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Jhalkari Bai Jayanti 2021 झलकारी बाई की जयंती पर विशेष

India News Editor • LAST UPDATED : November 22, 2021, 2:33 pm IST

Jhalkari Bai Jayanti 2021

इंडिया न्यूज, अंबाला

मस्तमौला एक लड़की जो इरादों में पक्की, जो भी काम सामने दिखा कर दिया। चाहे घोड़ा दौड़ाने का हो या चलाने का, या किसी भी रणभूमि पर लड़ाई का। किसी ने भी बुलाया तो मन से काम कर दिया। जब मेकअप कर लिया तो खुद ब खुद रानी लगने लगी। रानी के साथ लड़ाई पर गई जब रानी घिर गई तो खुद रानी बन लड़ पड़ी। क्योंकि रानी उसकी सखी थी। ये दोस्ती की बात तो थी साथ ही अपने राज्य के प्रति प्रेम की बात थी। जी हां हम बात कर रहे झलकारी बाई की। इस गाथा को सुनकर मैथिली शरण गुप्ता की कुछ पंक्तियां याद आती हैं।

जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।

एक आम परिवार में हुआ था जन्म (Jhalkari Bai Jayanti 2021)

22 नवम्बर 1830 को उत्तर प्रदेश के जिला झांसी के पास के भोजला गांव में एक निर्धन कोली परिवार सदोवर सिंह के घर झलकारी बाई ने जन्म लिया। झलकारी बहुत छोटी थीं, जब उनकी मां जमुनादेवी का साया उनके सिर से उठ गया। और पिता ने मां-बाप दोनों का प्यार दिया। पिता सदोवर सिंह अपनी बेटी झलकारी की परवरिश एक बेटे की तरह की थी। पिता ने छोटी उम्र से झलकारी बाई को घुड़सवारी, हथियार चलाना आदि सिखाया और जल्द ही वह एक अच्छी योद्धा बनकर उभरीं। साथ ही पशुओं के रखरखाव से लेकर जंगल से लकड़ियां एकत्र करने तक हर एक काम में वह अपने पिता का सहारा बनीं।

तेंदुए को मारा, डकैतों को भगाया (Jhalkari Bai Jayanti 2021)

एक दिन झलकारी जंगल में घर के लिए लकड़ियां एकत्र कर रही थीं कि अचानक एक तेंदुए ने उन पर हमला कर दिया। ऐसी स्थिति में उन्होंने साहस और धैर्य का परिचय दिया। कुल्हाड़ी लेकर वह तेंदुए की तरफ बढ़ीं और कुछ देर संघर्ष के बाद तेंदुए को मौत के घाट उतार दिया। एक अन्य मौके पर गांव के मुखिया के घर कुछ डकैतों ने हमला कर दिया तो वह उनके सामने काल बनकर खड़ी हो गई। उन्होंने ना सिर्फ डकैतो के समूह को पीछे हटने के लिए मजबूर किया बल्कि उस गांव से भगा दिया। इन कामों के बाद वह गांव के लोगों की लाड़ली बिटियां बन गईं। और सबकी जुबान पर एक ही नाम छा गया झलकारी।

रानी को झलकारी की यह अदा बहुत पसंद आई। वो कोई और रानी नहीं वह थीं रानी लक्ष्मीबाई। जिनका नाम इतिहास के पन्नों आज भी नाम है। झलकारी की पढ़ाई-लिखाई नहीं हुई। क्योंकि उस समय इतनी पढ़ाई लिखाई नहीं होती थी। लोग उंगलियों पर जोड़ घटाने का काम करते थे। उस समय बहादुरी यही थी कि दुश्मन का सामना कैसे करें और चतुराई ये थी कि अपनी जान कैसे बचाएं।

तोपची से किया था विवाह (Jhalkari Bai Jayanti 2021)

फिर झलकारी की शादी भी हो गई एक सैनिक के साथ। एक बार पूजा के अवसर पर झलकारी रानी लक्ष्मीबाई को बधाई देने गई तो रानी को भक्क मार गया। झलकारी की शक्ल रानी से मिलती थी और फिर उस दिन से शुरू हो हुआ दोस्ती का सिलसिला।
कहते हैं कि झलकारी बाई का युद्ध कला के प्रति इतना प्रेम था कि उन्होंने शादी भी एक तोपची सैनिक पूरण सिंह से की थी। पूरण सिंह लक्ष्मीबाई के तोपखाने की रखवाली किया करते थे। पूरण सिंह ने झलकारी बाई की मुलाकात रानी लक्ष्मीबाई से करवाई थी। उनकी युद्ध कला से प्रभावित होकर रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया था।

सीखा युद्ध कौशल (Jhalkari Bai Jayanti 2021)

जल्द ही लक्ष्मीबाई ने झलकारी को दुर्गा सेना का हिस्सा बना दिया। जहां उन्होंने एक पेशेवर योद्धा की तरह बंदूक, तोप और तलवार चलाने के गुर सीखे। यह वह दौर था, जब लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के चलते अंग्रेज लगातार झांसी पर कब्जे का प्रयास कर रहे थे।

दूसरी तरफ लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना के साथ उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए ब्रिटिशों के कई हमलों को नाकाम कर दिया। सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ था। मगर दूल्हेराव नामक एक सेनानायक अंग्रेजों से जा मिला, जिसके कारण अंतत: अंग्रेज किले के अंदर आने में कामयाब रहे। ऐसी विषम परिस्थितियों में झलकारी बाई ने रानी को किला छोड़कर जाने की सलाह दी।

रानी लक्ष्मीबाई के वेश में लड़ीं थीं झलकारी बाई (Jhalkari Bai Jayanti 2021)

1857 की लड़ाई में झांसी पर अंग्रेजों ने हमला कर दिया। झांसी का किला अभेद्य था पर रानी का एक सेनानायक गद्दार निकला। नतीजन अंग्रेज किले तक पहुंचने में कामयाब रहे। जब रानी घिर गईं, तो झलकारी ने कहा कि आप जाइए, मैं आपकी जगह लड़ती हूं। रानीलक्ष्मी बाई निकल गईं और झलकारी उनके वेश में लड़ती रहीं। जनरल रोज ने पकड़ लिया झलकारी को। उन्हें लगा कि रानी पकड़ ली गई है। उनकी बात सुन झलकारी हंसने लगी। रोज ने कहा कि ये लड़की पागल है। पर ऐसे पागल लोग हो जाएं तो हिंदुस्तान में हमारा रहना मुश्किल हो जाएगा। शुरूआत में रानी मानने को तैयार नहीं थी। मगर झलकारी के समझाने पर वह तैयार हो गईं। झलकारी आगे की तैयारी कर रही थी, तभी उन्हें खबर मिली की उनके पति पूरण शहीद हो गए है। यह झलकारी के लिए मुश्किल समय था। मगर उनके पास आंसू बहाने तक का समय नहीं था।

पति की तरह वीरगति को प्राप्त हुईं

अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उन्होंने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और मोर्चा संभाला। कुछ देर लड़ने के बाद वह ब्रिटिश जनरल रोज से मिलने पहुंच गईं। यह देखकर अंग्रेज खुशी से पागल हो गए। उन्हें लगा कि उन्होंने झांसी के किले को जीत लिया। अपितु उनके हाथ जिंदा रानी भी लग गई है। मगर वह गलत थे। जल्द ही अंग्रेजों को इसका एहसास हो गया कि झलकारी बाई ने उन्हें बेककूफ बनाया है। अंत में अपने पति की तरह झलकारी भी वीरगति को प्राप्त हुईं और इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गईं।

22 जुलाई 2001 जारी हुआ डाक टिकट (Jhalkari Bai Jayanti 2021)

भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 को झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की है। लखनऊ में झलकारी बाई के नाम से एक हॉस्पिटल भी है।

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