India News (इंडिया न्यज़), Jain Muni Lifestyle: भारत ऋषि-मुनियों और कठोर तपस्वीयों का देश रहा है। यहां कई ऐसी परंपराएं रही हैं जिसके बारे में शायद ही किसी व्यक्ति को पता हो। ऐसा ही है जैन संप्रदाय में मुनि बनने का तरीका। जैन समुदाय में मुनि बनने का नियम काफी कठोर होता है। जैन मुनि किसी भी मौसम में बिना कपड़ों के ही रहते हैं। चाहे गर्मी हो या सर्दी नंगे पैर घूमते हैं। सामान्य आदमी अपने बालों को छोटा करवाने के लिए कैंची का इस्तेमाल करते हैं। इसके उलट जैन मुनि अपने बोलों को को हाथों से उखड़वाते हैं। आइए आज जानते हैं कि जैन मुनि इतने सख्त जीवन का पालन क्यों करते हैं?
जैन मुनि अपने हाथों से सिर और मूंछों के बाल उखाड़ते हैं। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि बाल उखाड़ने के दौरान उन्हें चेहरे पर दर्द का भाव तक आने देने की अनुमति नहीं होती है। जैन संप्रदाय के दो शाखा है एक श्वेतांबर और दूसरा दिगंबर। इनमें श्वेतांबर जैन सफेद कपड़े पहनते हैं, वहीं दिगंबर जैन बिना कपड़ों के ही रहते हैं। दिगंबर जैन मुनि बहुत ही कठोर जीवन व्यतीत करते हैं। हाथों से बाल उखाड़ना दिगंबर मुनि उनके धर्म का हिस्सा है। जैन मुनि कहते हैं कि जैन धर्म दुख दर्द को सहने वालों का धर्म है। इस परंपरा को केशलोंच कहा जाता है।
अब यह बात दिमाग में आ रही होगी कि आखिर जैन मुनि बालों को क्यों उखाड़ते हैं? केशलोंच जैन मुनियों के तपस्या का प्रमुख हिस्सा है। केशलोंच कम से कम 2 महीने और ज्यादा से ज्यादा 4 महीने के अंदर करते हैं। जैन मुनि किसी भी तरह के साज सज्जा और सुंदरता से परहेज करते हैं। चूंकि बोल भी मनुष्य की सुंदरता को बढ़ाता है इसिलिए वह इसे अपने हाथों से उखाड़ते हैं। बालों को उखाड़ते समय मुनि यह भावना रखते हैं कि इस कष्ट के साथ उनके पाप कर्म भी दूर होते हैं। केशलोंच के दिन जैन मुनि उपवास रखते हैं।
दिगंबर जैन मुनि बिना वस्त्र के रहते हैं। जैन मुनियों का मानना होता है कि नग्न अवस्था मानव की पाकृत अवस्था है। जबकि कपड़े मानव ने अपने सुख सुविधा के लिए इजाद किए। वस्त्र लोगों के विकारों को ढंकने के लिए पहने जाते हैं जबकि जैन मुनियों को विकारों से परे माने जाते है। नवजात शिशु की ही तरह जैन मुनि भी विकारों से परे होते हैं। दूसरा कारण यह भी है कि कपड़े पहनने से साधना में रुकावटें आती हैं। दरअसल, कपड़े पहनने पर उसकी साफ-सफाई करनी पड़ेगी। इस दौरान छोटे-छोटे जीवों पर हिंसा होती है। इससे अहिंसा का व्रत खंडित होता है। इसके अलावा लोगों का कपड़े से एक मोह भी होता है इसलिए भी जैन मुनि इससे दूर रहते हैं।
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जैन मुनि किसी भी मौसम और परिस्थिती में जूते-चप्पल नहीं पहनते हैं। जैन मुनियों का मानना है कि चप्पल बनाने के लिए जीव हिंसा होगी और फिर उनको पहनकर चलने पर भी जीव हिंसा की संभावना है। इससे उनके अहिंसा व्रत के पालन में बाधा उत्पन्न होती है। साथ ही जूते-चप्पलों भी भोग कि वस्तु मानी जाती हैं जिससे लोगों को मोह होता है। इससे लिए भी जुते-चप्पल नहीं पहनते हैं।
जैन मुनि जमीन पर ही सोते हैं। वे या तो सीधे जमीन पर सोते हैं। कई जैन मुनि सोने के लिए जमीन पर लकडी या सूखी घास का भी यूज करते हैं। दिगंबर जैन मुनि करवट बहुत कम बदलते हैं। इसका कारण भी अहिंसा व्रत का पालन करना है।
कई जैन मुनि अपने मुंह और नाक को कपड़े से ढंककर रखते हैं। इसके पीछे की वजह खुले मुंह और नाक से कई तरह के कीटाणु उनके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इससे वे कई तरह के बिमारियों से बचे रहते हैं। जैन मुनि शाम होने से पहले ही भोजन कर लेते हैं। जैन मुनियों का मानना है कि सूर्यास्त के बाद भोजन करने से शरीर में कई तरह के विकार पैदा होते हैं। इसके अलावा जैन मुनि दिन में एक बार ही भोजन ग्रहण करते हैं।
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