर्बरीक ने भगवान कृष्ण से विनती की कि कृपया अपना पैर हटा दें ताकि बाण पत्तों को भेद सके। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीशदान मांग लिया। बर्बरीक ने अपने शीश को स्वेच्छा से दान कर दिया। श्री कृष्ण ने उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर उन्हें कलियुग में अपने नाम “खाटू श्याम” के रूप में पूजे जाने का वरदान दिया। आज राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर में देश-दुनिया से लोग बर्बरीक की पूजा और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।
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इस प्रकार, बर्बरीक की कहानी महाभारत के युद्ध के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण अध्याय प्रस्तुत करती है, जो भक्ति, समर्पण और अद्वितीय पराक्रम की मिसाल है।
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