संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
आज 2 अक्टूबर, महात्मा गांधी जी के जन्मदिवस पर विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय ‘अहिंसा दिवस’ मनाया जा रहा है। हम सभी जानते हैं कि गांधी जी ने अहिंसा के द्वारा भारत को आजादी दिलवाई। वे हमेशा यही कहा करते थे कि यदि हम चाहते हैं कि हमारा जीवन शांति से भरपूर हो तो उसके लिए हमें अहिंसा के गुण को मन, वचन और कर्म से अपने जीवन में ढालना होगा। तभी हम न सिर्फ अपने जीवन में बल्कि पूरे विश्व में शांति की स्थापना के सपने को साकार कर पाएंगे।
अब प्रश्न यह उठता है कि अपने जीवन अथवा विश्व में शांति की स्थापना के लिए हम क्या कर सकते हैं? इस विषय में मेरा एक बहुत सरल सा सुझाव है और हमें यह आश्चर्य होगा कि इस विषय को अब तक हमने नजर-अंदाज क्यों किया? विश्व में शांति की स्थापना के लिए पहली बुनियाद हम स्वयं हैं। हमें स्वयं अपने अंतर में ध्यान-अभ्यास द्वारा शांति की खोज करनी होगी और तभी हम विश्व में शांति की स्थापना में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बन पाएंगे। आप कह सकते हैं कि ‘मैं एक अकेला व्यक्ति, स्वयं आंतरिक शांति पाकर पूरे विश्व की शांति में क्या योगदान दे सकता है?’
हम अपने कार्यों द्वारा इस समाज में और यहां तक कि पूरी मानवता में भी परिवर्तन ला सकते हैं। इस परिवर्तन की शुरूआत होगी स्वयं के परिवर्तन और स्वयं की शांति की खोज से। यदि आप ध्यान-अभ्यास द्वारा आंतरिक शांति प्राप्त कर लें तो आपको आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव होगा। उस आत्मिक शांति और आनंद को पाने के पश्चात सबसे पहले आप अपने परिवार और अपने आस-पास के लोगों को शांत करने में मददगार होंगे। उसके बाद शांति का यह दायरा धीरे-धीरे समाज और देश से होता हुआ विश्वभर में फैलेगा। इस प्रकार हम एक-एक करके, कड़ी से कड़ी जोड़कर विश्व शांति की स्थापना कर पाएंगे।
मनौवैज्ञानिक नीति यह समझाती है कि कोई भी इंसान यह नहीं चाहता कि उसे कोई दूसरा व्यक्ति उसे समझाए कि उसके लिए क्या उचित है? यदि कोई दूसरा व्यक्ति उसे बदलने की कोशिश करता है तो इंसान उसका विरोध करता है। जब हमें भी कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने का नया तरीका समझाता है तो हम स्वयं भी उसका विरोध करते हैं। यह सब अच्छी तरह जानते हुए भी हम पता नहीं क्यों दूसरों को बदलने में ही लगे रहते हैं? हम अपने जीवन साथी, अपने बच्चों, अपने रिश्तेदारों और अपने मित्रों को अपने अनुसार बदलना चाहते हैं। बहुत से लोगों की यह भी कोशिश होती है कि हमारे समाज का हर व्यक्ति शांत रहे। इसके अलावा हममें से कई ऐसे भी लोग हैं जो दूसरे देशों व शहरों में भी शांति की स्थापना चाहते हैं।
पर जिस प्रकार हम नहीं चाहते कि कोई दूसरा व्यक्ति हमें बदले, ठीक उसी प्रकार दूसरे भी हमारे इस बदलाव के विरोधी हैं। दूसरों को बदलने का प्रयत्न उन्हें कभी खुशी व शांति प्रदान नहीं कर सकता। अपनी कोशिश से हम केवल स्वयं को बदल सकते हैं। दूसरों को यह कहना काफी नहीं है कि वे शांति का जीवन जियें। यदि हम चाहते हैं कि हमारी बातों का लोगों पर असर हो तो हमें इसे पहले अपने जीवन में ढालना होगा। यदि हम ध्यान-अभ्यास के द्वारा अपने अंतर में आंतरिक शांति प्राप्त करते हैं तो इससे हमारा जीवन ही बदल जाएगा। हम हमेशा शांत और प्रसन्नचित्त रहेंगे, जिससे कि दूसरे व्यक्ति भी जिज्ञासावश यह जानने का प्रयास करेंगे कि हमारी खुशी का राज क्या है? इसके साथ-साथ वे यह भी जानने का प्रयत्न करेंगे कि यह खुशी और शांति हमने किस प्रकार प्राप्त की है? इसके सबसे बड़े उदाहरण संत-महापुरुष होते हैं।
उनका जीवन हमारे सामने शांति की जीती-जागती मिसाल होती है। जो भी उनके चरण-कमलों में आता है उसे वे आंतरिक शांति से जोड़ देते हैं। तो आईये, हम भी ध्यान-अभ्यास के द्वारा अपने अंदर शांति का दीप प्रज्जवलित करें, जिसका प्रकाश दूसरों को भी रोशन कर दे ताकि उनका जीवन भी शांति और प्रकाश से भरपूर हो जाए। तभी हम सच्चे मायनों में अहिंसा दिवस को मना पाएंगे।
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