युद्ध के समाप्त होने के बाद, कुंती अपने दिल में भारी बोझ लिए युद्ध स्थल पर पहुंचीं। वहां उन्होंने कर्ण का शव देखा, जो अब केवल एक निर्जीव शरीर था। कुंती की आँखों से आँसू बहने लगे, और वह कर्ण के शव को अपनी गोद में लेकर जोर-जोर से विलाप करने लगीं। यह दृश्य इतना भावुक था कि जिसने भी देखा, उसकी आँखें नम हो गईं। लेकिन पांडव, जो युद्ध के विजेता बनकर खड़े थे, यह दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी माँ कर्ण के शव पर इस तरह से रोएंगी।
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कर्ण तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हारा बड़ा भाई?
पांडव, विशेषकर युधिष्ठिर, इस स्थिति को समझ नहीं पा रहे थे। उन्होंने अपनी मां से पूछा, “माँ, आप कर्ण के लिए इस तरह क्यों रो रही हैं? वह तो हमारे सबसे बड़े शत्रु थे।” कुंती, जो अपने आँसुओं को रोक नहीं पा रही थीं, ने भारी दिल से सचाई का खुलासा किया। उन्होंने पांडवों को बताया, “कर्ण तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हारा बड़ा भाई था।”
पांडवों के पैरों तले खिसक गई जमीन
यह सुनते ही पांडवों के पैरों तले जमीन खिसक गई। युधिष्ठिर, जो हमेशा सत्य और धर्म का पालन करने वाले थे, इस सच्चाई से हिल गए। उनका मन क्रोध और दुख से भर गया। उन्होंने क्रोधित होकर कुंती से कहा, “माँ, आपने इस सच्चाई को हमसे छिपाकर बहुत बड़ा अन्याय किया है। अगर आप यह बात पहले ही बता देतीं, तो यह युद्ध टल सकता था और लाखों योद्धाओं की जान बच सकती थी। अब हम अपने ही भाई के हत्यारे बन गए हैं।”
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युधिष्ठिर का क्रोध
युधिष्ठिर का क्रोध बढ़ता ही गया। उन्होंने अपनी माँ पर और सभी महिलाओं पर श्राप दिया, “अब से कोई भी महिला अपने दिल में कोई बात नहीं छिपा पाएगी। हर महिला को उसकी बात दूसरों से साझा करनी पड़ेगी।” कहा जाता है कि युधिष्ठिर का यह श्राप आज भी सत्य साबित होता है, और महिलाओं के बारे में यह धारणा बनी हुई है कि वे अपने दिल की बात छिपा नहीं पातीं।
कुंती का विलाप
इस कहानी ने महाभारत के इतिहास में एक विशेष स्थान बना लिया। कुंती का विलाप और युधिष्ठिर का श्राप हमें यह सिखाता है कि सत्य को छिपाने के परिणाम कितने भयानक हो सकते हैं। यदि कुंती ने समय पर यह सच्चाई उजागर की होती, तो शायद महाभारत का युद्ध न होता और अनगिनत निर्दोष जीवन बच सकते थे।
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