धर्म

क्या द्वापर युग के ‘नकली कृष्ण’ को जानते हैं आप? भगवान भी खा गए थे धोखा, इस अंग से हुई थी पहचान

India News (इंडिया न्यूज), Impersonator Of Shri Krishna: द्वारका नगर के रंग-बिरंगे आभा में, श्री कृष्ण ने अपने दिव्य राज्य को बड़े आनंद के साथ संचालित किया। उनकी दिव्यता और यश ने सम्पूर्ण पृथ्वी को उनकी महानता की गवाही दी। लेकिन इस सुखद स्थिति में एक अंधेरा बादल भी था, जो उनकी शांति को भंग करने के लिए उभर आया।

दूर के नगरी पौंड्रक में, एक राजा ने स्वयं को भगवान विष्णु का अवतार घोषित कर दिया। पौंड्रक का गर्व और अभिमान उसकी सीमाओं को लांघ गया था। उसने न केवल खुद को विष्णु का अवतार मान लिया, बल्कि उसने श्री कृष्ण को भी नकली विष्णु कहकर उनकी आलोचना की। उसने एक सुंदर सुदर्शन चक्र, कौस्तुभ मणि, शंख, और मोर पंख को प्राप्त कर लिया था, और खुद को भगवान का वास्तविक रूप मान लिया था। पौंड्रक का मानना था कि उसने उन सभी दिव्य वस्त्रों और आभूषणों को प्राप्त कर लिया है, जो भगवान विष्णु की पहचान हैं।

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क्या लिखा था सन्देश में?

एक दिन, पौंड्रक ने द्वारका में श्री कृष्ण को एक संदेश भेजा। संदेश में लिखा था: “हे श्री कृष्ण, अब धरती पर भगवान विष्णु का असली अवतार उपस्थित है। इसलिए तुम द्वारका छोड़कर चले जाओ। यदि तुम नहीं गए, तो तुम्हें युद्ध के लिए तैयार रहना होगा।” पौंड्रक की चुनौती ने द्वारका में हलचल मचा दी। श्री कृष्ण ने इस अपमानजनक संदेश को सुना और हंसते हुए कहा, “यह राजा भले ही अपनी मूर्खता से अनभिज्ञ है, लेकिन मैं उसकी चुनौती को नजरअंदाज नहीं कर सकता।”

समय आया और पौंड्रक ने अपनी सेना को संगठित कर लिया, और द्वारका की ओर बढ़ा। श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य सेना को तैयार किया और पौंड्रक के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गए। पौंड्रक ने कृष्ण को देखकर ठहाका लगाया और कहा, “तुम्हें अब मेरे सामने हार माननी पड़ेगी। देखो, मैं ही असली विष्णु हूँ!” उसने अपने ही जैसे स्वरूप को पेश किया और भगवान के रूप में प्रस्तुत हुआ।

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जब हुआ महासंग्राम

युद्ध की शुरुआत हुई। पौंड्रक ने अपने शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग किया, लेकिन श्री कृष्ण ने अपनी अद्भुत शक्ति और युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया। दोनों के बीच एक महान और घमासान युद्ध हुआ, जो कई घंटे चला। पौंड्रक ने अपनी पूरी शक्ति झोंक दी, लेकिन श्री कृष्ण के आगे उसकी सारी विधियाँ विफल हो गईं।

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पौंड्रक को पराजित कर श्री कृष्ण हुए थे विजय

अंत में, श्री कृष्ण ने पौंड्रक को पराजित कर दिया और उसके अहंकार को समाप्त कर दिया। पौंड्रक की मृत्यु के साथ ही द्वारका की शांति फिर से बहाल हो गई। श्री कृष्ण ने इस विजय के साथ अपने राज्य में लौटकर लोगों को संजीवनी शक्ति दी और उन्हें यह सिखाया कि आत्मा की सच्चाई किसी भौतिक रूप और दिखावे से अधिक महत्वपूर्ण होती है।

इस प्रकार, पौंड्रक की चुनौती और श्री कृष्ण की विजय की कथा हमारे लिए एक अमूल्य सिख देती है कि सत्य और सच्चाई का मार्ग हमेशा विजयी होता है, और जो अपनी सच्चाई को समझता है, वही सच्चा भगवान होता है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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