Garba: शारदीय नवरात्रि चल रही हैं। नवरात्रि का समापन 4 अक्टूबर को होगा। 3 अक्टूबर को दुर्गा अष्टमी और 4 अक्टूबर को नवमी है। नवरात्रि में मां के नौ स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि में शक्ति-साधना का एक तरीका नृत्य भी होता है। जिसे गरबा बोला जाता है। गरबे के जरिए देवी मां को प्रसन्न किया जाता है। नवरात्र में गरबा का काफी महत्व होता है। लेकिन गरबे की शुरूआत कैसे हुई। आइए इसका इतिहास जानते हैं।
आपको बता दें कि नृत्य कला को हिंदूओं में भक्ति और साधना का एक मार्ग बताया गया है। वहीं अगर गरबा की बात की जाए तो संस्कृत में इसका नाम गर्भ दीप है। कई सालों पहले गरबा को गर्भदीप के नाम से जाना जाता था।
जब गरबा की शुरुआत होती है तब एक कच्चे मिट्टी के घड़े को फूलों से सजाया जाता है। जिसमें छोटे-छोटे कई छेद भी होते हैं। इस मटके अंदर दीप प्रज्वलित किया जाता है। जिसके बाद देवी मां का आव्हान किया जाता है। इसी दीप को ही गर्भदीप कहा जाता है।
गरबा यानि गर्भदीप के चारों तरफ सभी स्त्रियां और पुरुष गोल घेरे में नृत्य (गरबा) कर शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा को प्रसन्न करते हैं। ऐसी मान्यता है कि महिलाएं गरबा करने के वक्त तीन ताली बजाकर नृत्य किया करती हैं। बता दें कि यह तालियां ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने का एक तरीका होता है। कहा जाता है कि मां भवानी तालियों की गूंज से जागृत होती हैं।
जानकारी दे दें कि आजादी के पहले गरबा केवल गुजरात में ही किया जाता था। गुजरात का पारंपरिक लोक नृत्य गरबा है। जिसके बाद धीरे-धीरे गरबे का चलन हर जगह बढ़ता चला गया। फिर बाद में राजस्थान तथा देश के अलग-अलग कई राज्यों में गरबा किया जाने लगा। यहां तक की नवरात्रि के दिनों में गरबा का आयोजन विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से किया जाता है।
बता दें कि गरबा सौभाग्य का प्रतीक कहा जाता है। डांडिया, ताली और मंजिरा आदि कई चीजें बजाकर गरबा किया जाता है। नवरात्र के नौ दिन देवी को खुश करने के लिए उनके समक्ष गरबा किया जाता है।
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