धर्म

दिल्ली यूनिवर्सिटी से हाईली एड्युकेटिड हैं ये महिला नागा साधु, एक ने तो कर भी ली थी इंजीनियरिंग

India News (इंडिया न्यूज), Educated Mahila Naga Sadhu: महिला नागा साधु के बारे में जानकर यह स्पष्ट होता है कि यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें एक नया आयाम भी जुड़ रहा है, जहां शिक्षा और समाज सेवा से जुड़ी महिलाएं भी इस पवित्र पथ पर चल रही हैं। आजकल महिला नागा साधु सिर्फ धार्मिक जीवन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में शिक्षा, चिकित्सा, और समाज सेवा के क्षेत्र में भी काम कर रही हैं।

दिव्या गिरी: नागा महिला साधु की प्रेरणा

दिव्या गिरी, जो कि पहले अरुणिमा सिंह के नाम से जानी जाती थीं, महिला नागा साधु आंदोलन की एक प्रमुख नेता हैं। उन्होंने 2004 में आधिकारिक रूप से साधु बनने के बाद अपना नाम दिव्या गिरी रखा। इससे पहले, उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजीन, नई दिल्ली से मेडिकल टैक्नीशियन की पढ़ाई पूरी की थी। उनका उदाहरण यह दिखाता है कि शिक्षा और धर्म दोनों को साथ लेकर भी आध्यात्मिक जीवन जीने की दिशा संभव है। 2013 में इलाहाबाद कुंभ में जब वह चर्चा में आईं, तो यह समाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि तब तक नागा साधु समाज में महिलाओं की उपस्थिति न के बराबर थी।

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महिला नागा साधु की बढ़ती संख्या और शिक्षा

महिला नागा साधु के अखाड़े में अब कई उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाएं शामिल हो रही हैं, जो पारंपरिक साधु जीवन को आधुनिक शिक्षा और पेशेवर कार्यों से जोड़ रही हैं। निकोले जैकिस, जो कि पहले फिल्म निर्माण से जुड़ी थीं, 2001 में साधु बनीं और अब वह कुछ महिला साधुओं के लिए संपर्क अधिकारी के रूप में कार्य करती हैं। उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि साधु जीवन में आने से पहले भी महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही होती हैं और साधु बनने के बाद भी वे समाज सेवा की दिशा में कार्यरत रहती हैं।

कोरिने लियरे, जो कि एक फ्रांसीसी महिला हैं और आईआईटी ग्रेजुएट भी रही हैं, उनका उदाहरण भी यह दिखाता है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल करियर बनाना नहीं, बल्कि आत्म-खोज और आध्यात्मिक उन्नति के साथ समाज के प्रति योगदान देना भी हो सकता है।

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जूना संन्यासिन अखाड़ा: एक नई दिशा

जूना संन्यासिन अखाड़े में तीन चौथाई महिलाएं नेपाल से आई हुई हैं और इनमें से कई उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं को समाज द्वारा पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी जाती, और ऐसे में ये महिलाएं अपने घर लौटने के बजाय साधु बन जाती हैं। यह एक प्रकार से उनकी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, जहां वे सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर अपने जीवन को नई दिशा दे रही हैं।

महिला नागा साधु की संख्या बढ़ रही है और यह समाज में एक नई सोच को जन्म दे रहा है। यह न केवल धार्मिक जीवन की एक नई दिशा है, बल्कि यह दर्शाता है कि आध्यात्मिकता और शिक्षा साथ-साथ चल सकती हैं। इन महिलाओं के उदाहरण यह साबित करते हैं कि न केवल वे धार्मिक जीवन जी रही हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए वे शिक्षा, चिकित्सा, फिल्म निर्माण, और समाज सेवा के क्षेत्रों में भी योगदान दे रही हैं।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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