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आत्म उन्नति एवं अप्राप्ति के प्राप्ति की शक्ति को जगाता चंडी महायज्ञ

सुधांशु जी महाराज

जीवन में यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा जगाने, मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने, अप्राप्ति की प्राप्ति कराने एवं आत्म उन्नति के द्वार खोलने वाला ऋषियों का विशेष आध्यात्मिक विधान है। यज्ञीय प्रयोगों में जीवन को सुख-समृद्धि-सौभाग्य से भरकर मोक्ष प्राप्ति की दिशा को सुनिश्चित करने, आमूलचूल रूपांतरण की शक्ति निहित है। हमारे भारतीय ऋषियों ने अनन्तकाल से यज्ञ द्वारा पंचतत्वों के रूपांतरण से शक्तियों के जागरण के अनन्त सूत्र खोज रखे हैं, संत, साधक एवं गुरु उन्हीं का प्रयोग समय समय पर करके लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। वेद कहता है कि जो साधक यज्ञ में सहभागीदार बनता है, उसकी आयु, प्राण, दर्शन शक्ति, श्रवण शक्ति, वाक् शक्ति, मन तथा आत्मा, बलवान, समर्थ व प्रखर बनती है। याजक की वे रुग्णतायें भी मिटती हैं, जिनका कारण आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक है। प्रारब्धजन्य संकट के निराकरण, महामारी संबंधित रोगों का उपचार भी यज्ञों से होते हैं। चरक सूत्र कहता है यज्ञीय परम्परा के प्रयोग हेतु साकल्य, घृत मंत्र आदि में समाये रसायन महौषध से अकाल-मृत्यु योग तक कटते हैं-

रसायन तपो जाप योग सिद्धैर्महात्मभि:।
कालमृत्युरपि प्रौर्जीयते नालसै नरै:।।

यज्ञ संतान की चाहत रखने वाले को संतान पाने की शक्ति देता है। राजा दशरथ आदि इसके उदाहरण हैं। यज्ञानुष्ठान से पूर्वजन्म के भोग से उत्पन्न प्रारब्ध व दुख आदि मिटते हैं। प्रमाण है यज्ञ से आयु क्षीण हुए, जीवनी शक्ति नष्ट हुए तथा मृत्यु के समीप पहुंचे रोगी मृत्यु के मुख तक से वापस आते और 100 वर्ष जीवित रहने की शक्ति पाते हैं। यज्ञ जन्म ले चुकी और भविष्य में जन्म लेने वाली सन्तानों को रोगमुक्त रखने, समृद्धि-ऐश्वर्य से भरने की शक्ति देता है। इसीलिए हमारी यज्ञ परम्परा की अनन्तकाल पूर्व से आज तक महिमा है।

‘प्राणाश्चय मेऽपानश्च मेऽव्यानश्च मेऽसुश्च मे, चित्तं च मे आधीतं च मे वाक्च मे मनश्च मे चक्षुश्च मे श्रोत्रं च पे दक्षरच मे बलं च मे यज्ञेनकल्पताम।।

इन्हीं यज्ञीय श्रृंखलाओं में चण्डी महायज्ञ का भी महत्वपूर्ण स्थान है। चण्डीमहायज्ञ जीवन एवं समाज में दुर्गा शक्ति जागरण का महाप्रयोग है, इसमें भागीदार याजकों को अप्राप्त की प्राप्ति होती है। खोयी हुई सामर्थ्य, धन, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा, लक्ष्मी, कीर्ति आदि की इस यज्ञ से पुन: वापसी सम्भव बनती है, इसके अतिरिक्त आत्म उन्नति के साथ साथ अंदर की चाहतों को पूरी कराने में भी चण्डी यज्ञ महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुर्गा शप्तसती में वर्णन है कि माँ दुर्गा मनुष्यों के अभ्युदय काल से ही उनके घर में लक्ष्मी रूप में स्थित हो उन्नति प्रदान करने हेतु संकल्पित है, यहां लक्ष्मी का आशय धन-धान्य, प्रतिष्ठा, कीर्ति, यश, सम्पत्ति, अबाध जीवन आदि जो कुछ भी आवश्यक है, वह सब माँ दुर्गा अपनी कृपा से प्रदान करती हैं। वशर्ते उनके अनुकूल जीवन जीने का संकल्प जग सके। यह चंडी महायज्ञ दुर्गा शक्ति को प्रसन्न करने का अमोघ विधान है।

भवकाले नृणां सैव लक्ष्मीर्वृद्धिप्रदा गृहे।
सैवाभावे तथाऽलक्ष्मीर्विनाशायोपजायते।।

कहते हैं चंडी महायज्ञ से जीवन में ग्रहों की स्थिति अनुकूल होती है, शत्रुओं का नाश होता है। विशेष बात यह कि श्रीगणेशजी व दुर्गा शक्ति को समर्पित करके किया गया यह यज्ञ मानव जीवन धन्य कर देता है। इसमें ब्राह्मणत्व युक्त विद्वानों द्वारा विधिपूर्व 700 श्लोकों के अनन्त पाठ से साधकों पर देवी माँ की अपार कृपा वर्षा होने लगती है। सदियों से देवतागणों द्वारा जीवन व समाज की राक्षसी वृत्तियों के नाश के लिए चण्डीयज्ञ से ऊजार्वान होने का वर्णन मिलता है। इस यज्ञ से शत्रु पर विजय, मनोवांछित पद की प्राप्ति, व्यापार में वृद्धि, पारिवारिक कलह क्लेश से लेकर विभिन्न परेशानियों से मुक्ति एवं मनोकामनाएं पूर्ण की जा सकती हैं। चण्डी शक्ति जागरण से सुख-सौभाग्य के द्वारा खुलते हैं। मृत्यु की संभावनायें टलती हैं और लंबी उम्र मिलती है। मोक्ष पाने में मदद होती है। अभयता, प्राप्त होती है। वास्तव में देवी अपनी संतानों पर ये कृपायें तभी करती हैं, जब उन्हें अपना यज्ञ भाग प्राप्त हो जाता है अर्थात साधक द्वारा चण्डीयज्ञ में भागीदारी से उसमें एक प्रचण्ड ऊर्जा शक्ति का उदय होता है, यही जीवन में चण्डी शक्ति का जागरण है, जिससे सम्पूर्ण दुख दूर होते हैं तथा सुख-सौभाग्य के द्वारा खुलते हैं। दुर्गा शप्तशती का भी यही संकेत है-

यज्ञभागभुज: सर्वे चक्रुर्विनिहतारय:।
दैत्याश्च देव्या निहते शुम्भे देवरिपौ युधि।।
अर्थात देवी ने यज्ञ का भाग ग्रहण करने के बाद अपने चक्र से शुम्भ आदि दैत्यों का नाश किया। विद्वानों का मत है कि यदि शरदकाल में माँ भगवती की पूजा, आराधना, यज्ञादि किया जाता है, तो साधक के लिए सर्वश्रेष्ठ फलदायी होता है। दुर्गा शप्तशती का यह श्लोक कि-शरदकाल में माँ भगवती की पूजा, आराधना, गुणानुवाद श्रवण करने से व्यक्ति धन, समृद्धि से युक्त होता है।
शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।
तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वित:।।

तपोभूमि आनन्दधाम में दशकों से प्रतिवर्ष शरदकाल में पूज्य सद्गुरुदेव महाराजश्री अपने संरक्षण-संकल्प एवं मार्गदर्शन में अनेक परम्पराओं से यज्ञ संपन्न कराते हैं, जिससे वे अपने शिष्यों, भक्तों, याजकों, यजमानों का सुख-सौभाग्य, धन-वैभव, कीर्ति-यश से पूर्ण जीवन गढ़ सकें। इन यज्ञों से संबंधित विविध प्रयोगों से अब तक असंख्य याजकों ने अपने दु:ख को सुख में, जटिल प्रारब्ध को सुखद भविष्य के रूप में बदला और आत्मा, ईश्वर और पदार्थ संबंधी रहस्यमयी तत्वज्ञान की अनुभूतियां प्राप्त कीं। पूज्यवर इस वर्ष अपने शिष्यों को अधिक शक्तिशाली बनाने हेतु चण्डी यज्ञ की ऊर्जा से उन्हें जोड़ रहे है। समय विशेष की आवश्यकता देखते हुए गुरु संकल्पित इस चण्डी महायज्ञ के लिए याजक संकल्पित हों। आज देवशक्तियों की अनुकूलता, मनोविकारों से मुक्ति, पर्यावरण परिष्कार एवं प्रारब्ध से लेकर अनन्त जन्मों के कषाय-कल्मष मिटाने और सत्प्रवृत्तियां जगाने की कड़ी आवश्यकता है। आइये! सभी चण्डी महायज्ञ में सहभागीदार बने और जीवन को शक्ति से भरें।

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