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Hindu Religion में मृत्यु के बाद Shradh करना बेहद जरूरी

और वो भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाते हैं

पितृ पक्ष शुरू हो गया है। यह 15 दिन का होता है, जो भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन की अमावस्या यानि सर्व पितृ अमावस्या तक खत्म होता है। शास्त्रों में 3 प्रकार के ऋण बताए गए हैं। जिनमें देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। हमारे पूर्वज या पितर पितृ पक्ष में धरती पर निवास करते हैं। पितृ ऋण उतारने के लिए ही पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है। मान्यता है कि इस अवधि में उन्हें जो श्रद्धा से अर्पित किया जाता है वो उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं।

परंपरा के अनुसार हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी है। अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वो भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है।

पूर्वजों को प्रसन्न करना जरूरी

ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। इस दौरान अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण करने के लिए कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं।

श्राद्ध और इसकी विशेषता

ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।

पितर रुष्ट होने पर करना पड़ता है समस्याओं का सामना

अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं आती हैं। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

पुराणों में भी है श्राद्ध का जिक्र

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का बहुत महत्त्व है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करते हैं। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई,पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

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श्राद्ध में कौओं को महत्त्व क्यों ?

कौए को पितरों का रूप माना जाता है। श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए के रूप में नियत तिथि पर दोपहर के समय आते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है। पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है। जिनकी मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।

किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध

श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी हैं।

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Mukta

Sub-Editor at India News, 7 years work experience in punjab kesari as a sub editor, I love my work and like to work honestly

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