India News (इंडिया न्यूज़), Bhishma Pitamah Guru Mantra For Arjuna: महाभारत का युद्ध केवल शक्ति और सामरिक कौशल का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह धर्म, नीति, और कर्तव्य का भी संघर्ष था। इस महायुद्ध में भीष्म पितामह की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। वे न केवल कौरवों के सेनापति थे, बल्कि अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक धर्म और कर्तव्य के प्रतीक बने रहे। भीष्म पितामह, जिन्हें देवव्रत के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने जीवन के अंतिम समय में अर्जुन को कुछ ऐसे अनमोल ज्ञान दिए, जो आज भी जीवन की राह में हमें मार्गदर्शन करते हैं।
भीष्म पितामह का पहला ज्ञान अर्जुन के लिए यह था कि जीवन में कभी भी घमंड या अहंकार को अपने ऊपर हावी न होने दें। घमंड न केवल मनुष्य को अंधा कर देता है, बल्कि उसे विनाश के मार्ग पर भी ले जाता है। भीष्म पितामह ने अर्जुन को यह सिखाया कि विनम्रता और संयम से ही मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकता है। घमंड न केवल व्यक्ति की प्रगति में बाधक बनता है, बल्कि यह उसके पतन का कारण भी बनता है।
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दूसरी सीख जो भीष्म पितामह ने अर्जुन को दी, वह यह थी कि जीवन में हमेशा अपने कर्तव्य और धर्म को सर्वोपरि रखना चाहिए। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, मनुष्य को अपने धर्म और कर्तव्य से विचलित नहीं होना चाहिए। धर्म का पालन करना ही सच्चे जीवन का आधार है, और यही सच्चा सुख प्रदान करता है।
भीष्म पितामह ने अर्जुन को भोजन के प्रति सावधानी बरतने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि कभी भी उस भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए जिसमें बाल हो, जो बासी हो, या जिसे खाते समय कोई टोके। ऐसा भोजन शरीर और मन दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है। यह एक साधारण सलाह है, लेकिन इसमें छिपी सावधानी हमें अनुशासित और स्वस्थ जीवन की ओर प्रेरित करती है।
भीष्म पितामह ने अर्जुन को सिखाया कि जीवन में बड़ों का सम्मान और छोटों के साथ सद्व्यवहार अत्यंत महत्वपूर्ण है। बड़ों का अपमान और छोटों के साथ बुरा व्यवहार कभी नहीं करना चाहिए। यह सीख केवल एक सामाजिक नियम नहीं है, बल्कि यह जीवन में संबंधों की गरिमा बनाए रखने का मूल मंत्र है। दूसरों का सम्मान करना और उन्हें उचित महत्व देना, जीवन को समृद्ध और सुखी बनाता है।
भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया कि त्याग के बिना जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। त्याग ही वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य को सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। त्याग का अर्थ केवल भौतिक वस्तुओं का त्याग नहीं है, बल्कि अपने स्वार्थ, अहंकार और आसक्ति का त्याग करना भी आवश्यक है। यही त्याग जीवन को उच्चता और आनंद से भर देता है।
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अंत में, भीष्म पितामह ने अर्जुन को यह सीख दी कि धन और सुख की प्राप्ति के लिए कभी भी दूसरों का हक नहीं छीनना चाहिए। दूसरों का हक छीनने वाला व्यक्ति न केवल अपने साथ बल्कि अपने पूरे कुल का भी नाश कर देता है। यह सीख हमें बताती है कि जीवन में ईमानदारी, न्याय और संतुलन को बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
भीष्म पितामह की ये छह अनमोल सीखें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी महाभारत के समय थीं। इन सीखों का पालन करने वाला व्यक्ति जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकता है। भीष्म पितामह के ये ज्ञान हमें सिखाते हैं कि जीवन का असली उद्देश्य केवल भौतिक सफलता नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और सद्गुणों का विकास है। इसलिए, हमें इन सीखों को अपने जीवन में अपनाकर अपने व्यक्तित्व और समाज को सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
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