धर्म

महाभारत में कैसे आखिर इस रानी को हुए मरे वे राजा से 7 बेटे…हर एक कि कहानी दूसरे से उतनी ही विचित्र?

India News (इंडिया न्यूज), Facts Of Mahabharat: महाभारत जैसे महाकाव्य में अनेक अद्भुत और रहस्यमय घटनाओं का वर्णन मिलता है। इन्हीं में से एक अनोखा प्रसंग है चंद्रवंशीय राजा व्यूषिताश्व का, जिन्होंने अपनी मृत्यु के बाद भी अपनी पत्नी भद्रा के साथ मिलन किया और उनसे सात पुत्रों का जन्म हुआ। यह घटना महाभारत की गहराई और उसके रहस्यमय पहलुओं को और भी दिलचस्प बनाती है।

राजा व्यूषिताश्व कौन थे?

राजा व्यूषिताश्व चंद्र वंश के पराक्रमी राजा थे। वे राजा शंखण के पुत्र थे और अपने अद्वितीय पराक्रम और धर्मप्रियता के लिए विख्यात थे। उनका विवाह राजा कक्षीवत की पुत्री भद्रा से हुआ था, जो अपनी सुंदरता और सदाचार के लिए जानी जाती थीं। दोनों का जीवन प्रेम और सौहार्द से भरा हुआ था।

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राजा की असामयिक मृत्यु

राजा व्यूषिताश्व अपने पराक्रम और विजय अभियानों के लिए प्रसिद्ध थे। हालांकि, उनका जीवन अल्पकालिक साबित हुआ। एक गंभीर बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद रानी भद्रा शोक में डूब गईं और जीवन के प्रति उनकी सभी इच्छाएं समाप्त हो गईं।

मृत्यु के बाद मिलन की कथा

राजा व्यूषिताश्व की मृत्यु के बाद रानी भद्रा ने तपस्या और अपने पति के प्रति अटूट प्रेम के बल पर देवताओं से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना इतनी प्रबल थी कि उनके मृत पति ने दिव्य रूप में प्रकट होकर उनसे मिलन किया। इस अद्भुत घटना के परिणामस्वरूप, भद्रा ने सात पुत्रों को जन्म दिया। ये सातों पुत्र चंद्र वंश की महान परंपरा को आगे बढ़ाने में सहायक बने।

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महाभारत में उल्लेख

इस अद्वितीय कथा का उल्लेख महाभारत के एक प्रसंग में राजा पांडु ने अपनी पत्नी कुंती से किया था। उन्होंने इस कथा के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की कि धर्म, प्रेम और तपस्या के बल पर असंभव भी संभव हो सकता है। यह कथा न केवल चमत्कारिक है, बल्कि भारतीय परंपरा में निष्ठा और प्रेम की महत्ता को भी दर्शाती है।

राजशेखर बसु की ‘महाभारत’

इस प्रसंग का विस्तार से उल्लेख प्रसिद्ध लेखक राजशेखर बसु की पुस्तक ‘महाभारत’ में भी मिलता है। यह कथा मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित है, जो प्राचीन भारतीय समाज के विचारों को प्रतिबिंबित करती है।

राजा व्यूषिताश्व और रानी भद्रा की यह कथा महाभारत के गूढ़ और आध्यात्मिक पहलुओं को दर्शाती है। यह हमें यह सिखाती है कि प्रेम, तपस्या और निष्ठा के बल पर अद्भुत और चमत्कारिक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। हालांकि, यह कथा मान्यताओं पर आधारित है और इसे ऐतिहासिक तथ्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Prachi Jain

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