India News (इंडिया न्यूज़), Reason Of Duryodhana Death: महाभारत का युद्ध, जो कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर लड़ा गया, आज भी इतिहास का सबसे घातक युद्ध माना जाता है। इस महायुद्ध में महज 18 दिनों के भीतर करोड़ों योद्धा मारे गए। महाभारत का यह महायुद्ध, जिसमें धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई हुई, भीम और दुर्योधन के बीच गदा युद्ध के साथ समाप्त हुआ। यह युद्ध एक ऐसी घटना थी जिसने इतिहास में न्याय और प्रतिशोध की पराकाष्ठा को दर्शाया।
महाभारत के युद्ध में भीम और दुर्योधन के गदा युद्ध का विशेष महत्व है। दुर्योधन की जांघ तोड़ने के पीछे भीम की प्रतिज्ञा थी, जो उन्होंने द्रोपदी के अपमान के बाद ली थी। जब द्रोपदी को चीरहरण के लिए दुशासन घसीटकर कौरव सभा में लाया था, तब दुर्योधन ने अपनी जांघ थपथपाते हुए द्रोपदी को अपनी जांघ पर बैठने का अपमानजनक प्रस्ताव दिया।
दुर्योधन की इस घिनौनी हरकत से क्रोधित होकर, भीम ने सबके सामने प्रतिज्ञा ली कि वह दुर्योधन की जांघ तोड़कर द्रोपदी के इस अपमान का बदला लेंगे। यह प्रतिज्ञा न केवल भीम के आत्म-सम्मान का प्रतीक थी, बल्कि यह दर्शाती थी कि अधर्म और अन्याय का अंत अवश्य होगा।
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जब महाभारत के अंतिम दिन भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध हुआ, तो यह लड़ाई निर्णायक थी। दुर्योधन की मां, माता गांधारी, अपने पुत्र के प्रति अत्यंत समर्पित थीं। उन्होंने अपनी आंखों की पट्टी खोलकर अपने सतीत्व की शक्ति से दुर्योधन के पूरे शरीर को वज्र के समान मजबूत बना दिया।
हालांकि, श्रीकृष्ण, जो धर्म के रक्षक थे, इस बात को जानते थे। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए एक योजना बनाई कि दुर्योधन का घमंड और अधर्म का अंत हो। श्रीकृष्ण ने नग्न अवस्था में माता गांधारी के सामने जा रहे दुर्योधन को यह कहते हुए रोक दिया कि यह अनुचित है। लज्जित होकर दुर्योधन ने अपनी जांघों को पत्तों से ढक लिया।
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माता गांधारी की दृष्टि से दुर्योधन का वह हिस्सा, जो पत्तों से ढका हुआ था, वज्र के प्रभाव से अछूता रह गया और कमजोर बना रहा।
गदा युद्ध के दौरान, दुर्योधन का पूरा शरीर इतना मजबूत था कि भीम के वार उस पर बेअसर हो रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने भीम को उनकी प्रतिज्ञा और दुर्योधन की कमजोर जांघों की ओर संकेत किया। श्रीकृष्ण के इस मार्गदर्शन पर अमल करते हुए, भीम ने अपनी गदा से दुर्योधन की जांघों पर प्रहार किया और उन्हें तोड़ डाला।
भीम का यह कृत्य महाभारत के युद्ध में धर्म की विजय और अधर्म के पतन का प्रतीक बना।
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महाभारत का यह प्रसंग हमें सिखाता है कि अन्याय और अधर्म का अंत निश्चित है। दुर्योधन के अहंकार और द्रोपदी के अपमान का बदला लेकर भीम ने यह सिद्ध किया कि प्रतिशोध भी तब सार्थक है जब वह धर्म की रक्षा के लिए किया जाए। यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि सच्चाई और न्याय की जीत हमेशा होती है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।
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