India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Karn: महाभारत के अनुसार, कर्ण ने अपने एक विशेष वचन को निभाने के लिए मृत्युलोक से वापिस लौटने की घटना का वर्णन मिलता है। यह वचन था कि उन्होंने अपने जीवन के दौरान अपने सभी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने की शपथ ली थी। कर्ण ने अपनी मृत्यु के बाद यमराज (मृत्युलोक के देवता) के पास जाकर उनसे अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए आग्रह किया था। यमराज ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और कर्ण को एक बार फिर जीवित होने का अवसर दिया ताकि वह अपने वचन को निभा सकें।
कर्ण ने अपने जीवन के दौरान बहुत से वचन दिए थे, जैसे कि अपने दान के वचन, अपनी धर्मपत्नी से किए गए वचन और अन्य नैतिक वचन। विशेष रूप से, उन्होंने अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी अर्जुन को मारने की शपथ ली थी और इस शपथ को पूरा करने के लिए अपने जीवन के अंतिम समय में भी अपनी पूरी शक्ति लगाई। यहाँ कुछ और महत्वपूर्ण पहलुओं को साझा किया गया हैं:
कर्ण का जन्म कुन्ती के गर्भ से हुआ था, जब उन्होंने एक तपस्वी ऋषि के आशीर्वाद से एक पुत्र की कामना की थी। वह सूर्य देवता का पुत्र था, इसीलिए उसे “सूर्यपुत्र” भी कहा जाता है।
जन्म के बाद, कर्ण को कुन्ती ने एक पालक माता को दे दिया था, और वे राजकुमार अधिरथ और राधा के पुत्र के रूप में पले-बढ़े।
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कर्ण ने धनुर्विद्या में अपनी कड़ी मेहनत और योग्यता के कारण अर्जुन के समान शक्तिशाली बन गए थे। हालांकि, वे अपने कुल (क्षत्रिय) के प्रति वफादार रहते हुए पांडवों के प्रतिकूल रहे। वे अपने गुरु, द्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके क्योंकि उन्हें उनके असली कुल के बारे में जानकारी नहीं थी।
कर्ण ने दुर्योधन के साथ एक गहरी मित्रता की, जिसने उनकी पूरी जिंदगी को प्रभावित किया। दुर्योधन ने कर्ण को एक महत्वपूर्ण पद प्रदान किया और उन्हें हमेशा अपना सखा माना।
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कर्ण की एक विशेष विशेषता उनके दान की भावना थी। उन्होंने कभी भी किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाया और जीवनभर दान देने का वचन निभाया।
महाभारत के युद्ध के दौरान, कर्ण की मृत्यु के समय कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। उनकी मृत्यु अर्जुन द्वारा की गई थी, लेकिन कर्ण की भयंकर शक्ति और निष्ठा ने युद्ध को एक निर्णायक मोड़ दे दिया।
कर्ण की मृत्यु के बाद, उनका अंतिम संस्कार हुआ और उनके प्रति सम्मान व्यक्त किया गया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी वीरता और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा का उल्लेख महाभारत में किया गया।
कर्ण की जीवन की कहानी, उनके वचन और उनके कर्म, महाभारत की कथा में एक महत्वपूर्ण भाग हैं और यह भारतीय साहित्य में गहराई और प्रेरणा का स्रोत हैं।
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