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Devuthani Ekadashi 2021 : तुलसी विवाह आज

ज्योतिषी प दीप लाल जयपुरी
Devuthani Ekadashi 2021 हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप और माता तुलसी का विवाह किया जाता है। इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महीने बाद योगनिद्रा से जागते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीहरि योग निद्रा से जागने के बाद सर्वप्रथम हरिवल्लभा यानी माता तुलसी की पुकार सुनते हैं। तुलसी विवाह के साथ ही विवाह के शुभ मुहूर्त भी शुरू हो जाते हैं। इस बार देव प्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह पर्व कहीं 14 तो कुछ जगहों पर 15 नवंबर को मनाया जा रहा है। यानी दोनों दिन एकादशी तिथि रहेगी।

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में तीर्थ स्नान कर के शंख और घंटा बजाकर मंत्र बोलते हुए भगवान विष्णु को जगाते हैं। फिर उनकी पूजा करते हैं। शाम को गोधूलि वेला यानी सूर्यास्त के वक्त भगवान शालग्राम और तुलसी का विवाह करवाया जाता है। साथ ही घरों और मंदिरों में दीपदान किया जाता है।
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में तीर्थ स्नान कर के शंख और घंटा बजाकर मंत्र बोलते हुए भगवान विष्णु को जगाते हैं। फिर उनकी पूजा करते हैं। शाम को गोधूलि वेला यानी सूर्यास्त के वक्त भगवान शालग्राम और तुलसी का विवाह करवाया जाता है। साथ ही घरों और मंदिरों में दीपदान किया जाता है।

जानिए तुलसी विवाह की महिमा (Devuthani Ekadashi 2021)

प दीप लाल जयपुरी ने कहा कि देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। इस दिन से शुभ-मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विधि-विधान के साथ तुलसी विवाह कराने वालों पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा रहती है। मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान शालीग्राम और माता तुलसी का विवाह कराने से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है। महिलाएं सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत-पूजन करती हैं।

तुलसी विवाह-एकादशी व्रत 2021 शुभ मुहूर्त (Devuthani Ekadashi 2021)

एकादशी तिथि 14 नवंबर रविवार को प्रात: 5: 47 से शुरू होकर 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी और बाद में द्वादशी तिथि आरंभ होगी।
देवउठनी एकादशी व्रत एवं तुलसी विवाह 15 नवंबर 2021, सोमवार को किया जाएगा। द्वादशी तिथि 16 नवंबर, मंगलवार को सुबह 08 बजकर 01 मिनट तक रहेगी।

तुलसी विवाह-एकादशी व्रत पूजा विधि (Devuthani Ekadashi 2021)

* एकादशी के पूर्व संध्या को व्रती को सिर्फ सात्विक भोजन करना चाहिए।
* एकादशी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें और व्रत संकल्प लें।
* अब भगवान विष्णु के सामने दीप-धूप जलाएं। फिर उन्हें फल, फूल और भोग अर्पित करें।
मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी जरुरी अर्पित करनी चाहिए।
* इसके बाद भगवान विष्णु की आराधना करें।
* शाम को विष्णु जी की आराधना करते हुए विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें।

(Devuthani Ekadashi 2021)

* एकादशी के दिन व्रत के दौरान अन्न का सेवन नहीं किया जाता।
* एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित है।
* एकादशी का व्रत खोलने के बाद ब्राहम्णों को दान-दक्षिणा अवश्य ही दें।
* कार्तिक मास में तुलसी महारानी की महिमा
ब्रह्मा जी कहे हैं कि कार्तिक मास में जो भक्त प्रात: काल स्नान करके पवित्र हो कोमल तुलसी दल से भगवान दामोदर की पूजा करते हैं, वह निश्चय ही मोक्ष पाते हैं।
पूर्वकाल में भक्त विष्णुदास भक्तिपूर्वक तुलसी पूजन से शीघ्र ही भगवान् के धाम को चला गया और राजा चोल उसकी तुलना में गौण हो गए।

(Devuthani Ekadashi 2021)

तुलसी से भगवान की पूजा, पाप का नाश और पुण्य की वृद्धि करने वाली है। अपनी लगाई हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्रयुगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित रहता है।
यदि कोई तुलसी संयुक्त जल में स्नान करता है तो वह पापमुक्त हो आनन्द का अनुभव करता है। जिसके घर में तुलसी का पौधा विद्यमान है, उसका घर तीर्थ के समान है, वहाँ यमराज के दूत नहीं जाते।
जो मनुष्य तुलसी काष्ठ संयुक्त गंध धारण करता है, क्रियामाण पाप उसके शरीर का स्पर्श नहीं करते। जहाँ तुलसी वन की छाया हो वहीं पर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके कान में, मुख में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज दृष्टि नहीं डालते।

तुलसी महारानी की कथा (Devuthani Ekadashi 2021)

प्राचीन काल में हरिमेधा और सुमेधा नामक दो ब्राह्मण थे। वह जाते-जाते किसी दुर्गम वन में परिश्रम से व्याकुल हो गए, वहां उन्होंने एक स्थान पर तुलसी दल देखा। सुमेधा ने तुलसी का महान् वन देखकर उसकी परिक्रमा की और भक्ति पूर्वक प्रणाम किया। यह देख हरिमेधा ने पूछा कि ह्यतुमने अन्य सभी देवताओं व तीर्थ-व्रतों के रहते तुलसी वन को प्रणाम क्यों किया तो सुमेधा ने बताया कि ह्यप्राचीन काल में जब दुवार्सा के शाप से इन्द्र का ऐश्वर्य छिन गया तब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया तो धनवंतरि रूप भगवान् श्री हरि और दिव्य औषधियाँ प्रकट हुईं।
उन दिव्य औषधियों में मण्डलाकार तुलसी उत्पन्न हुई, जिसे ब्रह्मा आदि देवताओं ने श्री हरि को समर्पित किया और भगवान ने उसे ग्रहण कर लिया।

(Devuthani Ekadashi 2021)

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Mukta

Sub-Editor at India News, 7 years work experience in punjab kesari as a sub editor, I love my work and like to work honestly

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