India News (इंडिया न्यूज), Kazi Nazrul Islam: भक्ति, प्रेम और विद्रोह—इन तीन शब्दों की जब भी बात होती है, काज़ी नज़रुल इस्लाम का नाम सबसे पहले सामने आता है। बांग्ला साहित्य के इस महान कवि, संगीत सम्राट और दार्शनिक की लेखनी ने इन तीनों धाराओं को एक अद्वितीय संगम में बदल दिया था।
काज़ी नज़रुल इस्लाम को बांग्ला साहित्य का एक अत्यंत प्रभावशाली कवि माना जाता है। उन्होंने कविता, संगीत, उपन्यास और कहानियों के माध्यम से समानता, न्याय, साम्राज्यवाद-विरोध, मानवता और धार्मिक भक्ति का समागम प्रस्तुत किया। उनके लेखन में विद्रोह की गूंज भी स्पष्ट रूप से सुनाई देती है। विशेषकर, उन्होंने भगवान कृष्ण पर कई रचनाएं कीं, जिनमें से ‘अगर तुम राधा होते श्याम, मेरी तरह बस आठों पहर तुम, रटते श्याम का नाम’ उनकी कृष्ण भक्ति को दर्शाती है।
काज़ी नज़रुल इस्लाम भारतीय उपमहाद्वीप की पहली ऐसी हस्ती थे, जिन्हें किसी अन्य देश ने अपने देश ले जाने की इच्छा जताई थी। बांग्लादेश के गठन के एक साल बाद, 1972 में, बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान ने भारत से आग्रह किया कि काज़ी नज़रुल इस्लाम को बांग्लादेश लाया जाए। भारत ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और यह तय हुआ कि नज़रुल इस्लाम का जन्मदिन बांग्लादेश में मनाया जाएगा और फिर उन्हें वापस कोलकाता भेजा जाएगा। हालांकि, यह योजना पूरी न हो सकी, और काज़ी नज़रुल इस्लाम बांग्लादेश से लौटकर भारत नहीं आ सके।
24 मई 1899 को पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में एक मुस्लिम परिवार में जन्मे काज़ी नज़रुल इस्लाम का साहित्य से जुड़ाव बचपन से ही था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा धार्मिक दृष्टिकोण से प्राप्त की, लेकिन कभी मजहबी संकीर्णताओं में जकड़े नहीं रहे। नज़रुल इस्लाम ने लगभग 3,000 गानों की रचना की और इनमें से अधिकांश गानों को उन्होंने स्वयं गाया भी। ये गाने ‘नज़रुल संगीत’ या ‘नज़रुल गीति’ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
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नज़रुल इस्लाम ने न केवल कविता और संगीत में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया, बल्कि नाटकों और उपन्यासों के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी। उनके प्रसिद्ध नाटकों में ‘शकुनी का वध’, ‘युधिष्ठिर का गीत’, और ‘दाता कर्ण’ शामिल हैं। 1917 में भारतीय सेना में शामिल होने के बाद, उन्होंने 1920 में सेना से इस्तीफा दे दिया और कोलकाता में बस गए। उनका पहला उपन्यास ‘बंधन-हरा’ 1920 में प्रकाशित हुआ और 1922 में ‘बिद्रोही’ के प्रकाशन ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई।
काज़ी नज़रुल इस्लाम का काम केवल इस्लामी भक्ति गीतों तक सीमित नहीं था। उन्होंने हिंदू भक्ति गीतों की भी रचना की, जिनमें आगमनी, भजन, श्यामा संगीत और कीर्तन शामिल हैं। उन्होंने 500 से अधिक हिंदू भक्ति गीत लिखे, जिससे मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से ने उन्हें आलोचनात्मक दृष्टि से देखा और ‘काफिर’ करार दिया।
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काज़ी नज़रुल इस्लाम ने 29 अगस्त 1976 को इस दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी भक्ति, प्रेम और विद्रोह की अमर धारा के रूप में जीवित हैं।
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