India News(इंडिया न्यूज), Story of Mahabharat: महाभारत, भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा और गहन महाकाव्य, केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि यह परिवार, राजनीति और धर्म के टकराव की गाथा है। इस महाकाव्य में विदुर एक प्रमुख और बुद्धिमान पात्र थे। उनका जीवन धर्म और नीति के अनुपालन का प्रतीक था। लेकिन ऐसी एक ‘गलती’ थी जो अप्रत्यक्ष रूप से महाभारत युद्ध का कारण बनी। आइए इस पूरी कथा को विस्तार से समझें।
विदुर की भूमिका और उनकी नीति परायणता
विदुर हस्तिनापुर के महामंत्री थे और सत्य व धर्म के सच्चे अनुयायी थे। वे महर्षि वेदव्यास और एक दासी के पुत्र थे, लेकिन अपनी विद्वता और न्यायप्रियता के कारण उन्हें राजसभा में सम्मान मिला। उन्होंने हमेशा सत्य का साथ दिया और कौरवों व पांडवों के बीच निष्पक्ष रहे।
दुर्योधन, जो सत्ता के लिए लालायित था, पांडवों को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता था। विदुर ने कई बार राजा धृतराष्ट्र को दुर्योधन की नीतियों और गलत इरादों के प्रति सचेत किया। लेकिन धृतराष्ट्र अपनी मोहवश, अपने पुत्र को रोकने में असमर्थ रहे।
द्रौपदी चीरहरण के समय विदुर का हस्तक्षेप
महाभारत के प्रमुख घटनाक्रमों में से एक द्रौपदी का चीरहरण था। जब दुर्योधन और दुशासन ने सभा में द्रौपदी का अपमान किया, विदुर ने इसे धर्म और नारी का घोर अपमान कहा। उन्होंने धृतराष्ट्र और सभा के सभी सदस्यों को इसे रोकने के लिए कहा। पितामह भीष्म और अन्य वरिष्ठ सदस्य, धर्मसंकट में फंसे होने के कारण कुछ नहीं कर पाए।
विदुर ने सभा में दुर्योधन के इस कृत्य की तीखी आलोचना की, लेकिन दुर्योधन ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। यह विदुर की ‘गलती’ नहीं थी, बल्कि उनकी धर्मपरायणता थी, जिसे उस समय अनदेखा किया गया। अगर सभा ने विदुर की बात मानी होती, तो शायद महाभारत युद्ध को टाला जा सकता था।
विदुर नीति और महाभारत का आरंभ
विदुर ने हमेशा पांडवों का समर्थन किया क्योंकि वे धर्म के मार्ग पर चल रहे थे। उन्होंने धृतराष्ट्र से आग्रह किया कि वे दुर्योधन को सत्ता के लोभ से रोकें। लेकिन धृतराष्ट्र अपनी कमजोरी के कारण दुर्योधन के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा सके।
दुर्योधन को विदुर का पांडवों के पक्ष में होना खटकता था। उसने कई बार विदुर को दरबार से हटाने की कोशिश की, लेकिन विदुर की न्यायप्रियता और नीति की वजह से वह ऐसा नहीं कर सका। विदुर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि अधर्म का परिणाम विनाश है।
पितामह भीष्म की व्यथा
पितामह भीष्म ने विदुर की धर्मपूर्ण बातों का समर्थन किया। लेकिन वे स्वयं भी अपने वचनों के बंधन में बंधे थे। उन्होंने कई बार धृतराष्ट्र को चेतावनी दी कि अधर्म को बढ़ावा देने से हस्तिनापुर का विनाश निश्चित है।
विदुर की ‘गलती’ का सत्य
यह कहना कि विदुर की कोई ‘गलती’ थी, पूरी तरह सत्य नहीं है। विदुर ने हमेशा धर्म और न्याय का पालन किया। लेकिन उनका दुर्योधन के खिलाफ खुलकर पांडवों का समर्थन करना, दुर्योधन की दृष्टि में एक बड़ी ‘गलती’ थी। अगर विदुर ने दुर्योधन की नीतियों का समर्थन किया होता, तो शायद वह उन्हें दरबार से बाहर नहीं करता।
विदुर की नीति और धर्म परायणता ने हस्तिनापुर को बार-बार सही दिशा दिखाने का प्रयास किया। लेकिन धृतराष्ट्र और दुर्योधन ने उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया। विदुर ने महाभारत युद्ध को टालने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन अधर्म की विजय और लोभ ने धर्म के मार्ग को असंभव बना दिया। यह कथा हमें सिखाती है कि सत्य और धर्म का मार्ग हमेशा कठिन होता है, लेकिन यही सच्चा मार्ग है।