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गिद्धों के लिए छोड़ दिए जातें हैं अपने ही प्रियजनों के शव, आखिर क्यों इस रिवाज को लेकर मची रहती हैं लड़ाई?

India News(इंडिया न्यूज), Parsi Funeral Rituals: पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार अनुष्ठान को ‘डखमा’ या ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ कहा जाता है, जो अन्य संस्कारों से काफी अलग और अद्वितीय होता है। इसमें मृतकों के शवों को गिद्धों के लिए छोड़ दिया जाता है। यह परंपरा पारसी धर्म की मान्यताओं और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जुड़ी हुई है। आइए जानते हैं इस रिवाज और इससे जुड़ी विवादों के बारे में:

रिवाज का महत्व

अशुद्धता की अवधारणा:

पारसी धर्म में माना जाता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है और उसे धरती, अग्नि, या जल को दूषित नहीं करना चाहिए।

इसलिए शव को जलाना, दफनाना या पानी में प्रवाहित करना पारसी मान्यताओं के खिलाफ है।

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पर्यावरण संरक्षण:

यह अनुष्ठान पारसी धर्म के पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों पर आधारित है।

शवों को गिद्धों के लिए छोड़ना एक प्राकृतिक पुनर्चक्रण प्रक्रिया है जो पृथ्वी को दूषित नहीं करती।

आध्यात्मिक मान्यताएं:

गिद्धों को पवित्र माना जाता है क्योंकि वे सूर्य के करीब उड़ते हैं और सूर्य को पारसी धर्म में एक उच्च स्थान प्राप्त है।

गिद्धों द्वारा शवों का सेवन करना आत्मा की मुक्ति और शुद्धिकरण की प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है।

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विवाद और चुनौतियां

गिद्धों की संख्या में कमी:

पिछले कुछ दशकों में गिद्धों की संख्या में भारी कमी आई है, जिससे शवों के नष्ट होने में समस्या हो रही है।

गिद्धों की कमी के कारण पारसी समुदाय को अपने रिवाज को निभाने में कठिनाई हो रही है।

आधुनिक समाज की संवेदनाएं:

कुछ लोग इस रिवाज को क्रूर और असंवेदनशील मानते हैं।

शहरीकरण और आधुनिकता के प्रभाव से पारसी समुदाय के युवाओं में इस रिवाज को लेकर असहमति बढ़ रही है।

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वैकल्पिक उपायों की खोज:

पारसी समुदाय के कुछ वर्ग वैकल्पिक उपायों जैसे शवों को सौर ऊर्जा से सुखाने (सोलर पैनल से) की प्रक्रिया को अपना रहे हैं।

कुछ लोग शवों को जलाने या दफनाने जैसे पारंपरिक तरीकों पर भी विचार कर रहे हैं।

निष्कर्ष

पारसी समुदाय का डखमा रिवाज उनके धार्मिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक मान्यताओं का प्रतिबिंब है। हालांकि गिद्धों की कमी और आधुनिक समाज की संवेदनाओं के कारण इस रिवाज को लेकर विवाद उत्पन्न हो रहे हैं, फिर भी यह रिवाज पारसी संस्कृति और धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है। समुदाय के भीतर और बाहर दोनों जगह इस परंपरा को समझने और सम्मान देने की आवश्यकता है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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