India News (इंडिया न्यूज), Bhimeshwar in Nepal: नेपाल के दोलखा ज़िले में स्थित भगवान भीमेश्वर का मंदिर हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां भीमेश्वर को व्यापार और कारोबार के देवता के रूप में पूजा जाता है। हाल ही में, भक्तों और पुजारियों का दावा है कि मंदिर में स्थापित भीमेश्वर की मूर्ति को पसीना आ रहा है, जो स्थानीय मान्यताओं के अनुसार किसी अनिष्ट या प्राकृतिक आपदा का संकेत हो सकता है।
भीमेश्वर का यह प्राचीन मंदिर राजधानी काठमांडू से लगभग 70 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर में हर साल हज़ारों श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने आते हैं। भक्तों का कहना है कि शनिवार से मूर्ति को पसीना आना शुरू हुआ है, जिससे मंदिर परिसर में चिंता का माहौल बन गया है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब भी इस मूर्ति से पसीना आता है, तो वह किसी बड़े संकट या प्राकृतिक आपदा का पूर्वाभास होता है।
क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी- शांत कृष्ण श्रेष्ठ
मंदिर के मुख्य पुजारी, शांत कृष्ण श्रेष्ठ, का कहना है कि इतिहास में कई बार मूर्ति से पसीना निकलने के बाद भयानक घटनाएं घटित हुई हैं। उन्होंने बताया कि 2001 में जब नेपाल के राजपरिवार की सामूहिक हत्या हुई थी, तब भी मूर्ति से पसीना आया था। उस घटना में महाराज वीरेंद्र, महारानी ऐश्वर्या, और राजपरिवार के नौ सदस्यों की हत्या राजकुमार दीपेंद्र द्वारा की गई थी। पुजारी श्रेष्ठ के अनुसार, 1934 में आए भीषण भूकंप से पहले भी मूर्ति से पसीना निकलने की घटनाएं दर्ज हैं।
इन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, मुख्य पुजारी ने अनिष्ट शांति के लिए विशेष पूजा आयोजन की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनका कहना है, “मुझे मूर्ति से बहुत पसीना निकलता हुआ दिखाई दिया, हमें किसी अनिष्ट को टालने के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए।”
स्थानीय लोगो की बढ़ी चिंता
स्थानीय लोग भी इस घटना को लेकर चिंतित हैं, खासकर इसलिए क्योंकि हाल ही के वर्षों में नेपाल में कई राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल भी देखी गई हैं। पिछले साल भी मूर्ति से पसीना निकलने की बात सामने आई थी, जिसके बाद नेपाल में बड़े पैमाने पर राजशाही के खिलाफ प्रदर्शन हुए और राजा के अधिकारों को छीन लिया गया।
हालांकि, कुछ लोग इस घटना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मानना है कि मंदिर के बाहर की ठंडी हवा और अंदर की गर्मी के कारण वाष्प की बूंदें मूर्ति पर जमा हो जाती हैं, जिसे लोग मूर्ति का पसीना समझ लेते हैं।
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