India News (इंडिया न्यूज), Hindu Dharm: खूबसूरती हर इंसान चाहता हैं कि वह बेहद खूबसूरत हो की अगर कोई भी उसे देखे तो उस पर से अपनी नजरें ना हटा सकें ऐसी खूबसूरती उसके पास हो लेकिन हर इंसान खूबसूरत हो ऐसा मुमकिन हो पाना भी आसान नहीं। खासतौर पर ऐसी लालसा औरतों में सबसे ज़्यादा देखने को मिलती हैं। हर औरत चाहती हैं कि वह बेहद खूबसूरत हो दुनिया में उसके जैसी स्त्री ढूंढने से भी ना मिल सके, लेकिन भला ये भी कहा ही मुमकिन हैं।
मगर हिन्दू धर्म में या यूँ कहे कि हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों में कुछ ऐसी महिलाओं का उल्लेख किया गया है जिनकी खूबसूरती की मिसालें आज भी जीवित हैं साथ ही उनकी खूबसूरती इस कदर बेशुमार थी के कोई भी व्यक्ति उन्हें देख पलभर में मोहित न हो जाता तो कहियेगा। ऐसी ही कुछ खूबसूरत महिलाओं से जुड़ी रोचक कहानियां आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
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हिन्दू पुराणों में समुद्र मंथन (churning of the ocean) की कथा एक प्रमुख महत्वपूर्ण घटना है, जिसमें दैत्यों और देवताओं के बीच अमृत कलश प्राप्ति के लिए घोर संघर्ष था। इस कथा में भगवान विष्णु ने एक चालाकी से अपने ‘मोहिनी’ रूप में प्रकट होकर दैत्यों को मोह लिया। मोहिनी की अत्यंत सुंदरता और आकर्षण ने दैत्यों को इतना प्रभावित किया कि वे अमृत कलश को भूल गए और मोहिनी के पीछे लग गए।
पुराणों के अनुसार, मोहिनी ने चालाकी से दैत्यों को भ्रमित किया और देवताओं को अमृत पिलाया। इस तरह, देवताओं को अमृत मिला जबकि दैत्यों को अमृत के बहाने नीरस पानी पिला दिया गया। मोहिनी के सुंदर रूप और उसकी छल की कहानी आज भी लोकप्रिय हैं और इसे खूबसूरती की प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि बहुमुखी बुद्धि और छल का प्रयोग भी जरूरी है जब अपने उद्देश्य को प्राप्त करने की बात आती है।
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देवी अहिल्या की कथा रामायण में एक प्रमुख और विचित्र कथा है, जो उनकी नाम के अनुसार ही एक पत्थर (अहिल्या) की शिला बन जाने के बारे में है। यह कथा वाल्मीकि रामायण में सुनी जा सकती है। कथा के अनुसार, देवी अहिल्या भगवान गौतम ऋषि की पत्नी थीं। वे बहुत ही सुंदर और पतिव्रता थीं। एक बार महर्षि गौतम ऋषि के वन में तपस्या करते समय देवराज इंद्र को उनकी खूबसूरती पर मोह आया। इंद्र ने मोहित होकर उनका रूप धारण कर लिया और उनके साथ वन में रहने लगे।
इसका पति ऋषि गौतम जब तकसाली लौटे तो उन्हें यह दृश्य देखने को मिला। ऋषि गौतम ने इंद्र को पहचान लिया और देवी अहिल्या को श्राप दिया कि वे पत्थर (अहिल्या) की शिला बन जाएंगी। श्रीराम जब उस शिला पर पैर रखेंगे, तब तक ही उनका श्राप खत्म होगा। इस घटना के बाद, श्रीराम ने देवी अहिल्या की कृपा से उन्हें मुक्त कर दिया और उन्हें उनकी पूर्व अवस्था में पुनः लाया। यह कथा धार्मिक शिक्षाएँ देने के साथ-साथ स्त्री और पतिव्रता के महत्व को भी प्रकट करती है।
तिलोत्तमा, स्वर्गीय अपसरा, एक अत्यंत मानसिक और आध्यात्मिक कथा में उल्लिखित है, जिसमें उनकी खूबसूरती और उसका महत्वपूर्ण रोल है। इस कथा के अनुसार, तिलोत्तमा को भगवान ब्रह्मा ने दो असुरों के भाईचारे को तोड़ने के लिए बनाया था। ये दो असुर, सुंद और उपसुंद, पृथ्वी पर अपनी शक्ति का असली इस्तेमाल कर अत्याचार कर रहे थे। उनकी साथ-साथ रहने वाली शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि वे लोगों को भी हराने लगे थे।
इस स्थिति को देखते हुए भगवान ब्रह्मा ने तिलोत्तमा को उत्तम सुंदरता और मानसिक समृद्धि से सम्पन्न बनाया और उन्हें पृथ्वी पर भेजा। उनकी खूबसूरती ने सुंद और उपसुंद की ध्यान बांधने में कामयाबी पाई और वे दोनों एक दूसरे के खिलाफ हो गए। इसके परिणामस्वरूप, वे अपनी अधिकांश शक्तियों का नष्ट कर दिए और अंततः अपनी अहंकार की वजह से अपने ही हाथों मारे गए। तिलोत्तमा की कथा एक उदाहरण है कि खूबसूरती और सामर्थ्य का उपयोग अधिकांश समय उचित और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए। यह भी दिखाता है कि कभी-कभी ईश्वरीय शक्तियाँ मानव समाज के लिए सुरक्षा और संतुष्टि का कारगर साधन बन सकती हैं।
उर्वशी और पुरूरवा की प्रेम कहानी भारतीय पुराणों में एक प्रसिद्ध और विचित्र कथा है, जिसमें देवताओं और मनुष्यों के बीच प्रेम की अनोखी दृष्टि दी गई है।
उर्वशी, देवराज इंद्र के दरबार में एक अप्सरा थी। वह अपनी अमूर्त जीवन से थक चुकी थी और पृथ्वी पर रहने वाले मानवों के जीवन को जानने के लिए बहुत उत्कट हो गई थी। उसने निर्णय लिया कि वह कुछ समय के लिए पृथ्वी पर जाएगी। वापिस आते समय, एक राक्षस ने उसे पकड़ लिया, लेकिन राजा पुरूरवा ने उसे उसके हाथों से बचा लिया। उस घटना के बाद, उर्वशी को पुरूरवा से प्रेम हो गया, और पुरूरवा भी उसकी सुंदरता में मोहित हो गया।
उर्वशी ने इस प्रेम के अभिप्रेत थे कि वह अपना पूरा जीवन पुरूरवा के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन इसके लिए उसे कठिन शर्तें माननी पड़ीं। पहली शर्त यह थी कि वह दो बकरियाँ लेकर आएगी और राजा को उनकी देखभाल करनी होगी। दूसरी शर्त थी कि जब तक वह पृथ्वी पर रहेगी, तब तक वह केवल घी का सेवन करेगी। तीसरी शर्त यह थी कि वे एक दूसरे को नग्नावस्था में केवल यौन संबंध बनाते समय ही देखेंगे।
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इन शर्तों को पुरूरवा ने स्वीकार कर लिया, लेकिन देवताओं को इस प्रेम की जानकारी होते ही उन्होंने उसे तोड़ने के लिए चाल चलने लगे। एक रात को, गन्धर्वों ने उर्वशी की बकरियाँ चुरा लीं। जब उर्वशी ने इसे जाना, तो उसने पुरूरवा से उन्हें बचाने के लिए कहा। पुरूरवा ने उस समय कुछ भी नहीं पहना था, जिससे कि उसे तेजी से बाहर निकलना पड़ा। तब तुरंत ही, गन्धर्वों ने उन पर प्रकाश डाला, और दोनों ने एक दूसरे को नग्नावस्था में देख लिया। इसके परिणामस्वरूप, उर्वशी को अपनी देवलोक वापिस जाना पड़ा।
भारतीय पुराणों में दमयंती और नल की प्रेम कहानी एक प्रसिद्ध और गांठदार कथा है, जो महाभारत के अनुसार विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध राजा वीरसेन के पुत्र नल के बीच घटी। इस कहानी में प्रेम, परीक्षण और सामर्थ्य का एक अद्वितीय मिश्रण है। दमयंती ने अपने स्वयंवर में अपने पति का चयन करने का निर्णय लिया था। इस स्वयंवर में विभिन्न देवताओं ने भी अपने रूप धारण करके भाग लिया था, जिसमें से एक रूप में नल भी शामिल था। दमयंती ने असली नल को पहचान लिया था, क्योंकि उनके प्रेम में इतनी शक्ति थी कि उन्होंने उसकी स्वभाविकता को पहचान लिया था।
दमयंती और नल की शादी हो गई, लेकिन उनकी शादी के बाद दोनों को अपने-अपने कर्तव्यों के कारण दूरी भरनी पड़ी। नल ने अपने भाईयों से जुएं में सब कुछ हार लिया और वन में चला गया, जबकि दमयंती अपने पिता के घर लौट गई।
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नल को वन में एक सांप ने काट लिया था, जिससे उसका पूरा शरीर काला हो गया था। इस हालत में उसे देख पहचान पाना मुश्किल था, लेकिन दमयंती ने उसकी तलाश में दिन-रात भटकती रही। जब नल अपने वास्तविक रूप में वहाँ आया, तो दमयंती ने उसे पहचान लिया और फिर उनकी साथीत्व में उसने अपने पति के साथ उसके संगम पर अपने प्रेम की विजय को साक्षात किया।
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