India News (इंडिया न्यूज), Govardhan Parvat Curse Story: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस साल गोवर्धन पूजा आज मनाया जाएगा। गोवर्धन पूजा के दिन महिलाएं घर के बाहर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाती हैं और उसकी पूजा करती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि गोवर्धन पर्वत लगातार कम हो रहा है यानी इसकी ऊंचाई लगातार कम हो रही है। दरअसल पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को श्राप दिया था, जिसके कारण गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है।
पुलस्त्य ऋषि ने दिया था श्राप
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में तीर्थयात्रा करते हुए पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे। यहां गोवर्धन की सुंदरता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से प्रार्थना की कि आप मुझे अपना पुत्र गोवर्धन दे दीजिए। मैं उसे काशी में स्थापित करना चाहता हूं और वहीं रहकर उसकी पूजा करूंगा। यह सुनकर द्रोणाचल दुखी हो गए, लेकिन गोवर्धन पर्वत ने कहा कि मैं जाने को तैयार हूं लेकिन मेरी शर्त यह है कि आप मुझे जहां भी रखेंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। यह सुनकर पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन की बात मान ली। इसके बाद गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे? पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि मैं अपनी तपस्या के बल पर आपको अपनी हथेली पर उठाकर काशी ले जाऊंगा।
जब ऋषि वहां से जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें ब्रज मिला। यह देखकर गोवर्धन सोचने लगे कि भगवान कृष्ण अपने बचपन और किशोरावस्था में यहां आए होंगे और राधा के साथ कई लीलाएं की होंगी। वह सोचने लगे कि उन्हें यहां रहना चाहिए। ऐसे में पुलस्त्य ऋषि के हाथों में गोवर्धन भारी हो गया, जिसके कारण ऋषि को आराम करने की आवश्यकता महसूस हुई। ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में ही रख दिया और आराम करने लगे। दरअसल ऋषि गोवर्धन की शर्त भूल गए थे। कुछ देर बाद ऋषि फिर से पर्वत को उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता। मैंने आपसे वचन लिया था कि आप मुझे जहां भी रखेंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। यह सुनकर पुलस्त्य उन्हें वहां से ले जाने की जिद करने लगे लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिला।
गोवर्धन पर्वत लगातार घटता जा रहा है
इस पर ऋषि क्रोधित हो गए और श्राप दिया कि तुमने मेरी इच्छा पूरी नहीं होने दी। इसलिए आज से तुम धीरे-धीरे घटते रहोगे और एक दिन धरती में समा जाओगे। तब से गोवर्धन पर्वत धीरे-धीरे धरती में समाता जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि कलियुग के अंत तक यह पूरी तरह धरती में समा जाएगा।