Categories: धर्म

कामनापूर्ति में सच्चा सुख होता तो एक कामना की पूर्ति हो जाने पर मन स्थायी रूप से शान्त हो जाता

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
गीता मनीषी, स्वामी ज्ञानानंद महाराज

गतांक से आगे…
किसी भी सांसारिक वस्तु में सच्चा सुख नहीं है-यह स्पष्ट हो जाता है तब, जब एक कामना की पूर्ति हो जाने पर तत्सम्बन्धी अनेक अन्य कामनाएं मन में उठने लगती हैं। यदि कामनापूर्ति में सच्चा सुख होता तो एक कामना की पूर्ति हो जाने पर मन स्थायी रूप से शान्त हो जाना चाहिये था। मन में कामना उठने का तात्पर्य यही है कि कोई कमी है, कामना प्रदर्शित करती है कमी को। पानी की कमी ने आपको कुएं अथवा नल के पास जाकर पिपासा शान्त करने को साध्य किया।
इसी प्रकार जब मन में सुख की कमी होती है तभी मन कामना करता है उस वस्तु की जहाँ वह सुखाभास कर लेता है; भले ही उसमें सुख हो अथवा न हो। सारी बात मन के मानने की है। मन ने मान लिया है कि अमुक वस्तु में सुख है, अत: वह अपनी सुख की में कमी पूरी करने के लिए उस वस्तु को लेना चाहेगा। यहाँ ध्यान देने योग्य वात यह है कि उस वस्तु की प्राप्ति के पश्चात यदि उसमें वस्तुत: सच्चा सुख होता तो मन को सदा सर्वदा के लिए स्थिर हो जाना चाहिए था, सुख की कमी अब पूरी हो जानी चाहिये थी। परंतु ऐसा तो देखने में नहीं आता। कुछ समय के लिये तो मन शान्त होता है, लेकिन सुख की कमी पुन: कुछ कालोपरान्त अपना सिर उठाने लगती है। मन फिर से अशान्त हो उठता है और आरम्भ हो जाता है वही क्रम…!
कोई आक्षुण्ण नहीं रह सकता
ज्ञातव्य है कि संसार का कोई भी प्राणी-पदार्थ ऐसी स्थिती में नहीं है कि वह सदा सर्वदा के लिए अक्षुण्ण एवं अपरिवर्तनीय बना रहे। परिवर्तन संसार का सहज स्वभाव है और यह परिवर्तन सतत, हर क्षण आबाधित रूप से होता है। फिर भला कोई भी वस्तु परिवर्तन के इस क्रम से कैसे बच सकती है? परिवर्तन तो आएगा, अनिवार्य रूप से आएगा तो सोचें जिसमें परिवर्तन आएगा, उसको आधार मानकर मन को एकाग्रता की स्थिति में रखना कहाँ तक और कैसे सम्भव हो पाएगा? अस्थिर आधार पर अपने को रखकर मानसिकस्थिरता कि कल्पना कितनी देर तक की जा सकती हैं? जिस समय आपने उस वस्तु की प्राप्ति की थी, उस समय नि:सन्देह वह आपके मानसिक स्तर के अनुरूप थी। अधिक समय नहीं लगेगा जब उस वस्तु में परिवर्तन आ जाएगा या फिर आपका मानसिक स्तर ही वह नहीं रहेगा जो उस समय था जब आपने उस वस्तु को सुन्दर-सुखद समझकर उसे प्राप्त किया था। स्पष्ट है कि इसका सीधा प्रभाव मन को एकाग्रता पर पड़ेगा। ऐसा क्यों हो गया? जिस वस्तु के प्रति मेरी इतनी आसक्ति थी, जो वस्तु मुझे प्राणप्रिय थी, उससे क्यों परिवर्तन आ गया ? यह भाव मन को अवश्य विक्षिप्त करेगा। तब कहां रहेगी वह प्रसन्नता, वह शान्ति जो आपने अपनी भ्रान्ति से उस वस्तु में समझ ली थी?

Sunita

Recent Posts

BJP विधायक के घर के पास मिला एक युवक का शव, सिर पर चोट के निशान

India News MP (इंडिया न्यूज़),Indore News: इंदौर में 3 नंबर विधानसभा क्षेत्र के विधायक गोलू शुक्ला…

2 mins ago

‘इस्कॉन को बैन करो नहीं तो…’, बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामी समूह ने दे डाली जान से मारने की धमकी, खौल उठा हिंदुओं का खून

‘इस्कॉन को बैन करो नहीं तो...’, बांग्लादेश के कट्टरपंथी इस्लामी समूह ने दे डाली जान…

4 mins ago

भारतीय रेलवे ने रचा इतिहास, वाटरलेस यूरिनल तकनीक का इस्तेमाल कर बटोरी सुर्खियां

India News (इंडिया न्यूज) Delhi News:  उत्तर भारत रेलवे ने वाटर लेस यूरिनल तकनीक का…

24 mins ago

शराब बिक्री के लिए योगी सरकार का नया आदेश, पॉश मशीन दुकानों पर अनिवार्य

India News (इंडिया न्यूज़),UP Liquor Policy: UP सरकार ने शराब की बिक्री में डिजिटल पेमेंट…

26 mins ago