India News (इंडिया न्यूज), Kokila Vrat 2024 Date: हर साल आषाढ़ महीने की पुण्यतिथि पर कोकिला व्रत रखा जाता है। यह व्रत देवों के देव महादेव और मां पार्वती को समर्पित किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना करने से सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य भी मिलता है। इस व्रत से अविवाहित महिलाओं को मनचाहा वर मिलता है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो कोकिला व्रत के पुण्य प्रताप से सुख समृद्धि और मनचाहा आशीर्वाद मिलता है। अब ऐसे में सवाल है कि इस साल कोकिला व्रत कब रखा जाएगा, तो इस आर्टिकल में हम आपको कोकिला व्रत की पूजा की डेट और इसका महत्व के बारे में विस्तार से बताएंगे।
- कब रखें कोकिला व्रत
- कोकिला व्रत की पूजा विधि
- कोकिला व्रत का महत्व
कब रखें कोकिला व्रत
बता दें कि भगवान शिव की पूजा आषाढ़ माह की पूर्णिमा को होगी। इसके लिए 20 जुलाई को यह व्रत रखा जाएगा। इस साल कोकिला व्रत 20 जुलाई को सुबह 5:36 से शुरू होगा और 6:31 में समाप्त होगा। इसके अलावा 21 जुलाई को सुबह 8:11 के बीच आप शिवजी की पूजा कर सकते हैं।
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कोकिला व्रत की पूजा विधि
इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में उठे और उठते ही सबसे पहले स्नान करें और भगवान शिव और मां पार्वती का ध्यान करें। घर की साफ सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें इसके बाद पानी में गंगाजल मिलकर समय से स्नान करें। फिर एक लोटे में जल लेकर सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके बाद पूजा घर में अपनी चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बेछाकर शिव परिवार की प्रतिमा करें।
इसके बाद भगवान शिव शंकर मां पार्वती की पूजा करें और शिव पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, सफेद फल अर्पित करें। पूजा के दौरान शिव चालीसा का पाठ करना ना भूले। और इसके साथ ही आखिर में आरती करें और अपनी मनोकामना शिव परिवार के सामने रखें। मनोकामना अनुसार दिन भर उपवास रखें और पूजा में संपन्न कर फलाहार करें।
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कोकिला व्रत का महत्व
यह व्रत विवाहित और कुंवारी महिलाएं रखती है। इस व्रत को अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही इस पूजा को करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। यह व्रत पापों से मुक्ति दिलाने के लिए भी रखा जाता है। कथाओं की मानें तो माता सती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए व्रत रखा था। इस व्रत को पतिव्रता का प्रतीक भी माना जाता है।
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