धर्म

महाभारत में क्यों शिकारी बन शिव जी को लेनी पड़ गई थी इस शूरवीर योद्धा की परीक्षा…पाशुपति अस्त्र से हुआ था अंत और…?

India News (इंडिया न्यूज़), Lord Shiva in Mahabharat: महाभारत केवल युद्ध और सत्ता संघर्ष की कथा नहीं है; यह धर्म, न्याय, भक्ति, और साहस के आदर्शों का अद्भुत ग्रंथ है। इसमें कुरु वंश की पीढ़ियों की कहानी के साथ-साथ कई महानायकों की आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन भी मिलता है। ऐसी ही एक घटना है जब भगवान शिव ने अर्जुन की कठोर परीक्षा लेकर उन्हें पाशुपति अस्त्र प्रदान किया। यह प्रसंग अर्जुन की निष्ठा, धैर्य, और क्षमता का प्रतीक है।

पाशुपति अस्त्र भगवान शिव द्वारा प्रदत्त एक ऐसा दिव्य अस्त्र है, जिसे महाविनाशकारी माना गया है। यह ब्रह्मा के ब्रह्मास्त्र और विष्णु के नारायणास्त्र के समकक्ष है। अर्जुन ने इस अस्त्र को प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। लेकिन शिवजी महान धनुर्धारी अर्जुन को यह दिव्य अस्त्र देने से पहले यह परखना चाहते थे कि अर्जुन इसे संभालने योग्य हैं या नहीं।

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अर्जुन की तपस्या और शिव जी की परीक्षा

अर्जुन, शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन थे। इसी बीच, मूक नामक दानव, जो जंगली सुअर का रूप धारण किए हुए था, अर्जुन पर हमला करने के लिए तैयार था। अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष उठाकर सुअर पर तीर चलाया। ठीक उसी समय, भगवान शिव ने, जो शिकारी (किरात) के भेष में वहां आए थे, सुअर पर अपना तीर चलाया। दोनों तीर एक साथ सुअर को लगे, और यह तय करना मुश्किल हो गया कि किसके तीर से सुअर मारा गया। यह विवाद इतना बढ़ा कि अर्जुन और किरात के बीच युद्ध छिड़ गया।

अद्वितीय धनुर्विद्या कौशल

युद्ध के दौरान अर्जुन ने अपने अद्वितीय धनुर्विद्या कौशल का प्रदर्शन करते हुए किरात पर बाणों की बारिश कर दी। भगवान शिव, किरात के रूप में, अर्जुन के सारे तीरों को अपने शरीर में समा लेते थे। अर्जुन के सभी तीर खत्म हो गए, तब उन्होंने गांडीव धनुष से प्रहार किया, लेकिन शिवजी उसे भी अपने अंदर समा गए। जब सभी अस्त्र-शस्त्र विफल हो गए, तो अर्जुन ने पेड़ों, चट्टानों, और मुक्कों से प्रहार किया, लेकिन उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भगवान शिव के प्रहार से अर्जुन अंततः बेहोश हो गए।

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अर्जुन ने पहचाना असली रूप

जब अर्जुन को होश आया, तो उन्होंने भगवान शिव की शिवलिंग पर फूलों की माला चढ़ाई। उन्होंने देखा कि वह माला किरात के गले में है। यह देख अर्जुन समझ गए कि यह कोई साधारण शिकारी नहीं, स्वयं भगवान शिव हैं। अर्जुन ने शिवजी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी और उनकी स्तुति की। भगवान शिव ने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर अर्जुन की भक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प की प्रशंसा की। इसके बाद, शिवजी ने अर्जुन को पाशुपति अस्त्र प्रदान किया और उसे उपयोग करने की विधि भी सिखाई।

इस प्रसंग का महत्व यह है कि भगवान शिव ने अर्जुन की परीक्षा लेकर यह सुनिश्चित किया कि वह दिव्य अस्त्र का सही उपयोग कर पाएंगे। यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि धैर्य, समर्पण, और ईश्वर पर अटूट विश्वास से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। अर्जुन और भगवान शिव का यह प्रसंग महाभारत के सबसे प्रेरणादायक और आध्यात्मिक प्रसंगों में से एक है। यह कथा न केवल अर्जुन के साहस और भक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि ईश्वर अपने भक्तों की परीक्षा लेकर उन्हें उनके प्रयासों का फल प्रदान करते हैं।

आखिर कौन होते हैं ये तंगतोड़ा साधु? अखाड़ें में देनी पड़ती है ऐसी भयानक परीक्षा जिनसे कांपती है आज भी हर एक साधु की रूह!

Prachi Jain

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