India News (इंडिया न्यूज़), kanwar Yatra: सावन का महीना भगवान शिव की उपासना का विशेष समय होता है, और इस दौरान देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम में भक्तों का विशाल समागम होता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं, और कांवड़ यात्रा के माध्यम से गंगाजल लेकर बाबा धाम में जलाभिषेक करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ कांवड़ यात्रा करके बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके सात जन्मों के पाप मिट जाते हैं।
पटना सिटी से आने वाला एक विशेष कांवड़ जत्था, जो 54 फीट के कांवड़ के साथ बाबा धाम पहुँचता है, लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। इस जत्थे का नेतृत्व विशाल शिवधारी करते हैं, जो पिछले 16 वर्षों से लगातार इस विशाल कांवड़ के साथ यात्रा कर रहे हैं। यह जत्था सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा करता है और बाबा धाम पहुँचता है। इस कांवड़ का वजन लगभग 300 किलो होता है, और इसमें भगवान शिव के साथ देवी शक्ति, भगवान गणेश और बजरंगबली की मूर्तियाँ भी विराजमान होती हैं।
कांवड़ यात्रा में शामिल होने वाले भक्त मानते हैं कि इस विशाल कांवड़ को कंधा देने से उनके जीवन के सभी भय, कष्ट और रोग समाप्त हो जाते हैं। इस यात्रा में 500 से अधिक कांवड़िये शामिल होते हैं, जिनमें से 50 से अधिक महिलाएँ भी होती हैं। यह यात्रा न केवल भक्ति की प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव भी है, जो उन्हें भगवान शिव के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण को दर्शाने का अवसर देता है।
54 फीट का यह कांवड़ न केवल आकार में अद्वितीय है, बल्कि इसमें शामिल विभिन्न देवताओं की प्रतिमाएँ भी इसे खास बनाती हैं। यह कांवड़ बाबा बैद्यनाथ धाम में आने वाले हजारों भक्तों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र बनता है और यह यात्रा हर वर्ष एक विशेष उत्सव का रूप ले लेती है।
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सुल्तानगंज से देवघर की दूरी लगभग 105 किलोमीटर तक की हैं। इस पर्याप्त दूरी को पटना सिटी के कांवरिया संघ 54 फीट कांवड़ लिए मात्र 54 घंटे में तय करते हैं जोकि वाकई एक अजूबे से तो कम नहीं लेकिन फिर भी यही उनका संकल्प रहता है जिसे वह हर हाल में पूर्ण करके ही दम लेते हैं।
कांवड़ यात्रा का यह परंपरागत रूप भक्तों के दृढ़ संकल्प, अटूट विश्वास और भगवान शिव के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है। यह यात्रा न केवल भक्ति की पराकाष्ठा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का अद्वितीय उदाहरण भी है।
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