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Garuda Purana: दिन ढलने के बाद हिंदू धर्म में क्यों नहीं किया जाता अंतिम संस्कार, गरुड़ पुराण में बताए गए हैं कारण

Garuda Purana: दिन ढलने के बाद हिंदू धर्म में क्यों नहीं किया जाता अंतिम संस्कार

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Garuda Purana: हिंदू धर्म के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक, गरुड़ पुराण, जीवन और मृत्यु से जुड़ी गहन शिक्षाओं और रहस्यों का वर्णन करता है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित इस पुराण में भगवान विष्णु और पक्षीराज गरुड़ के बीच संवाद के माध्यम से सोलह संस्कारों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इनमें से अंतिम और सोलहवां संस्कार – दाह संस्कार – विशेष महत्व रखता है। इस ग्रंथ में यह बताया गया है कि मृत्यु के बाद परिजनों को किन नियमों का पालन करना चाहिए और सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार क्यों नहीं करना चाहिए। आइए इन बातों को विस्तार से समझते हैं।

सूर्यास्त के बाद क्यों नहीं किया जाता अंतिम संस्कार?

गरुड़ पुराण के अनुसार, सूर्यास्त के बाद शव का दाह संस्कार करना वर्जित है। ऐसा कहा गया है कि इस समय स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते हैं, जिससे आत्मा अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाती और शांति नहीं मिलती। इसके विपरीत, सूर्यास्त के बाद नर्क के द्वार खुल जाते हैं। यदि रात में अंतिम संस्कार किया जाता है, तो आत्मा को नर्क में जाने और वहां कष्ट भोगने की संभावना बढ़ जाती है।

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Garuda Purana: दिन ढलने के बाद हिंदू धर्म में क्यों नहीं किया जाता अंतिम संस्कार

इसके अतिरिक्त, ऐसी मान्यता है कि रात में दाह संस्कार करने से मृत आत्मा के अगले जन्म में किसी शारीरिक दोष का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, गरुड़ पुराण यह सुझाव देता है कि यदि किसी व्यक्ति की रात में मृत्यु हो जाए, तो उसके शव को सूर्योदय तक सुरक्षित रखा जाए और सुबह विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार किया जाए।

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दाह संस्कार करने का अधिकार किसे है?

गरुड़ पुराण में वंश परंपरा के महत्व को दर्शाया गया है। अंतिम संस्कार करने का अधिकार केवल वंशजों को दिया गया है, जो मृतक के परिवार के पुरुष सदस्य हो सकते हैं। इनमें पिता, पुत्र, भाई, पोता या अन्य नजदीकी पुरुष रिश्तेदार शामिल हैं।

यह संस्कार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल वंश परंपरा को आगे बढ़ाता है, बल्कि मृत आत्मा की शांति के लिए भी आवश्यक माना जाता है।

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मृत्यु के बाद पालन करने योग्य अन्य नियम:

गरुड़ पुराण में आत्मा की यात्रा से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण नियमों का भी उल्लेख किया गया है:

  1. शव को भूमि पर रखने का नियम: मृतक का शव सूर्योदय तक भूमि पर रखा जाना चाहिए। इसे उचित सम्मान और देखभाल के साथ सुरक्षित रखा जाता है।
  2. विधि-विधान से अंतिम संस्कार: सुबह होते ही पूरे धार्मिक विधि-विधान के साथ दाह संस्कार करना चाहिए। यह प्रक्रिया आत्मा की शांति और स्वर्ग प्राप्ति में सहायक होती है।
  3. पुनर्जन्म का आधार: गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि व्यक्ति का पुनर्जन्म उसके कर्मों और दाह संस्कार की शुद्धता पर निर्भर करता है।

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आत्मा की यात्रा और स्वर्ग-नरक का निर्णय:

गरुड़ पुराण के अनुसार, आत्मा की यात्रा मृत्यु के बाद उसके कर्मों के आधार पर होती है। अच्छे कर्मों वाले व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, जबकि बुरे कर्म करने वालों को नर्क में कष्ट भोगने पड़ते हैं। यही कारण है कि अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को सही तरीके से संपन्न करना अत्यंत आवश्यक माना गया है।

गरुड़ पुराण न केवल हिंदू धर्म के दार्शनिक पहलुओं को दर्शाता है, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच के संबंध को भी स्पष्ट करता है। इसमें बताए गए नियम और मान्यताएं आत्मा की शांति और पुनर्जन्म के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। दाह संस्कार से संबंधित शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि कैसे मृत्यु के बाद भी परिजनों का कर्तव्य बना रहता है।

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Garuda PuranaSignificants of Garun Puran
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