India News (इंडिया न्यूज), Gandhari Was Already Married: महाभारत की कथा में धृतराष्ट्र की पत्नी और कौरवों की माता गांधारी को लेकर कई दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानियां मौजूद हैं। गांधारी का चरित्र नारी के साहस, त्याग और समर्पण का प्रतीक है। उनके जीवन की अनेक घटनाएं महाभारत के महान कथानक को गहराई और जटिलता प्रदान करती हैं। इस लेख में हम गांधारी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर प्रकाश डालेंगे।
गांधारी का जन्म गांधार देश (आज का कंधार, अफगानिस्तान) के राजा सुबल के घर हुआ था। गांधारी अत्यंत सुंदर और गुणी राजकुमारी थीं। लेकिन उनका विवाह एक ऐसी घटना थी जिसे कई प्रकार की मजबूरियों और ज्योतिषीय सलाहों के अनुसार तय किया गया था।
कथा के अनुसार, महाभारत के एक प्रमुख पात्र भीष्म ने गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से कराया। यह विवाह एक प्रकार से बलपूर्वक हुआ, क्योंकि गांधारी को जब तक यह ज्ञात नहीं था कि उनके पति धृतराष्ट्र अंधे हैं। जब गांधारी को यह सत्य पता चला कि उनका पति जन्म से ही नेत्रहीन है, तो उन्होंने अपने जीवन के बाकी समय के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधने का निर्णय लिया। यह गांधारी के असीम त्याग और नारी धर्म के प्रति उनके अद्वितीय समर्पण का प्रतीक था। उन्होंने सोचा कि जब उनके पति संसार को देख नहीं सकते, तो उन्हें भी इस संसार को देखने का अधिकार नहीं है।
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गांधारी के विवाह से पहले ज्योतिषियों ने एक खास सलाह दी थी। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि गांधारी का पहला विवाह संकट में रहेगा और इससे उनके पति को कष्ट होगा। इस संकट से बचने के लिए यह सलाह दी गई कि गांधारी का पहला विवाह प्रतीकात्मक रूप से किसी और से करा दिया जाए।
ऐसा कहा जाता है कि इस समस्या का समाधान करने के लिए एक बकरे को चुना गया। गांधारी का प्रतीकात्मक विवाह उस बकरे से कराया गया, और फिर उस बकरे की बलि दे दी गई। इस प्रकार, गांधारी को विधवा माना गया और उनके बाद का विवाह धृतराष्ट्र से संपन्न हुआ। यह प्रतीकात्मक विधवा रूप में उनका विवाह धृतराष्ट्र से होने का एक कारण बना।
गांधारी के चरित्र का सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक पहलू उनका अपने पति के प्रति अटूट समर्पण था। अपने पति की तरह अंधत्व को अपनाकर गांधारी ने यह दिखाया कि एक पत्नी का धर्म सिर्फ शारीरिक सुख और साधनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक स्तर पर अपने पति के साथ खड़ा रहने की एक मिसाल भी है। उनका यह त्याग समाज में एक अद्वितीय उदाहरण बन गया।
गांधारी न केवल अपने त्याग के लिए जानी जाती थीं, बल्कि वह एक शक्तिशाली और दूरदर्शी महिला भी थीं। उन्होंने अपने 100 पुत्रों (कौरवों) का पालन-पोषण किया, लेकिन अंततः अपने पुत्रों के अधर्म के कारण महाभारत के युद्ध में उनका सर्वनाश हो गया। युद्ध के बाद, गांधारी ने अपने पुत्रों की मृत्यु के बावजूद धर्म का पालन किया और अपने दुख को ईश्वर की इच्छा के रूप में स्वीकार किया।
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गांधारी की कहानी महाभारत की उन कहानियों में से एक है जो नारी के अद्वितीय बलिदान, त्याग और साहस को दर्शाती है। उनका प्रतीकात्मक विवाह, नेत्रहीनता को अपनाना, और अपने पुत्रों के लिए युद्ध के परिणामों को सहन करना—all यह घटनाएं गांधारी के जीवन की गहराई और उसकी नारी शक्ति को उजागर करती हैं। उनका त्याग और समर्पण आज भी आदर्श माने जाते हैं, और उनकी कथा भारतीय संस्कृति में नारीत्व की महिमा का प्रमाण है।
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