धर्म

महाभारत में द्रौपदी ने की थी इतनी बड़ी गलतियां…जिसका परिणाम था महाभारत युद्ध!

India News (इंडिया न्यूज़), Draupadi’s Biggest Mistakes In Mahabharat: महाभारत, भारतीय महाकाव्य, में कई महत्वपूर्ण पात्र हैं जिन्होंने इसके घटनाक्रम को आकार दिया। इनमें से एक प्रमुख पात्र द्रोपदी हैं, जिनकी भूमिका महाभारत की कथा में अत्यंत महत्वपूर्ण है। द्रोपदी, पांचों पांडवों की पत्नी होने के साथ-साथ एक स्वाभिमानी और धर्मपरायण महिला थीं। उनके चरित्र और उनकी प्रतिशोध की कथा ने महाभारत के युद्ध की नींव रखी। आइए, द्रोपदी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझते हैं और उनके कार्यों के परिणामस्वरूप हुए महाभारत के युद्ध को देखते हैं।

कर्ण का अपमान

द्रोपदी ने दानवीर कर्ण को पसंद किया था, लेकिन उसकी सुतपुत्र स्थिति के कारण उसने कर्ण के प्रति अपनी भावनाओं को बदल दिया। स्वयंवर के दौरान, द्रोपदी ने कर्ण को प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति नहीं दी और उसे अपमानित भी किया। यह अपमान कर्ण के मन में गहरे जख्म का कारण बना और उसने जीवन भर दुर्योधन के साथ दोस्ती निभाई। युद्ध के दौरान, कर्ण ने अपनी निष्ठा और वफादारी के चलते दुर्योधन का साथ दिया और वीरगति को प्राप्त हुआ।

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पांच पतियों की पत्नी द्रोपदी

द्रोपदी की कहानी की एक महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब उसने स्वयंवर के शर्तों के अनुसार अर्जुन को अपना पति चुना। लेकिन परिस्थितियों ने ऐसा मोड़ लिया कि द्रोपदी को पांचों पांडवों की पत्नी बनना पड़ा। द्रौपदी ने माता कुंति और महर्षि वेद व्यास की सलाह पर पांचों पांडवों को अपना पति स्वीकार किया। यह निर्णय उनके जीवन की दिशा को बदलने वाला था और महाभारत के युद्ध के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर रहा था।

दुर्योधन का अपमान

इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय, द्रोपदी ने दुर्योधन को एक मायावी कुंड में गिरकर अंधे का पुत्र अंधा कहकर अपमानित किया। यह अपमान दुर्योधन ने भरी राजसभा में द्रोपदी को निर्वस्त्र करके लिया। इस घटना के प्रतिशोध स्वरूप, पांडवों ने बदला लेने का निश्चय किया और महाभारत की नींव रखी गई।

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द्रोपदी का प्रतिशोध और पांडवों की भूमिका

द्रोपदी अपमान की आग में जल रही थी। उसने पांडवों को अपमानित होने के बाद धिक्कारा और बदला लेने के लिए उकसाया। द्रोपदी ने प्रतिज्ञा की कि वह अपने केश तब तक खुले रखेगी जब तक दुर्योधन के रक्त से उन्हें धो न ले। इस समय भीम ने भी प्रतिज्ञा की कि वह दुर्योधन की जंघा को गदा से तोड़ देगा और दुशासन की छाती को चीरकर उसका रक्त पिएगा। कर्ण ने द्रोपदी को भरी सभा में वेश्या कहकर अपमानित किया, जिससे द्रोपदी ने अर्जुन को कर्ण से प्रतिशोध लेने की सलाह दी।

जयद्रथ का अपमान

वनवास के दौरान, जयद्रथ ने द्रोपदी को अपने रथ पर बिठाकर ले जाने की कोशिश की। पांडवों ने उसे छुड़ाया, लेकिन द्रोपदी ने जयद्रथ का वध करने के बजाय उसे अपमानित कर छोड़ दिया। इस घटना का परिणाम महाभारत के युद्ध में दिखा जब जयद्रथ ने चक्रव्यूह में फंसे अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को मार डाला।

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द्रोपदी की जीवन की घटनाएँ महाभारत की कथा को महत्वपूर्ण मोड़ देती हैं। उनके अपमान, प्रतिशोध की भावना, और पांडवों के साथ उनकी जटिल संबंधों ने महाभारत के युद्ध को एक नई दिशा दी। द्रोपदी की कहानी एक शिक्षाप्रद उदाहरण है कि व्यक्तिगत अपमान और प्रतिशोध का प्रभाव समाज और राजनीति में किस तरह से गहरा असर डाल सकता है।

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Prachi Jain

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