धर्म

राम के छोटे भाई शत्रुघ्न की पत्नी में ऐसी क्या थी वो खासियत…जिसके चलते उसे ही मिला था सबसे पहले प्राण त्यागने का वरदान?

India News (इंडिया न्यूज), Shrutkirti In Ramayan: जब हम रामायण की कथा का अध्ययन करते हैं, तो भगवान श्री राम और माता सीता की कथा हमारे मन में एक अनमोल स्थान बनाती है। सभी जानते हैं कि भगवान राम भगवान विष्णु के अवतार थे, और माता सीता देवी लक्ष्मी का रूप थीं। श्रीराम के तीन अन्य भाइयों – लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न का भी उल्लेख होता है, परन्तु इनकी पत्नियों के बारे में जानकारियां बहुत ही कम लोगों के पास हैं। आज, हम बात करेंगे भगवान राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न और उनकी पत्नी श्रुतकीर्ति के बारे में। श्रुतकीर्ति का व्यक्तित्व और उनका विवाह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था।

श्रुतकीर्ति: कौन थीं वे?

शास्त्रों के अनुसार, राजा जनक की दो बेटियां थीं – माता सीता और उर्मिला। साथ ही, राजा जनक के भाई कुशध्वज और उनकी पत्नी चंद्रभागा की दो पुत्रियां थीं – मांडवी और श्रुतकीर्ति। मांडवी का विवाह भरत से हुआ, जबकि श्रुतकीर्ति का विवाह शत्रुघ्न से हुआ था। इस प्रकार, श्रुतकीर्ति का विवाह रघुकुल के सबसे छोटे पुत्र शत्रुघ्न के साथ संपन्न हुआ।

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श्रुतकीर्ति का दिव्य स्वरूप और उनका अवतार

पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर राम के रूप में अवतार लिया था। इसी प्रकार, शेषनाग लक्ष्मण के रूप में अवतरित हुए, और भगवान विष्णु के प्रिय चक्र और शंख ने भरत और शत्रुघ्न के रूप में जन्म लिया। देवी लक्ष्मी ने सीता के रूप में अवतार लिया और उनके द्वारा धारण किया गया चक्र श्रुतकीर्ति के रूप में अवतरित हुआ। इस प्रकार, श्रुतकीर्ति देवी लक्ष्मी के चक्र का प्रतीक मानी जाती हैं।

श्रुतकीर्ति का गुण और चरित्र

श्रुतकीर्ति एक दिव्य और दूरदर्शिता रखने वाली कन्या थीं। वे विनम्रता, समर्पण और आदर्शों की प्रतिमूर्ति मानी जाती थीं। रघुकुल के सबसे छोटे बेटे शत्रुघ्न की पत्नी होने के नाते, उन्होंने अपनी मर्यादा का पालन करते हुए रघुकुल में पूर्ण आदर और गरिमा प्राप्त की। वे अपने परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठ थीं और अपने जीवन में एक आदर्श गृहणी के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।

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माता सीता और श्रुतकीर्ति का संबंध

जब माता सीता ने पृथ्वी में समा कर अपने धाम वापसी का निर्णय लिया, तो उनके बाद श्रुतकीर्ति ने अपने प्राण त्याग दिए और पुनः देवी लक्ष्मी के चक्र रूप में विराजमान हुईं। इस प्रकार, श्रुतकीर्ति ने न केवल रघुकुल की परंपराओं को सजीव रखा बल्कि अपने अवतार की भूमिका को भी पूर्ण किया।

श्रुतकीर्ति के जीवन से हमें यह सीखने को मिलता है कि एक नारी में कितनी विनम्रता, समर्पण और त्याग होता है। श्रुतकीर्ति न केवल शत्रुघ्न की धर्मपत्नी थीं बल्कि वे एक दिव्य गुणों से सम्पन्न देवी का प्रतीक भी थीं।

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Disclaimer: इंडिया न्यूज़ इस लेख में सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए बता रहा हैं। इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

Prachi Jain

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