India News (इंडिया न्यूज), Last Words of Before Death: मृत्यु, जीवन का सबसे अंतिम और गूढ़ सत्य है, जो हर किसी को एक न एक दिन सामना करना ही पड़ता है। लेकिन इस अंतिम यात्रा से पहले, एक व्यक्ति के मुंह से जो अंतिम शब्द निकलते हैं, वे न केवल उसकी पूरी जिंदगी का सार होते हैं, बल्कि वे जीवन की गहरी और अनकही भावनाओं को भी उजागर करते हैं। इन अंतिम शब्दों में अफसोस, पछतावा, प्रेम, कृतज्ञता, और कभी-कभी जीवन की अनकही इच्छाएं पाई जाती हैं। डॉक्टर और नर्सों द्वारा किए गए खुलासे के बाद, यह जानना दिलचस्प हो गया है कि मृत्यु के करीब लोग क्या कहते हैं और उनका क्या भावनात्मक संदर्भ हो सकता है।
मृत्यु के समय व्यक्ति की भावनाओं और उसकी मानसिक स्थिति को अक्सर उसकी अंतिम शब्दों से समझा जा सकता है। लॉस एंजेलेस की एक अनुभवी हॉस्पिस नर्स, जूली मैकफैडन, जो पिछले 15 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि मरीजों के अंतिम शब्द आमतौर पर सरल और बहुत ही भावुक होते हैं, जो किसी फिल्मी दृश्य से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते। जूली का कहना है कि मृत्यु के समय अक्सर लोग अपने परिवार और प्रियजनों से कहना चाहते हैं, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं”, “मुझे माफ करना” या “धन्यवाद” जैसी भावनाएं व्यक्त करते हैं। यह शब्द आमतौर पर बहुत ही शांति और सुकून देने वाले होते हैं, जो न केवल मृतक के लिए बल्कि उनके आसपास के लोगों के लिए भी एक भावनात्मक सहारा बनते हैं। जूली ने बताया कि यह शब्द किसी नाटकीयता से नहीं आते, बल्कि सीधे दिल से निकलते हैं, और यह दर्शाते हैं कि अंतिम समय में भी इंसान अपने रिश्तों की अहमियत समझता है।
मृत्यु के करीब पहुंचते हुए कई लोग अपने जीवन की कुछ गलतियों और उपेक्षाओं पर पछताते हैं। वे कहते हैं कि “काश मैंने अपने स्वास्थ्य का ध्यान और अच्छे से रखा होता”, “काश मैंने अपने परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिताया होता” या “काश मैंने जीवन को और अधिक अच्छे से जिया होता।” ऐसे शब्द अक्सर उन लोगों से सुनने को मिलते हैं जो अब जीवन के आखिरी पड़ाव पर होते हैं और जो अब अपने गलतियों के बारे में सोचते हैं। जूली ने बताया कि कई बार महिलाएं अपने शरीर को लेकर पछतावा करती हैं। वे अपने जीवन के अंतिम समय में कहती हैं कि वे हमेशा वजन घटाने और शरीर की देखभाल के चक्कर में कई आनंददायक चीजों से वंचित रही हैं। उनका मानना था कि अगर वे थोड़ी और आनंदित होतीं, तो जीवन और अधिक संतुष्टिपूर्ण होता। ये पंक्तियां जीवन के महत्व को और रिश्तों की अहमियत को दर्शाती हैं।
एक और दिलचस्प बात जो जूली ने साझा की, वह यह थी कि कई बार मृत्यु के करीब पहुंचने वाले मरीज अपने प्रियजनों, जैसे माता-पिता या पहले गुज़र चुके दोस्तों या रिश्तेदारों का नाम पुकारते हैं। जूली का कहना है कि मरीज अक्सर अंतिम समय में “घर जाने” की बात करते हैं, जो शायद मृत्यु के बाद के किसी अन्य स्थान में जाने का प्रतीक हो सकता है। यह संकेत हो सकता है कि वे आत्मा की यात्रा के लिए तैयार हैं और अब वे उन लोगों से मिलना चाहते हैं जिनका निधन पहले हो चुका है। इसके अलावा, एक और दिलचस्प पहलू यह था कि कुछ मरीज मृत्यु के अंतिम क्षणों में अपनी मातृभाषा में बात करने लगते हैं, जो उन्होंने वर्षों से नहीं बोली होती। यह एक संकेत हो सकता है कि वे अपने अतीत और जड़ों की ओर लौट रहे हैं और इस समय के दौरान पुरानी यादों में खो रहे हैं। यह मानवीय मनोविज्ञान का एक दिलचस्प पहलू है, जिसमें मृत्यु के नजदीक आते हुए लोग अपने बचपन, परिवार और मातृभूमि से जुड़ी हुई यादों को फिर से जीने की कोशिश करते हैं।
डॉक्टर सिमरन मल्होत्रा, जो एक अनुभवी चिकित्सक हैं, ने भी इस बारे में अपने अनुभव साझा किए। उनका कहना था कि बुजुर्ग मरीजों के अंतिम शब्द आमतौर पर शांतिपूर्वक होते हैं, जैसे “मैं शांति में हूं” या “मैंने अच्छा जीवन जिया है”। ये शब्द उनके संतोष और शांति को दर्शाते हैं। वे मृत्यु को एक स्वाभाविक और शांतिपूर्ण प्रक्रिया के रूप में स्वीकार कर रहे होते हैं। वहीं, युवा मरीजों के शब्दों में अक्सर डर और न तैयार होने की भावना होती है। सिमरन मल्होत्रा ने उदाहरण देते हुए कहा कि युवा मरीज अक्सर कहते हैं, “मैं अभी मरने के लिए तैयार नहीं हूं”। यह दर्शाता है कि उनके पास और जीने की इच्छाएं होती हैं और वे जीवन को और अधिक जीने की चाहत रखते हैं।
जूली मैकफैडन ने अपने अनुभवों के बारे में एक बेहद भावनात्मक किस्सा भी साझा किया। एक बार, एक मरीज ने उनसे पूछा, “क्या मैं अपनी आँखें बंद करके भगवान को देखूंगा?” इस सवाल पर जूली और उस मरीज के बीच एक हल्की हंसी का आदान-प्रदान हुआ और फिर जूली ने कहा, “शायद ऐसा ही होगा।” यह क्षण न केवल दोनों के लिए बल्कि उस मरीज के लिए भी एक शांति का प्रतीक बन गया। एक अन्य अनुभव में, एक मरीज ने जूली का हाथ पकड़ते हुए कहा, “मैं मर रहा हूं, बेबी!” और फिर शांति से अपनी आखिरी सांस ली। यह क्षण बहुत भावनात्मक था और यह इस बात को दर्शाता है कि जीवन के अंत में भी एक गहरी शांति और प्यार महसूस किया जा सकता है।
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डॉक्टर और नर्सों का कहना है कि मृत्यु के समय व्यक्त की गई सच्ची भावनाएं हमें जीवन के असली मूल्य को समझाती हैं। मृत्यु के पास जाते हुए, लोग प्रेम, क्षमा, कृतज्ञता और रिश्तों के महत्व को महसूस करते हैं। यही वह समय होता है जब वे पछतावे और अफसोस के बजाय अपनी गलतियों को स्वीकार कर लेते हैं और अपने प्रियजनों से माफी मांगते हैं। यह हमें जीवन को पूरी तरह जीने और अपने रिश्तों को संजोने की सीख देता है। डॉक्टरों और नर्सों ने यह भी सलाह दी कि हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए, रिश्तों में प्यार और कृतज्ञता दिखानी चाहिए, और समय रहते अपने प्रियजनों से अपने भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए। अंतिम शब्दों से यह स्पष्ट होता है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीजें प्रेम, क्षमा और कृतज्ञता होती हैं।
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