धर्म

चीरहरण के बाद जब पतियों से भी टूट चुकी थी द्रौपदी की आस…तब इन 2 स्त्रियों छाया और माया ने पहनाए थे वस्त्र, जानें कौन थी ये महिलाएं?

India News (इंडिया न्यूज), Facts of Mahabharat: महाभारत की सबसे काली और दर्दनाक घटनाओं में से एक थी द्रौपदी का चीरहरण। यह घटना न केवल महाभारत के युद्ध की पूर्वसंध्या का अहम मोड़ थी, बल्कि यह द्रौपदी की अस्मिता और सम्मान की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण की असीम कृपा का भी प्रतीक बन गई।

चीरहरण की भयावह घटना

जब द्रौपदी को सभा में अपमानित किया गया, तो दुशासन ने उन्हें बालों से पकड़कर सभा के बीच में घसीटा और उनके चीरहरण का प्रयास किया। सभा में उपस्थित सभी राजा-महाराजाओं और महात्माओं के बीच यह दृश्य एक घिनौने अपराध के रूप में उभरा। द्रौपदी की अस्मिता की रक्षा के लिए कोई सामने नहीं आया। इसी समय, द्रौपदी ने अपनी लज्जा की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा। उनकी पुकार पर श्रीकृष्ण ने उनका सम्मान बचाया और दिव्य चमत्कारी वस्त्रों से द्रौपदी की लज्जा की रक्षा की।

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वस्त्रों का चमत्कार: पिछले जन्म की कड़ी

द्रौपदी की लज्जा की रक्षा के समय जो चमत्कारी वस्त्र उन्हें प्राप्त हुए, उनके पीछे एक दिलचस्प कथा है, जो उनके पिछले जन्म से जुड़ी हुई है। यह कथा हिंदू धार्मिक मान्यताओं और महाभारत के कुछ अपौराणिक प्रसंगों से संबंधित है।

कहा जाता है कि द्रौपदी का जन्म पंचाल नरेश द्रुपद की पुत्री के रूप में हुआ था, लेकिन उनका एक बहुत पुराना और रहस्यमयी संबंध भी सूर्य देव से था। इस कथा के अनुसार, द्रौपदी ने पिछले जन्म में सूर्य के पुत्र शनि की शादी में उपहार के रूप में वस्त्र दिए थे।

यह उपहार देने की घटना इस कारण महत्वपूर्ण है क्योंकि सूर्य और शनि दोनों ही अपने गुणों और कार्यों में प्रकट होते हैं, जो द्रौपदी के जीवन में एक अजीब रूप से जुड़े हुए थे। द्रौपदी का यह पुण्य कर्म उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ लेने वाला था, जब श्रीकृष्ण ने अपनी भूमिका निभाई।

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श्रीकृष्ण की कृपा और सूर्य देव की मदद

जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को पुकारा, तो भगवान कृष्ण ने इस घटना के संदर्भ में सूर्य देव से अनुरोध किया कि वह द्रौपदी के प्रति अपना ऋण चुकाएं। इसके बाद, सूर्य देव ने अपनी पत्नी छाया और माया को पृथ्वी पर भेजा।

इन दोनों देवियों ने द्रौपदी को वस्त्र पहनाने के लिए उसे दिव्य वस्त्र दिए, जो अनंत रूप में बढ़ते गए, और दुशासन के सभी प्रयास नाकाम हो गए। इस चमत्कारी वस्त्र की कड़ी और द्रौपदी की अस्मिता की रक्षा के कारण ही उसे “पंचकन्या” के रूप में पूजा जाता है। इस घटना को श्रीकृष्ण के “चीरहरण” के रूप में जाना जाता है, और यह उनके दिव्य रूप का प्रमाण है, जो संकट के समय अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

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द्रौपदी का चीरहरण न केवल महाभारत की एक भयानक घटना थी, बल्कि यह धर्म, कर्तव्य, और भगवान की कृपा पर आधारित एक गहरी धार्मिक कहानी भी है। इसे समझते हुए यह भी स्पष्ट होता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने हमेशा अपने भक्तों की रक्षा की है, चाहे वह द्रौपदी हो या कोई और। उनके द्वारा दी गई वस्त्रों का चमत्कारी रूप द्रौपदी के पिछले जन्म के पुण्य कर्मों और भगवान के द्वारा किए गए ऋण चुकाने का एक प्रतीक है।

यह घटना न केवल द्रौपदी की लज्जा की रक्षा का प्रतीक है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि धर्म, पुण्य और कर्तव्य का पालन करना अंततः हर कठिनाई से ऊपर होता है, और भगवान अपने भक्तों को संकटों से उबारने के लिए हमेशा उपस्थित रहते हैं।

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Prachi Jain

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