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जाने कन्याकुमारी मंदिर का इतिहास

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
विशेष अवसरों पर देवी का श्रृंगार हीरे-जवाहरात से किया जाता है। कन्याकुमारी दक्षिण भारत का प्रमुख तीर्थस्थल है जोकि अपने आसपास के मनोहारी दृश्यों के लिए विश्वविख्यात भी है। 51 शक्तिपीठों में से एक कन्याकुमारी के बारे में पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि एक बार बाणासुर ने घोर तपस्या की।
देवी के एक हाथ में माला है एवं नाक और मुख के ऊपर बड़े-बड़े हीरे हैं। प्रात:काल चार बजे देवी को स्नान कराकर चंदन का लेप चढ़ाया जाता है। रात्रि की आरती बड़ी मनोहारी होती है। कन्याकुमारी दक्षिण भारत का प्रमुख तीर्थस्थल है जोकि अपने आसपास के मनोहारी दृश्यों के लिए विश्वविख्यात भी है। 51 शक्तिपीठों में से एक कन्याकुमारी के बारे में पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि एक बार बाणासुर ने घोर तपस्या की। शिव को उसने अपनी तपस्या के बल पर प्रसन्न कर लिया। शिवजी से उसने कहा कि आप मुझे अमरत्व का वरदान दीजिए। शिवजी ने कहा कि कन्याकुमारी के अतिरिक्त तुम सर्वत्र अजेय रहोगे। वरदान पाकर बाणासुर ने त्रैलोक्य में घोर उत्पात मचाना प्रारम्भ कर दिया। नर-देवता सभी उसके आतंक से त्रस्त हो गये। पीड़ित देवता भगवान श्रीविष्णु की शरण में गये। विष्णुजी ने उन्हें यज्ञ करने का आदेश दिया।
यज्ञ कुंड की ज्ञानमय अग्नि से भगवती दुर्गा अपने एक अंश कन्या के रूप में प्रगट हुईं। देवी ने प्रगट होने के बाद शंकर को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए समुद्र के तट पर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शंकरजी ने उनसे विवाह करना स्वीकार कर लिया। देवताओं को चिंता हुई कि यदि विवाह हुआ तो बाणासुर मरेगा नहीं। देवताओं की प्रार्थना पर देवर्षि नारद ने विवाह के लिए आते हुए भगवान शंकर को शुचीन्द्रम स्थान में इतनी देर रोक लिया कि विवाह का मुहूर्त ही टल गया। शिव वहीं स्थाणु रूप में स्थित हो गये। विवाह की समस्त सामग्री समुद्र में बहा दी गई। कहते हैं कि वे ही रेत के रूप में मिलते हैं। देवी ने विवाह के लिए फिर तपस्या प्रारम्भ कर दी। बाणासुर ने देवी के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनी। वह देवी के पास जाकर उनसे विवाह का हठ करने लगा। वहां देवी से उनका भयंकर युद्ध हुआ। बाणासुर मारा गया। कन्याकुमारी वही तीर्थ है।
यहां स्थित मंदिर के दक्षिणी परम्परा के अनुसार चार द्वार थे। वर्तमान समय में तीन दरवाजे हैं। एक दरवाजा समुद्र की ओर खुलता था। उसे बंद कर दिया गया है। कहा जाता है कि कन्याकुमारी की नाक में हीरे की जो सींक है उसकी रोशनी इतनी तेज थी कि दूर से आने वाले नाविक यह समझ कर कि यह कोई दीपक जल रहा है, तट के लिए इधर आते थे। किंतु रास्ते में शिलायें हैं जिनसे टकराकर नावें टूट जाती थीं। मंदिर के कई द्वारों के भीतर देवी कन्याकुमारी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह बड़ी भव्य देवी मूर्ति है। दर्शन करते समय आदमी अपने को साक्षात् देवी के सम्मुख नतमस्तक समझता है।
देवी के एक हाथ में माला है एवं नाक और मुख के ऊपर बड़े-बड़े हीरे हैं। प्रात:काल चार बजे देवी को स्नान कराकर चंदन का लेप चढ़ाया जाता है। तत्पश्चात् श्रृंगार किया जाता है। रात्रि की आरती बड़ी मनोहारी होती है। विशेष अवसरों पर देवी का श्रृंगार हीरे-जवाहरात से किया जाता है। इनकी पूजा-अर्चना केरल के नंबूदरी ब्राह्मण अपनी प्रथानुसार करते हैं। निज द्वार के उत्तर और अग्र द्वार के बीच में भद्र काली का मंदिर है। यह कुमारी की सखी मानी जाती हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। सती का पृष्ठ भाग यहां गिरा था। मुख्य मंदिर के सामने पापविनाशनम पुष्करिणी है। यह समुद्र तट पर ही एक ऐसी जगह है, जहां का जल मीठा है। इसे मंडूक तीर्थ कहते हैं। यहां लाल और काले रंग की बारीक रेत मिलती है जिसे यात्री प्रसाद मानते हैं। कन्याकुमारी नगर में एक और भव्य गणेश मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर है। चक्रतीर्थ है। आश्विन नवरात्र में यहां विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें श्रद्धालु बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

Mukta

Sub-Editor at India News, 7 years work experience in punjab kesari as a sub editor, I love my work and like to work honestly

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