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Sant Rajinder Singh ji Maharaj संत राजिन्दर सिंह जी महाराज का जीवन-वृत्तांत

संत राजिंदर सिंह जी महाराज

अतीतकाल से ही इंसान जीवन के रहस्यों का हल खोजने की कोशिश करता रहा है, जैसे कि हम कौन हैं, हम यहां कैसे आए हैं, और मृत्यु के बाद हम कहां चले जाते हैं। दो क्षेत्रों ने इन प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया है: विज्ञान और अध्यात्म। जहां इन दोनों क्षेत्रों ने जवाबों तक पहुंचने के लिए अलग-अलग मार्गों का इस्तेमाल किया है, वहीं एक अद्वितीय इंसान ने इन दोनों विधाओं के बीच की दूरी को समाप्त कर हमें जीवन के पुरातन रहस्यों के उत्तर प्रदान किए हैं। विज्ञान और अध्यात्म, दोनों क्षेत्रों में पृष्ठभूमि होने के कारण, परम पूजनीय संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने इन दोनों शोध-आधारित विधाओं को सफलतापूर्वक एक साथ लाकर जीवन का अर्थ समझने में लोगों की सहायता की है। 1946 में भारत में जन्मे संत राजिन्दर सिंह जी महाराज सावन कृपाल रूहानी मिशन/साइंस आॅफ स्पिरिच्युएलिटी के अध्यक्ष हैं तथा विश्व-विख्यात आध्यात्मिक सतगुरु हैं।

आप संसार भर में यात्राएं कर सम्मेलनों व गोष्ठियों का आयोजन करते हैं, जिनमें लोगों को ध्यान-अभ्यास की एक सरल विधि सिखाई जाती है। इस विधि में विज्ञान एवं अध्यात्म के मिलन द्वारा प्रत्येक जिज्ञासु को व्यक्तिगत आंतरिक अनुभव प्रदान किया जाता है, ताकि वह स्वयं ही इन शाश्वत प्रश्नों के उत्तर पा सके कि हम वास्तव में कौन हैं और क्या इस भौतिक मंडल से परे भी कुछ है। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के जीवन एवं कार्यों को प्रेम और निष्काम सेवा की एक अविरल यात्रा के रूप में देखा जा सकता है, जिसके द्वारा आप जीवन के उद्देश्य को समझने व प्राप्त करने में लोगों की सहायता करते आए हैं। आपने जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को ध्यान का विज्ञान सिखाकर, उन्हें अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जानने व अनुभव करने में मदद की है।

आपका सार्वभौमिक संदेश मानव एकता, आध्यात्मिक भाईचारा, और नि:स्वार्थ सेवा के सिद्धांतों पर आधारित है। अधिकतर लोग ऐसा सोचते हैं कि विज्ञान और अध्यात्म परस्पर रूप से विपरीत और विरोधी क्षेत्र हैं। परंतु आईआईटी, मद्रास, के स्नातक होने के नाते और उसके बाद विज्ञान, इंजीनियरिंग, संचार, एवं तकनीकी के क्षेत्र में एक बेहद सफल और उत्कृष्ट करियर के स्वामी होने के नाते, तथा इसके साथ ही आज ध्यान-अभ्यास के क्षेत्र में विश्व के सर्वाधिक प्रख्यात और अग्रणी आध्यात्मिक गुरु होने के नाते, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज का यह मानना है कि विज्ञान और अध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

विज्ञान, संचार, और तकनीकी के क्षेत्र में पृष्ठभूमि होने के कारण संत राजिन्दर सिंह जी महाराज विज्ञान और अध्यात्म, दोनों क्षेत्रों में स्पष्ट समानांतर उदाहरणों को प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं, क्योंकि ये दोनों क्षेत्र एक-समान प्रश्नों के उत्तर देने का ही प्रयास करते हैं। वैज्ञानिक विधि का प्रयोग कर, हम अपने शरीर रूपी प्रयोगशाला में प्रवेश कर सकते हैं और स्वयं आत्मिक अनुभव प्राप्त कर जान सकते हैं कि हमारे अंदर क्या है।

एक वैज्ञानिक के रूप में उभरना और आईआईटी में प्रारंभिक वर्ष: संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के वैज्ञानिक करियर का आरंभ तब हुआ जब आपने विश्व के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग शिक्षा संस्थानों में गिने जाने वाले आईआईटी या इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलॉजी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान), मद्रास, से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (विद्युत अभियांत्रिकी) में स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। आईआईटी से बीटेक की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात आपने आईआईटी या इलिनोई इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलॉजी (इलिनोई प्रौद्योगिकी संस्थान), शिकागो, इलिनोई, यूएसए, से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की, जहां आपको स्पेशल फैलोशिप (विशेष छात्रवृत्ति) भी प्रदान की गई। यहां से एमएस की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत आप बीस वर्षों तक विज्ञान, संचार, तकनीकी, तथा शोध एवं विकास के क्षेत्र में कार्य करते हुए विश्व की एक प्रमुख शोध व संचार कंपनी में बेहद सफल करियर के स्वामी रहे। अपनी कुशाग्र बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा का उपयोग करते हुए आपने विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण योगदान दिए, जिनसे आज विश्व भर में लोगों के जीवन की गुणवत्ता और सुविधाओं में बढ़ोतरी हुई है, और जिनके उपलक्ष्य में आपने अनेक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। विज्ञान और अध्यात्म, दोनों क्षेत्रों में अपनी अभूतपूर्व उपलब्धियों के कारण आपको इलिनोई इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलॉजी द्वारा डिस्टिंग्विश्ड लीडरशिप अवॉर्ड (उत्कृष्ट नेत्तृत्व पुरस्कार) से सम्मानित किया गया।

विज्ञान और अध्यात्म: एक ही सिक्के के दो पहलू: अपने एक साक्षात्कार में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज फमार्ते हैं, आईआईटी, मद्रास, जहां से मैंने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री प्राप्त की, का स्नातक होने के नाते मैं जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने के लिए प्रशिक्षित था। इसी के साथ, मुझे दो महान आध्यात्मिक गुरुओं से ध्यान-अभ्यास और अध्यात्म की शिक्षा भी प्राप्त हुई थी। मैंने पाया कि ये दोनों क्षेत्र एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ये दोनों ही जीवन के रहस्यों का हल खोजने का प्रयास करते हैं।

इन दोनों क्षेत्रों का गहन अध्ययन करने के पश्चात आप इस नतीजे पर पहुंचे कि वैज्ञानिक तरीके का प्रयोग न केवल भौतिक विज्ञानों में किया जा सकता है, बल्कि इसे अध्यात्म के क्षेत्र में भी बखूबी लागू किया जा सकता है। विज्ञान की प्रयोगशाला में हम एक अवधारणा से शुरूआत करते हैं, और फिर परीक्षण के द्वारा सिद्ध करते हैं कि वह अवधारणा सही है या ग़्ालत। इसी तरीके का इस्तेमाल कर हम आध्यात्मिक अवधारणाओं का भी परीक्षण कर सकते हैं, कि क्या इस संसार में कोई उच्च दिव्य शक्ति मौजूद है, क्या हमारे अंदर आत्मा मौजूद है, और क्या इस भौतिक जीवन से परे भी हमारा कोई अस्तित्व है। फर्क केवल इतना है कि भौतिक प्रयोगशाला में परीक्षण करने के बजाय आध्यात्मिक अवधारणा का परीक्षण इंसानी शरीर की प्रयोगशाला के भीतर किया जाता है।

एक अन्य साक्षात्कार में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज फर्माते हैं, आध्यात्मिक विज्ञान के क्षेत्र में प्रयोग करने से मुझे पता चला कि हम चेतन प्राणी हैं। जब हम अपने ध्यान को बाहरी इंद्रियों, जोकि हमें भौतिक संसार से जोड़े रखती हैं, से हटाकर अपने भीतर की चेतनता पर टिकाते हैं, तो हमारे सामने एक आंतरिक संसार खुल जाता है। हमारे अंदर, दोनों भौंहों के पीछे और बीच में, एक ऐसा केंद्र है जहां ध्यान टिकाकर हम अपने आत्मिक स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं। अपने ध्यान को इस बिंदु पर एकाग्र करने से हम आंतरिक ज्योति को देख सकते हैं और आंतरिक संगीत या श्रुति को सुन सकते हैं।

अपने ध्यान को बाहर से हटाकर अंतर में एकाग्र करने की इस प्रक्रिया को ही ध्यान-अभ्यास कहते हैं। ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम आंतरिक ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ सकते हैं और उस दिव्य धारा में लीन हो सकते हैं। तब हम इस भौतिक मंडल से परे आंतरिक आध्यात्मिक मंडलों की यात्रा पर जा सकते हैं। हमने इन आध्यात्मिक मंडलों के बारे में अतीतकाल में आए आंतरिक यात्रियों के वर्णनों में पढ़ा है, परंतु आज के इस वैज्ञानिक युग में हम स्वयं चीजों को देख-परख कर ही यकीन करना चाहते हैं। ध्यान-अभ्यास एक ऐसा प्रयोग है जिसमें हम स्वयं आध्यात्मिक मंडलों के अस्तित्व की अवधारणा का परीक्षण करके प्रमाण हासिल कर सकते हैं। आईआईटी में मिले प्रशिक्षण से आप वैज्ञानिक विधि में निपुण हो गए, और फिर आपने यही विधि अध्यात्म के क्षेत्र में भी अपनाई। इस प्रकार, आपने प्रभु के हमारे भीतर मौजूद होने पर अंधविश्वास नहीं किया, बल्कि ध्यान-अभ्यास के द्वारा स्वयं व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त किया और इस बात का ठोस प्रमाण हासिल किया। इन दोनों क्षेत्रों के मिश्रण से ही ह्यसाइंस आॅफ स्पिरिच्युएलिटीह्ण की रचना हुई, ताकि जो लोग आध्यात्मिक अवधारणा का परीक्षण करना चाहते हैं, वे ध्यान-अभ्यास के द्वारा अपने भीतर मौजूद प्रयोगशाला में ऐसा कर सकें।

वैज्ञानिक से संत तक: संत राजिन्दर सिंह जी महाराज का संपूर्ण जीवन लोगों को उनकी आत्मा की शक्ति से परिचित कराने के लिए समर्पित रहा है। इस आंतरिक जागृति का एक उप-उत्पाद यह होता है कि हमारे तनाव में कमी आती है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर, मन, और आत्मा के स्वास्थ्य में सुधार आता है। ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम यह अनुभव भी कर लेते हैं कि जो सार-तत्त्व हमारे भीतर मौजूद है, वही अन्य सभी इंसानों के अंदर भी मौजूद है, और इससे हम जान जाते हैं कि आत्मा के स्तर पर हम सब वास्तव में एक ही हैं।

इस एकता का एहसास होने से लोग आंतरिक शांति के साथ-साथ बाहरी शांति भी प्राप्त कर सकते हैं। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज फमार्ते हैं, हमारे अंदर एक दिव्य चेतन-सत्ता मौजूद है, जिससे हमारी बुद्धि और विवेक का उदय होता है। इस आंतरिक दिव्य चेतन-सत्ता, बुद्धि, और विवेक के साथ जुड़ने की प्रक्रिया को ध्यान-अभ्यास कहते हैं; यदि हम ध्यान-अभ्यास द्वारा ज्ञान को विवेक में परिवर्तित कर लें, तथा समस्त सृष्टि को चलाने वाली परम सत्ता का अनुभव कर लें, तो हम मानव एकता के अपने स्वप्न को साकार कर सकते हैं।

महाराज जी के संदेश की संपूर्ण विश्व में प्रतिष्ठा: विज्ञान के क्षेत्र में व्यक्तिगत अनुभव और अध्यात्म के क्षेत्र में गहन ज्ञान रखने के कारण संत राजिन्दर सिंह जी महाराज गूढ़ आध्यात्मिक विषयों को इतने सरल व स्पष्ट तरीके से समझाते हैं कि आपके संपर्क में आने वाले लोगों के जीवन में प्रेरणा का संचार हो उठता है। आपकी शिक्षाएं सभी पृष्ठभूमियों के लोगों के दिलों को छू लेती हैं। आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को ध्यान-अभ्यास की विधि सिखाने के लिए आप संपूर्ण विश्व फ् उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, एशिया, आॅस्ट्रेलिया, ओशनिया, और भारत के विभिन्न शहरों फ् में यात्राएं करते हैं। जहां भी आप जाते हैं, अपने साथ शांति व एकता का संदेश ले जाते हैं। आपको यूनाइटेड नेशन्स (संयुक्त राष्ट्र) की जैनरल असैम्बली (महासभा) द्वारा आयोजित मिलेनियम पीस सम्मिट फॉर रिलीजियस ऐन्ड स्पिरिच्युअल लीडर्स (धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं का सहस्राब्दि शांति सम्मेलन), जिसमें दुनिया भर से हजारों आध्यात्मिक गुरुओं ने भाग लिया था, के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज अपना प्रेरणादायी संदेश, जोकि विश्व शांति स्थापित करने के लिए अति कारगर है, विश्व-नेताओं, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, शिक्षकों, एवं जीवन के अन्य सभी वर्गों के लोगों के साथ बांटते हैं। आपने अनेक विश्व-प्रतिष्ठित संस्थानों में श्रोताओं को सम्बोधित किया है, जैसे नैशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हैल्थ (राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान), यूनाइटेड स्टेट्स कोस्टगार्ड अकेडमी (यूनाइटेड स्टेट्स तटरक्षक अकादमी), हार्वर्ड यूनीवर्सिटी (हार्वर्ड विश्वविद्यालय), मद्रास, दिल्ली और मुम्बई के इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ टैक्नोलॉजी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान), तथा पार्लियामेंट आॅफ वर्ल्ड रिलीजियन्स (विश्व धर्म संसद)। जहां भी आप जाते हैं, आपको विश्व शांति में दिए गए योगदानों के लिए, शिक्षा के क्षेत्र में पथ-प्रदर्शक उपलब्धियों के लिए, तथा अध्यात्म के द्वारा मानव एकता का प्रचार-प्रसार करने के लिए, अनेक महत्त्वपूर्ण अवॉर्ड्स (पुरस्कारों) से सम्मानित किया जाता है। आपको प्रदत्त अनेक पुरस्कारों में शामिल हैं पांच सम्मानार्थ डॉक्टरेट उपाधियां तथा देश-विदेश के गणमान्य राजनेताओं द्वारा प्रदत्त कई प्रतिष्ठित सम्मान। आपको यूनाइटेड नेशन्स (संयुक्त राष्ट्र) की नॉन-गवर्नमेन्ट एजेन्सीज (ग़्ौर-सरकारी संस्थाओं) की उपस्थिति में इंटरफेथ सेंटर आॅफ न्यूयॉर्क (न्यूयॉर्क के अंतर्धर्म केंद्र) और टैम्पल आॅफ अंडरस्टैन्डिंग द्वारा शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

कोलम्बिया के नैशनल मिनिस्टर आॅफ एजूकेशन (राष्ट्रीय शिक्षा मंत्री) द्वारा आपको मैडल आॅफ कल्चरल मैरिट (सांस्कृतिक श्रेष्ठता पदक) प्रदान किया गया। साथ ही, अनेक देशों में, विभिन्न शहरों के राज्यपालों ने आपको ह्यकी टू द सिटीह्ण (शहर की चाबी) से सम्मानित किया है। मानव एकता के प्रति संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के अविचल समर्पण के परिणामस्वरूप आपने संपूर्ण विश्व में अपने अथक प्रयास जारी रखे हैं, ताकि लोग सांस्कृतिक, राष्ट्रीय, जातीय, और आर्थिक भेदभावों से ऊपर उठकर आत्मा के स्तर पर अपनी आपसी एकता को जान सकें विश्व शांति के प्रचार-प्रसार के लिए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज वार्षिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन करते हैं: विश्व आध्यात्मिक सम्मेलन तथा अंतर्राष्ट्रीय मानव एकीकरण सम्मेलन।

इन सालाना सम्मेलनों में एक लाख से भी अधिक लोग शामिल होते हैं, तथा इनमें सामाजिक, शैक्षिक, और साहित्यिक क्षेत्रों से अनेक गणमान्य अतिथि भाग लेकर श्रोताओं को आंतरिक व बाहरी शांति प्राप्त करने के तरीकों से अवगत कराते हैं। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज एक प्रख्यात लेखक भी हैं। आपकी अनेक पुस्तकें विभिन्न श्रेणियों में बैस्टसैलर्स (सर्वाधिक बिकने वाली किताबें) घोषित की गई हैं। आपकी पुस्तकें व लेख विश्व की पचपन से भी अधिक भाषाओं में अनुवादित किए गए हैं। आपके प्रवचन रेडियो, टेलीविजन, और इंटरनेट प्रसारणों द्वारा संसार भर में सुने व देखे जाते हैं। आपकी नवीनतम पुस्तकों में शामिल हैं: मेडिटेशन ऐज मेडिकेशन फॉर द सोल (अर्थात, आत्मा की चिकित्सा हेतु ध्यान-अभ्यास); दिव्य चिंगारी; आध्यात्मिक मोती; दिव्य सूत्र; ध्यान द्वारा आंतरिक व बाह्य शांति; आत्म-शक्ति आदि। ये पुस्तकें रेडियन्स प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई हैं, तथा ंउं्रवदण्पद पर उपलब्ध हैं (ई-बुक के रूप में भी)। ध्यान-अभ्यास और अध्यात्म के विषयों पर आपकी अनेक सीडी और डीवीडी भी उपलब्ध हैं।

आप ६६६.२ङ्म२.ङ्म१ॅ वेबसाइट पर विभिन्न आध्यात्मिक विषयों पर आधारित एक ब्लॉग (इंटरनेट लेख) भी प्रकाशित करते हैं, जिसमें संक्षिप्त आॅडियो एवं वीडियो क्लिप्स तथा आपकी पुस्तकों के संक्षिप्त अंश भी शामिल होते हैं। कोई भी व्यक्ति इस नि:शुल्क वेबसाइट पर जाकर इस ब्लॉग से लाभ उठा सकता है। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज की अध्यक्षता में विश्व भर में सावन कृपाल रूहानी मिशन/साइंस आॅफ स्पिरिच्युएलिटी के 2000 से भी अधिक केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं, जिनमें स्थानीय समुदायों के लिए कार्यशालाएं, कक्षाएं, गोष्ठियां, तथा ध्यान-अभ्यास, अध्यात्म और संबंधित विषयों पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, और जिनमें कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता है। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के समर्थ मार्गदर्शन में सावन कृपाल रूहानी मिशन/साइंस आॅफ स्पिरिच्युएलिटी द्वारा अनेक समाजसेवा गतिविधियां भी आयोजित की जाती हैं, जैसे नि:शुल्क रक्तदान शिविर, नि:शुल्क नेत्रजांच व आॅपरेशन शिविर, नि:शुल्क वस्त्र-वितरण आदि।

हमारी संस्था से जुड़े जिज्ञासुओं व सेवादारों ने संसार की अनेक प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत-कार्यों में भरपूर शारीरिक व आर्थिक योगदान दिया है, जैसे कि दक्षिणी एशिया में आई सूनामी, तथा विश्व में आए अनेक तूफानों, भूकम्पों, ज्वालामुखी विनाशों, और बाढ़ आदि के दौरान। भारत में हमारी संस्था द्वारा प्राकृतिक आपदा के पीड़ितों के लिए अनेक घरों, एक विद्यालय, और एक सामुदायिक केंद्र का निर्माण किया गया है। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज नि:स्वार्थ व अथक रूप से कार्य करते हुए दुनिया भर के लोगों को ध्यान की कला सिखाते हैं, ताकि हम अपने अंतर में मौजूद आध्यात्मिक खजानों को पा सकें।

ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम आंतरिक शांति, खुशी, तनाव से मुक्ति, और आनंद की प्राप्ति भी करते हैं। महान् वैज्ञानिक-संत, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज, के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप आज विश्व भर में लाखों लोग ध्यान-अभ्यास की विधि को सीख चुके हैं, और अभ्यर्थियों की यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के विषय में अधिक जानकारी के लिए ूूूण्ेवेण्वतह वेबसाइट पर जाएं, या हमारी संस्था के इन दो अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालयों से संपर्क करें: सावन कृपाल रूहानी मिशन, कृपाल आश्रम, संत कृपाल सिंह मार्ग, दिल्ली 110009, भारत।

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