India News (इंडिया न्यूज), Rakshas Kirtimukh: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व है। प्रत्येक व्यक्ति अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना करता है ताकि उसके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे। वहीं, इसके विपरीत राक्षसों को प्रायः नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में एक ऐसा राक्षस भी है जिसे देवी-देवताओं के समान ही दर्जा दिया गया है? यही नहीं, यह भी माना जाता है कि यह राक्षस आपके परिवार को किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से बचाने की शक्ति रखता है। इस राक्षस का नाम है कीर्तिमुख।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव गहरे ध्यान में लीन थे। उसी समय राहु, जो अपनी शक्तियों के अहंकार में चूर था, ने महादेव के मस्तक पर स्थित चंद्रमा को ग्रहण लगा लिया। राहु की इस हरकत को देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। गुस्से में उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और अपने तेज से एक भयंकर आकृति उत्पन्न की, जिसे कीर्तिमुख कहा गया।
Rakshas Kirtimukh: ब्रह्मण का एकलौता ऐसा राक्षस जिसे देवताओं से भी ऊपर दिया गया है दर्जा
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भगवान शिव ने कीर्तिमुख को आदेश दिया कि वह राहु को निगल जाए। यह सुनते ही कीर्तिमुख राहु के पीछे दौड़ पड़ा। अपनी जान बचाने के लिए राहु भागा और अंत में शिवजी के चरणों में गिरकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगा। शिवजी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उसे क्षमा कर दिया।
अब समस्या यह थी कि कीर्तिमुख को आदेश तो मिल चुका था, लेकिन राहु को क्षमा कर दिया गया था। तब भूखा कीर्तिमुख भगवान शिव से बोला, “हे प्रभु! अब मैं किसे खाऊं?” शिवजी ने ध्यान में ही उत्तर दिया, “तुम स्वयं को ही खा लो।” महादेव की आज्ञा पाकर कीर्तिमुख ने खुद को ही खाना शुरू कर दिया। जब भगवान शिव ने अपनी आंखें खोलीं तो देखा कि कीर्तिमुख ने अपने शरीर को लगभग खा लिया है और केवल उसका मुख एवं दो हाथ शेष बचे हैं।
भगवान शिव कीर्तिमुख की इस भक्ति और आज्ञापालन से प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि जहां भी उसकी प्रतिमा स्थापित होगी, वहां किसी भी प्रकार की नकारात्मकता या अशुभ शक्तियां प्रवेश नहीं कर पाएंगी। इस प्रकार कीर्तिमुख का स्वरूप घर, मंदिरों और अन्य शुभ स्थानों के प्रवेश द्वारों पर अंकित किया जाने लगा, ताकि नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर रखा जा सके।
कीर्तिमुख का स्वरूप हमें यह सीख देता है कि अहंकार और नकारात्मकता को नष्ट करना ही वास्तविक शक्ति है। यह केवल एक राक्षस की कथा नहीं, बल्कि आत्मसंयम और विनम्रता की शिक्षा भी है। भगवान शिव ने कीर्तिमुख को न केवल सम्मान दिया, बल्कि उसे नकारात्मकता निवारण का प्रतीक भी बना दिया। यही कारण है कि आज भी कई मंदिरों के द्वार पर कीर्तिमुख की आकृति अंकित की जाती है।
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ कुछ विशेष राक्षसों की भी मान्यता होती है। कीर्तिमुख इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जिसे स्वयं भगवान शिव ने महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और गुरु आज्ञा का पालन करने से असंभव भी संभव हो सकता है। साथ ही, यह भी स्पष्ट होता है कि जो व्यक्ति नकारात्मकता को त्यागकर ईश्वर की शरण में आता है, उसे दिव्यता प्राप्त होती है।
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