India News(इंडिया न्यूज), Draupadi & Mahabharat: महाभारत के अंत में, जब पांडव और द्रौपदी हिमालय की यात्रा पर निकलते हैं, तो द्रौपदी और बाकी पांडव एक-एक करके गिरते जाते हैं। यह घटना महाभारत के स्वर्गारोहण पर्व में वर्णित है। इस यात्रा के दौरान युधिष्ठिर के पूछने पर, द्रौपदी के गिरने का कारण बताते हुए कहा जाता है कि उन्हें नरक का अनुभव इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कुछ गलतियाँ की थीं। मुख्य कारण जो बताया गया है वह यह है:
पक्षपात: द्रौपदी ने पांचों पतियों में से अर्जुन को अधिक प्रेम और महत्व दिया। इस पक्षपात को उनके पाप के रूप में देखा गया, और इसी कारण से उन्हें नरक का अनुभव करना पड़ा।
साथ ही इसका सबसे बड़ा कारण था कर्ण का उपहास। जी हाँ…! महाभारत युद्ध के बाद प्रत्येक पांडव को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी लेकिन उन्ही की पत्नी द्रौपदी को नहीं। ये देखकर स्वर्ग पहुंचे युधिष्ठिर को बहुत पीड़ा हुई थी जिसके चलते उन्होंने धर्मराज यानि यमराज से दुखी मन के साथ एक सवाल किया कि, ”द्रौपदी के साथ ऐसा क्यों हो रहा हैं उसके साथ पाप हुआ था उसने किसी के साथ पाप किया नहीं?
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जिसपर धर्मराज जवाब देते हुए युधिष्ठिर को समझाते हैं नर्क में आये लोगो को अपने पापो की सजा भोगनी ही पड़ती हैं ठीक वैसे ही द्रौपदी ने भी पाप किया था। यमराज के मुताबिक द्रौपदी ने युधिष्ठिर के अलावा धरराष्ट्र का भी उपहास किया था। इस बात का उल्लेख करते हुए धर्मराज ने बताया ये वाकया तब हुआ था जब इंद्रप्रस्थ में मेहमान बनकर आया दुर्योधन गलती से तालाब में गिर पड़ा था। तब पांचाली उसे देखकर खिलखिला पड़ी थी और तंज के साथ बोली ‘अंधे का पुत्र अँधा’
जिसके बाद धर्मराज ने द्रौपदी का एक और गुनाह गिनवाते हुए बताया, पांचाली ने स्वयंवर में पहुंचे दानवीर कर्ण सूत-पुत्र कहकर भरी सभा में उनका अपमान कर उन्हें ठुकरा दिया था जिसके बाद आज वह उसी अग्नि में जल रही हैं जिसमे कभी कर्ण भरी सभा में लज्जित होकर जला था।
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द्रौपदी को उनके कर्मों के अनुसार नरक का अनुभव करना पड़ा। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें कैसी सजा मिली, लेकिन महाभारत के अनुसार, युधिष्ठिर को स्वर्ग में पहले से कुछ समय के लिए नरक में रखा गया था ताकि वे अपने भाइयों और द्रौपदी को उनके कर्मों के फलस्वरूप मिली सजा को देख सकें। यह नरक का अनुभव अस्थायी था, और अंततः सभी पांडव और द्रौपदी स्वर्ग में स्थान पाए।
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यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि महाभारत के इन आख्यानों का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है। ये कथाएँ हमें जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक पाठ सिखाती हैं और यह दर्शाती हैं कि हमारे कर्मों का प्रभाव होता है, चाहे वह किसी भी प्रकार का हो।
इस प्रकार, महाभारत के अनुसार, द्रौपदी को उनके जीवन में किए गए कर्मों के आधार पर नरक का अनुभव करना पड़ा, लेकिन अंततः वे भी स्वर्ग में पहुँच गईं।
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