India News (इंडिया न्यूज़), Tirupati Balaji Laddu History: देश का सबसे अमीर मंदिर तिरुपति बालाजी दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में तिरुमाला की पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित मूर्ति को भगवान वेंकटेश, वेंकटेश्वर और तिरुपति स्वामी और तिरुपति बालाजी के नाम से जाना जाता है। बता दें कि मंदिर के बारे में अब तक तीन बातें मशहूर हो चुकी हैं। पहली, यह भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। दूसरी, यहां साल भर पहुंचने वाले भक्तों की संख्या करोड़ों में है और चढ़ावे की मात्रा भी इससे कम नहीं है। तीसरी और सबसे खास बात जो मशहूर हो चुकी है, वो है मंदिर का प्रसाद- लड्डू। जी हां, आध्यात्मिकता का प्रतीक, अद्भुत स्वाद और तिरुपति भगवान की कृपा का जीता जागता उदाहरण।
दरअसल, तिरुपति के प्रसाद की यह प्रसिद्धि चर्चा में है। यह बात सामने आई है कि यहां के मशहूर लड्डू मिलावटी हैं। बताया गया कि इस लड्डू में गोमांस की चर्बी, मछली का तेल और जानवरों की चर्बी मिलाई जाती है। यह जानकारी सामने आने के बाद तिरुपति के श्रद्धालुओं में गुस्सा है और पवित्र लड्डू में मिलावट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जा रही है।
इस मामले के सामने आने के बाद जो भी कार्रवाई होगी, वो बाद में की जाएगी, लेकिन सवाल ये उठता है कि तिरुपति में लड्डू प्रसाद की इतनी मान्यता क्यों है? ये कहां से आए और इनकी शुरुआत कैसे हुई? बता दें कि तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम का इतिहास बहुत समृद्ध और प्राचीन है। लड्डू प्रसाद तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर के पारंपरिक अनुष्ठानों और भक्ति-पूजा से जुड़ा हुआ है। तिरुपति बालाजी के मंदिर में उन्हें विशेष प्रसाद के रूप में लड्डू चढ़ाया जाता है और भक्त इसे बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ ग्रहण करते हैं। दरअसल, भगवान विष्णु के सभी मंदिरों में पंचमेवा प्रसाद का बहुत महत्व है। ये पंचमेवा पांच तत्वों, पांच इंद्रियों और पंच भूतों के प्रतीक हैं। इन्हें मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है और इस तरह प्रसाद में लड्डू चढ़ाए जाने लगे, जो बेसन, घी, चीनी, काजू, किशमिश को मिलाकर बनाया जाता है। इस लड्डू की लोकप्रियता और धार्मिक महत्व ने इसे तिरुपति मंदिर की पहचान का अहम हिस्सा बना दिया।
माना जाता है कि तिरुपति का लड्डू प्रसादम 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। हालांकि, इस बारे में कोई स्पष्ट दस्तावेज नहीं है कि लड्डू को विशेष प्रसाद के रूप में कब अपनाया गया। हालांकि, लोगों की अपार श्रद्धा और प्रसाद के रूप में इसका वितरण सदियों पुरानी परंपरा है। सबसे खास बात यह है कि सैकड़ों सालों से यह मंदिर परिसर में आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा रहा है और दैनिक पूजा के बाद इसे बड़े पैमाने पर भक्तों के बीच वितरित किया जाता है। सदियों से इसे बनाने की प्रक्रिया और सामग्री में कोई बदलाव नहीं किया गया है और इससे लोगों के बीच इसका अनूठा स्वाद और पहचान बनी हुई है। पिछले दशकों में इस लड्डू ने तिरुपति के विशेष नैवेद्य के रूप में लोगों के बीच एक अलग जगह बना ली है।
तिरुपति के लड्डू को साल 2009 में भौगोलिक संकेत-जीआई टैग भी मिला था। इसका मतलब है कि तिरुपति के लड्डू की एक अलग पहचान है और इसे केवल तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में ही बनाया जा सकता है। यह टैग सुनिश्चित करता है कि तिरुपति के लड्डू की विशिष्टता और गुणवत्ता बनी रहे।
ये लड्डू बेसन, चीनी, घी, काजू, किशमिश, इलायची और अन्य सूखे मेवों जैसी खास सामग्री को मिलाकर बनाए जाते हैं। इसे मंदिर की रसोई में पारंपरिक तरीके से खास तौर पर तैयार किया जाता है, जिसे “पोट्टू” कहा जाता है। हर दिन बड़ी संख्या में लड्डू बनाए जाते हैं। ये आकार में बड़े, सुगंधित और खास स्वाद वाले होते हैं।
लड्डू की प्रासंगिकता और महत्व की बात करें तो लड्डू भारतीय समाज में शुभता और पवित्रता का प्रतीक हैं। लड्डू को घी में तलकर और उन्हें इकट्ठा करके बनाया जाता है, इसलिए इसे एकता और संगठन का प्रतीक भी माना जाता है। इसके साथ ही तिरुपति के लड्डू को बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से भगवान वेंकटेश्वर की कृपा प्राप्त होती है और यह उनके आशीर्वाद का प्रतीक है। तिरुपति लड्डू न केवल एक स्वादिष्ट प्रसाद है, बल्कि इसके पीछे एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। इसे ग्रहण करने के पीछे मान्यता है कि इसे भगवान बालाजी का प्रसाद मानकर ग्रहण करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद के धार्मिक महत्व के साथ-साथ इसके साथ कई लोककथाएं भी जुड़ी हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं। प्रसाद में लड्डू शामिल करने के पीछे का कारण द्वापर युग में भगवान कृष्ण की बाल लीला से जुड़ा है। कहा जाता है कि एक बार बाबा नंद और माता यशोदा भगवान विष्णु की पूजा कर रहे थे। नटखट कन्हैया पास में ही खेल रहे थे। इसी बीच नंद बाबा ने लड्डू की थाली उठाई और भगवान विष्णु को भोग के लिए बुलाया। जब उन्होंने आंखें खोलीं तो देखा कि कन्हैया पूजा की चौकी पर बैठे हैं और मजे से लड्डू खा रहे हैं। पहले तो नंद बाबा और यशोदा उन्हें देखकर मुस्कुराए, फिर उन्हें याद आया कि कान्हा ने भोग के लड्डू खा लिए हैं।
तब यशोदा जी ने फिर से लड्डू बनाए। नंद बाबा ने फिर से भोग लगाया, लेकिन इस बार भी कान्हा ने लड्डू खा लिए। ऐसा बार-बार हुआ। नंद बाबा ने गुस्से में उन्हें डांटते हुए कहा, “कान्हा, थोड़ा रुको, मुझे खाने दो, फिर तुम प्रसाद ले लेना।” तब कान्हा ने हकलाते हुए कहा, “बाबा, तुम ही हो जो मुझे बार-बार भोजन के लिए बुला रहे हो।” उनके इतना कहते ही श्रीकृष्ण ने अपने चतुर्भुज रूप में नंद बाबा और यशोदा माता को दर्शन दिए और कहा कि तुमने मेरे लिए बहुत स्वादिष्ट लड्डू बनाए हैं। अब से ये लड्डू मुझे मक्खन के समान प्रिय होंगे। तब से बाल कृष्ण को मक्खन और मिश्री का भोग लगाया जाने लगा और चतुर्भुज श्रीकृष्ण को लड्डू का भोग लगाया जाने लगा।
तिरुपति मंदिर में श्रीकृष्ण का चतुर्भुज रूप स्थापित है, जो भगवान विष्णु का सनातन रूप है। तिरुपति का अर्थ है तीनों लोकों का स्वामी। यहां वे अपनी पत्नियों पद्मा और भार्गवी के साथ वेंकटेश श्रीनिवास के रूप में निवास करते हैं। पद्मा और भार्गवी देवी लक्ष्मी के अवतार हैं और श्रीनिवास वेंकटेश स्वयं महाविष्णु हैं। तिरुपति में लड्डुओं को भोग और प्रसाद के रूप में स्वीकार किए जाने के बारे में और भी कहानियाँ हैं।
एक प्रसिद्ध लोककथा के अनुसार, एक बार भगवान वेंकटेश्वर (बालाजी) और देवी लक्ष्मी के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया कि किसे अधिक भोग मिलेगा। भगवान वेंकटेश्वर का मानना था कि उन्हें सबसे अधिक भोग मिलता है, जबकि लक्ष्मी माता ने कहा कि आपको जो भी भोग मिले, उसमें मेरा भी हिस्सा है, क्योंकि वो धन की देवी हैं और उनके बिना कोई भोग संभव नहीं है।
इस विवाद को सुलझाने के लिए दोनों ने एक भक्त की परीक्षा ली। सबसे पहले वो अपने एक धनी भक्त के घर गए, जिसने उन्हें तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खिलाए, लेकिन लक्ष्मी संतुष्ट नहीं हुईं। इसके बाद वो अपने एक सच्चे भक्त के घर गईं। वहां उस भक्त ने अपने घर के बचे हुए आटे, कुछ फल और मेवे को मिलाकर लड्डू बनाए और उन्हें खिलाए। इससे भगवान बालाजी तुरंत संतुष्ट हो गए। इसके बाद उन्होंने लड्डू को अपना प्रिय भोग मान लिया।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार जब तिरुमाला की पहाड़ियों पर भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति स्थापित की जा रही थी, तो मंदिर के पुजारी दुविधा में थे कि भगवान को प्रसाद के रूप में क्या चढ़ाया जाए, तभी एक वृद्ध महिला हाथ में लड्डू की थाली लेकर वहां आई और सबसे पहले प्रसाद मांगा। जब पुजारियों ने इसे प्रसाद के रूप में पेश किया, तो वो इसके दिव्य स्वाद से दंग रह गए। जब उन्होंने वृद्ध महिला से कुछ पूछना चाहा, तो उन्होंने देखा कि प्रसाद गायब है। तब ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी ने स्वयं प्रसाद को इंगित करने में मदद की। एक कथा यह भी है कि भगवान बालाजी ने स्वयं पुजारियों को लड्डू बनाने की विधि सिखाई थी। कहा जाता है कि उसी समय से लड्डू को भगवान वेंकटेश्वर का विशेष प्रसाद माना जाने लगा और इसे भक्तों में बांटने की परंपरा शुरू हुई।
एक प्रसिद्ध कथा है कि जब भगवान वेंकटेश्वर ने देवी पद्मावती से विवाह किया था, तो उन्हें विवाह के लिए धन की आवश्यकता थी। इसके लिए उन्होंने धन के देवता कुबेर से कर्ज लिया था। मान्यता है कि आज भी भगवान वेंकटेश्वर उस कर्ज को चुकाने के लिए धरती पर मौजूद हैं। इसीलिए भगवान तिरुपति बालाजी भक्तों से दान लेकर अपनी हुंडी (गुल्लक) भर रहे हैं। लड्डू प्रसादम को इस कर्ज से जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि यह भगवान के भक्तों को उनके आशीर्वाद के रूप में दिया जाता है और बदले में भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार दान करते हैं, ताकि भगवान वेंकटेश्वर कर्ज चुका सकें।
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