Festival of Faith Chhath Puja : महाआस्था का महापर्व में छठ चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। इसकी शुरुआत 8 नवंबर चतुर्थी से शुरू होकर 11 नवंबर सप्तमी के सुबह की अर्घ्य के साथ समाप्त होने वाला है। मतलब सूर्य की उपासना का महापर्व है छठ। छठ एक ऐसा महापर्व है जिसे लगातार चार दिनों तक पूरी आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है। साथ ही छठ पर्व में कठोर नियमों का पालन भी किया जाता है।
छठ पर्व की शुरूआत शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय-खाय से होती है। नहाय-खाय के बाद पंचमी को खरना होता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम में गुड़ वाली खीर का प्रसाद सूर्य देव की पूजा के बाद प्रसाद बांटकर खाती है। उसके बाद अगले यानी तीसरे दिन अस्तलचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सबसे आखिरी दिन सुबह का उदयगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन भी महिलाएं सूर्योदय से पहले ही नदी व तालाब में खड़ी होती है।
छठ पूजा का नहाय-खाय- 8 नवंबर
खरना- 9 नवंबर,
छठ पूजा में संध्या का अर्घ्य- 10 नवंबर
छठ पूजा में सुबह का अर्घ्य- 11 नवंबर।
सूर्यास्त का शुभ मुहूर्त- शाम 5:30 ।
सूर्योदय का शुभ मुहूर्त- सुबह 6:40 ।
पहले छठ पर्व बिहार-झारखंड में मनाया जाता था लेकिन अब इस प्रकृति पर्व छठ की व्यापकता बिहार और यूपी तक नहीं है। बल्कि लोक आस्था का यह पर्व अब देश के कोने-कोने में और विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। छठ पर्व को इतना वृहद् स्तर पर मनाने के पीछे सूर्य देव को प्रत्यक्ष देव माना जाता है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि सूर्य देव की पूजा से आयु, बुद्धि, बल और तेज की प्राप्ति होती है। इसके अलावे पुत्र प्राप्ति और संतान संबंधी समस्या के समाधन के लिए सूर्य की उपासना करना श्रेष्ठ माना गया है।
छठ की पूजा में नियमों के पालन को महत्व दिया गया है। इन नियमों में पूजन सामग्री का विशेष महत्व है साथ ही इन सामग्री के बिना छठ की पूजा अधूरी मानी गई है। छठ पूजा के लिए जो पूजन सामग्री महत्वपूर्ण है, वो इस प्रकार है। अगर आप पहली बार भी शुरू कर रही है तो आपको फायदा होगा।
बॉस या पीतल की सूप (सूपा), बॉस के फट्टे से बने दौरा, डलिया और डगरा,पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी, शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा, नाशपाती, नींबू बड़ा (टाब), शहद की डिब्बी, पान और साबूत सुपारी, कैराव, सिंदूर, कपूर, कुमकुम, चावल अक्षत के लिए, चन्दन, मिठाई। इसके अलावा घर में बने हुए पकवान जैसे ठेकुवा, खस्ता, पुवा, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, इसके अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, इत्यादि छठ पूजन के सामग्री में शामिल है ।
छठ व्रत के संबंध में ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत के साथ कई मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं में से एक है कि इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को बेहद लाभकारी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जिन्हें संतान नहीं हो रहा है उन्हें यह व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावे जिन्हें संतान है वे भी संतान की लम्बी आयु के लिए इस व्रत को रखते हैं। ज्योतिष के अनुसार जिनकी कुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में नहीं है उन्हें इस व्रत को करने से अत्यधिक लाभ होता है।
छठ व्रत रखने वाले व्रतियों का मानना है कि इस व्रत को रखने से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग का समाधान होता है। साथ पाचन तंत्र की समस्या से परेशान लोगों को लाभ मिलता है। मान्यता के अनुसार जिनको भी संतान की ओर से किसी तरह की समस्या है तो यह व्रत उनके लिए लाभदायक होता है। ऐसी मान्यता है कि घर का कोई एक सदस्य भी यह व्रत रखता है। लेकिन पूरे परिवार को छठ पर्व में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। इसके अलावे स्वच्छता और सात्विकता का ध्यान रखना चाहिए।
इस व्रत के दिन जो भी भक्त सूर्य देव की पूजा करता है और सप्तमी के उदयगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता है उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं और मृत्यु के बाद सूर्य लोक में वर्षों तक सुख एवं भोग की प्राप्ति होती है। सूर्य को अर्घ्य देने के कुछ नियम हैं। पुण्य लाभ चाहने वालों को इन नियमों का पालन करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। भविष्य पुराण कहता है कि जो मनुष्य भगवान सूर्य को पुष्प और फल से युक्त अर्घ्य प्रदान करता है वह सभी लोकों में पूजित होता है। इन्हें मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
सूर्य देव को अष्टांग अर्घ्य अत्यंत प्रिय है। जो इस प्रकार अर्घ्य देता है उसे हजार वर्ष तक सूर्य लोक में स्थान प्राप्त होता है। अष्टांग अर्घ्य में जल, दूध, कुशा का अग्र भाग, घी, दही, मधु, लाल कनेर फूल तथालाल चंदन से अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आम जन मिट्टी के बरतन एवं बांस के डाले का प्रयोग करते हैं। इनसे अर्घ्य देने पर सामान्य अर्घ्य से सौ गुना पुण्य प्राप्त होता है।
मिट्टी और बांस से सौ गुणा अधिक फल ताम्र पात्र से अर्घ्य देने पर प्राप्त होता है। ताम्र के स्थान पर कमल एवं पलाश के पत्तों का भी प्रयोग किया जा सकता है। तांबे से लाख गुणा चांदी के पात्र से अर्घ्य देने पर पुण्य मिलता है। इसी प्रकार सोने के बर्तन से अर्घ्य देने पर करोड़ गुणा पुण्य की प्राप्ति होती है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्य देव को तालपत्र का पंखा समर्पित करता है वह दस हजार वर्ष तक सूर्य लोक में रहने का अधिकारी बन जाता है।
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