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नास्तिक होना संभव नहीं है

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:

ताई सितुपा
ताई सितुपा कहते हैं कि जिन-जिन चीजों का हम अनुभव कर सकते हैं, वो सब धर्म है। दैनिक जीवन में धर्म का अभ्यास करना सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि अगर इस जीवन में आप हर रोज धर्म का अभ्यास नहीं करेंगें तो कब करेंगें? हमारा यह दैनिक जीवन ही हमारे लिये सबकुछ है जो हमें एक तोहफे के रूप में मिला है। इसके अलावा हमारा और कहीं कोई अस्तित्व नहीं है जहां हमें यह रोजमर्रा की जिंदगी मिलती हो।
कई लोगों के लिये धर्म एक अलग ही चीज बन गई है और इसे वो एक विकल्प के तौर पर अपनाने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे कि मैं धर्म का अभ्यास करता हूं या मैं धर्म का अभ्यास नहीं करता हूं। इसलिये जहां तक मैं समझता हूं कि लोगों को शायद यह पता ही नहीं है कि धर्म किस चीज के बारे में है। वह इसे बुनियादी तौर पर समझ नहीं पा रहे हैं। भले ही यह आपका विश्वास है कि आप किसी चीज में विश्वास नहीं करते।
आप भले ही किसी चीज का अभ्यास न करें लेकिन उस चीज को नहीं करने का अभ्यास करना भी एक अभ्यास है और यही आपका अभ्यास है। इसलिये कोई भी यह नहीं कह सकता है कि मैं एक शुद्ध और सच्चा नास्तिक हूं या मैं एक शुद्ध या सच्चा अभ्यासकर्ता नहीं हूं। यह असंभव है। लेकिन मानव होने के कारण हमारी कुछ जटिलताएं है जो एक बहुत ही अजीब चीज है। यह हमें थोड़ा बेवकूफ भी बनाती है क्योंकि हमारे इतने सारे नाम, विशिष्टताएं और विवरण हैं। केवल इस कारण हम भ्रमित हो रहे हैं और हमारी यह खासियत है कि हम चीजों को अनावश्यक रूप से भ्रामक बना देते हैं। सबसे पहले यह बहुत आवश्यक है कि इस बात को परिभाषित किया जाए कि अभ्यास क्या है, धर्म क्या है, दैनिक क्या है और जीवन क्या है। फिर इन सबों को एक साथ मिलाकर यह समझना होगा कि हर रोज जीवन में धर्म का अभ्यास करना क्या है। तो जीवन क्या है? बुद्ध की शिक्षा के अनुसार जीवन की परिभाषा बिल्कुल आसान है। उनका कहना है कि मैं जीवित हूं या तुम जीवित हो, यही जीवन है। इसमें कोई रहस्य नहीं है। जीवन क्या है यह तलाशने हमें कहीं और नहीं जाना है।
आप जीवित हैं, मैं जीवित हूं और हमने बस किसी तिब्बतीय या भारतीय शरीर को धारण कर लिया है। यह शरीर अब आपका है जिसमें आप जीवित हैं। जवान, बूढ़े, मध्यम आयु वर्ग के, बच्चे, भिक्षुक, नन, गृहस्थ आदमी, गृहस्थ औरतें ये सब किसी ना किसी भौतिक शरीर में जीवित हैं। और जब वक्त आता है तब आप उस शरीर को त्याग देते हैं। आप अब भी जीवित हैं लेकिन उस शरीर में नहीं।
शरीर मर जाता है पर आपका मस्तिष्क अभी भी जीवित है और ऐसा चलता रहता है। हमारा यह मन कभी नहीं मर सकता। धर्म एक संस्कृत शब्द है और तिब्बतीय भाषा में इसे चो कहा जाता है। आप जो कुछ भी देख सकते हैं वो सब धर्म है और यही अंतिम सत्य है।

Mukta

Sub-Editor at India News, 7 years work experience in punjab kesari as a sub editor, I love my work and like to work honestly

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