India News (इंडिया न्यूज़),Hajj Yatra 2023: दुनिया के तमामा मुस्लिम हर साल लाखों की संख्या में हज करने जाते हैं। मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए हज यात्रा बेहद जरूरी मानी जाती है, ये इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। इस्लाम के मुताबिक अल्लाह की मेहर पाने के लिए जीवन में एक बार हज यात्रा पर जाना बेहद जरूरी है। हज हर उस मुस्लिम पर फर्ज हैं जो शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं। बता दें इस बार हज 26 जून से शुरू होकर 1 जुलाई को खत्म होगा। इस बार 30 से 40 लाख मुस्लमान हज करने जा सकते हैं।
हज सऊदी अरब के मक्का शहर में होती है। मक्का शहर में ही काबा है, जिसकी तरफ मुंह करके दुनियाभर के मुसलमान नमाज पढ़ते हैं। मुस्लि लोग काबा को इबादत की इमारत मानते हैं। ऐसे में काबा को अतल्लाह का घर कहा जाता है। काबा काले पत्थर से बना है।
इस्लाम धर्म की माने तो पैग़ंबर इब्राहिम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने के लिए कहा था।अल्लाह के हुक्म के बाद पैंगबर इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने पत्थर की एक छोटी सी इमारत बनाई थी। इसी को क़ाबा कहा गया।
ये कहा जाता है कि वहां धीरे-धीरे लोगों ने अलग-अलग ईश्वरों की पूजा शुरू कर दी। ऐसे में इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद (570-632 ई।) को अल्लाह ने कहा कि वो क़ाबा को पहले जैसी स्थिति में लाएं और वहां केवल अल्लाह की इबादत होने दें। साल 628 में पैगंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की थी। ये इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी और इसी यात्रा में पैग़ंबर इब्राहिम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया गया। इसी को हज कहा जाता है। तब से शुरू हुई ये परंपरा आज भी जारी है। हर साल दुनियाभर के मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए पहुंचते हैं। हज पांच दिन में पूरा होता है और ये ईद उल अज़हा यानी बकरीद के साथ पूरी होती है।
बता दें पहले दिन हाजी तवाफ करते हैं। तवाफ में तीर्थयात्री काबा के 7 बार चक्कर लगाते हैं। अगर वे काबा के बिल्कुल नजदीक होते हैं तो इसे छूकर चूमते भी हैं। काबा इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। तवाफ पूरा करने के बाद हाजी काबा के नजदीक दो पहाड़ियों साफा और मारवाह के बीच सात बार चक्कर लगाते हैं। सुबह की नमाज अदा करने के बाद हाजी मीना जाते हैं और वहां पूरा दिन इबादत करते हैं। हाजी यहीं पर एक रात बिताते हैं।
‘अराफात का दिन’ कहलाता है। तीर्थयात्री अराफात पर्वत पर पूरा दिन बिताते हैं। अराफात पहाड़ को ‘माउंट ऑफ मर्सी (दया का पर्वत)’ भी कहा जाता है। इस्लाम के मुताबिक, पैगंबर मोहम्मद ने इसी पहाड़ी पर अपना अंतिम उपदेश दिया था। अगर कोई तीर्थयात्रा अराफात में अपनी दोपहर नहीं बिताता है तो उसकी हज यात्रा को अधूरा माना जाता है। सूर्यास्त होने के बाद हाजी अरफाह से मक्का के नजदीक एक खुली जगह मुजदालिफा जाते हैं। यहां प्रार्थना के बाद शैतान पर पथराव के लिए पत्थर इकठ्ठा करते हैं।
हज के तीसरे दिन बकरीद होती है। इसी दिन कुर्बानी दी जाती है, लेकिन इससे पहले यात्री मीना जाकर शैतान को तीन बार पत्थर मारते हैं। ये पत्थर जमराहे उकवा, जमराहे वुस्ता व जमराहे उला जगहों पर बने तीन अलग-अलग स्तंभों पर मारे जाते हैं। बता दें कि कुर्बान किया गया जानवर गरीबों या जरूरतमंदों में बांटे दिए जाने का नियम है।
बता दें हज के चौथे दिन एक बार फिर शैतान को पत्थर मारने की रस्म होती है।
अगले यानी पांचवे दिन भी ये रस्म होती है। दिन ढलने से पहले हाजी मक्का की तरफ बढ़ जाते हैं। मक्का लौट कर सभी हाजी हज के छठे और ज़िल हिज्जा के 12 वें दिन अपने बाल कटवाते हैं। पुरुष अपने बालों को पूरी तरह से ट्रिम करते हैं। महिलाएं उंगलियों की लंबाई तक अपने बालों को ट्रिम कर सकती हैं।
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