India News (इंडिया न्यूज), Ajmer Urs 2025: राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स रजब (इस्लामी महीना) का चांद नजर आने के बाद बुधवार को शुरू हो गया और इसके साथ ही उर्स की धार्मिक रस्में भी शुरू हो गई हैं। आपको बता दें कि अजमेर शरीफ की दरगाह को 13वीं सदी के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का अंतिम विश्राम स्थल माना जाता है। यह भारत के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। अजमेर शरीफ दरगाह में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है।
मोइनुद्दीन चिश्ती एक करिश्माई और दयालु आध्यात्मिक उपदेशक थे, जो आध्यात्मिक चमत्कार करने के लिए प्रसिद्ध थे। अजमेर शरीफ की दरगाह सदियों से श्रद्धा का स्थान रही है, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों को आकर्षित करती है। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, ख्वाजा साहब की दरगाह शरीफ 850 साल पुरानी है। इस दरगाह का निर्माण धीरे-धीरे हुआ है। तकरीबन 228 साल तक यह दरगाह कच्ची रही है।
हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती फारसी मूल के सुन्नी मुस्लिम दार्शनिक और विद्वान थे। उन्हें गरीब नवाज और सुल्तान-ए-हिंद के नाम से भी जाना जाता था। वे 13वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप पहुंचे। अजमेर में स्थित उनकी खानकाह को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहा जाता है, जो इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है।
वर्ष 1143 ई. में ईरान (फारस) के सिस्तान क्षेत्र में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म हुआ था। बता दें कि, वर्तमान समय में यह क्षेत्र ईरान के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है और ये अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा से सटा हुआ है। कहा जाता है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के पिता का अच्छा खासा कारोबार था, लेकिन उनका मन आध्यात्म में ज्यादा लगता था। इसलिए उन्होंने अपने पिता का कारोबार छोड़कर आध्यात्मिक जीवन अपना लिया।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने सांसारिक मोह-माया त्यागकर आध्यात्मिक यात्राएं शुरू की थीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात प्रसिद्ध संत हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी से हुई। हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को अपना शिष्य स्वीकार किया और उन्हें दीक्षा दी। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने 52 वर्ष की आयु में शेख उस्मान से खिलाफत प्राप्त की। इसके बाद वे हज पर मक्का और मदीना गए। वहां से वे मुल्तान होते हुए भारत आए। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारत में अजमेर को अपना निवास बनाया और इस्लाम धर्म का उपदेश देना शुरू कर दिया। यह वर्ष 1192 ई. का वही समय था, जब मुइज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम (मुहम्मद गोरी) ने तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली पर अपना शासन स्थापित किया था।
आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिक्षाप्रद उपदेशों ने जल्द ही स्थानीय लोगों के साथ-साथ राजाओं, रईसों के साथ-साथ दूर-दराज के क्षेत्रों के किसानों और गरीब लोगों को भी आकर्षित करना शुरू कर दिया। यह बात वर्ष 1236 ई. की है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु के बाद उन्हें अजमेर में ही दफनाया गया था। मुगल बादशाह हुमायूं ने उन्हें जिस स्थान पर दफनाया था, वहां एक मकबरा बनवाया। आज उनकी वही कब्र यानी दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर शरीफ दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है। यह दरगाह ख्वाजा के अनुयायियों के लिए बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है।
तत्कालीन महाराजा बड़ौदा ने दरगाह शरीफ पर एक खूबसूरत छत्र बनवाया था। बाद में मुगल शासकों जहांगीर, शाहजहां और जहांआरा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। इतिहासकारों का कहना है कि इस दरगाह पर मुहम्मद बिन तुगलक, हुमायूं, शेरशाह सूरी, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और दारा शिकोह के साथ-साथ औरंगजेब जैसे शासकों ने भी दौरा किया था।
India News (इंडिया न्यूज़),Shaurya Samman 2025: लखनऊ में आयोजित ‘शौर्य सम्मान कार्यक्रम’ में बेसिक शिक्षा…
India News (इंडिया न्यूज), Indore Crime News: इंदौर में 27 दिसंबर को होम्योपैथिक डॉक्टर सुनील…
Garlic With Honey Health Benefits: शहद और लहसुन, दोनों ही भारतीय रसोई में आसानी से…
India News (इंडिया न्यूज),Rajasthan News: निहालगंज थाना पुलिस ने व्यापारी से डकैती और अन्य स्थानों…
India News (इंडिया न्यूज़),Rajasthan News: अजमेर के बीसलपुर परियोजना के तहत केकड़ी से अजमेर तक…
Varanasi News: वाराणसी में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित दो दिवसीय काशी सांसद रोजगार मेला युवाओं…