India News (इंडिया न्यूज), Kailash Kund Yatra 2024: इस वर्ष पवित्र कैलाश कुंड वासुकी नाग यात्रा 29 अगस्त से शुरू होने जा रही है। इस यात्रा में हर साल हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। भद्रवाह के गाथा स्थित भगवान वासुकी नाग मंदिर से शुरू होने वाली इस यात्रा में मुख्य रूप से उधमपुर के डुडू बसंतगढ़ समेत बिलावर, बसोहली और बनी क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। झील में पवित्र स्नान करने के बाद ये श्रद्धालु वापस लौट जाते हैं। लेकिन इन श्रद्धालुओं को भद्रवाह से कैलाश कुंड, उधमपुर से कैलाश कुंड और बनी से कैलाश कुंड तक कई जंगलों को पार करना पड़ता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कैलाश कुंड में नागराज वासुकी निवास करते हैं।
कैलाश कुंड का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, बसोहली के राजा भूपतपाल जिनका राज्य भद्रवाह तक फैला हुआ था। वे भद्रवाह से लौट रहे थे, रास्ते में पड़ने वाले कैलाश कुंड को पार करने के लिए वे कुंड में घुस गए। जब वे तालाब के बीच पहुंचे तो तालाब में रहने वाले सांपों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। जब राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उसने कानों में पहनी हुई सोने की बालियां भेंट की और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। तब सांपों ने उसे जीवित ही तालाब से बाहर जाने दिया। तालाब से बाहर आकर राजा ने अपनी आगे की यात्रा शुरू करने से पहले वहां झरने से अपनी प्यास बुझाने लगे और पानी के साथ उनकी सोने की बालियां भी उनके हाथ में आ गईं। इसके बाद राजा ने वहां वासुकीनाथ का मंदिर बनवाने का संकल्प लिया।
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क्या है मान्यता?
मान्यता है कि राजा ने उस स्थान से प्रतीक स्वरूप एक पत्थर उठाया और बसोहली अपने साथ ले गए और आगे की यात्रा पर निकल पड़े। अभी वे पनियालग पहुंचे ही थे कि किसी काम से उन्होंने उस पत्थर को वहीं जमीन पर रख दिया और फिर जब उसे उठाने की कोशिश की तो पूरी कोशिश करने के बाद भी वे उसे उठा नहीं पाए। इसके बाद राजा ने पनियालग में वासुकीनाथ के मंदिर और कैलाश कुंड का निर्माण करवाया। मान्यता है कि यहीं से यात्रा शुरू हुई और अब तक जारी है।
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