India News (इंडिया न्यूज), Lies of Yudhishthira: पांडव पांच भाइ थे जिसमें से सबसे बड़े युधिष्ठिर थे जिनके बारे में ये कहा जाता था की वो कभी झुठ नही बोलते थे। इसलिए उन्हें सत्य, धर्म और न्याय का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता था। हालांकि ये तो हम सभी जानते हैं कि महाभारत युद्ध में उन्होंने एक बार झूठ बोला था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि युधिष्ठिर ने अपने जीवन में कई बार झूठ बोला। उन्होंने छल का भी सहारा लिया। एक बार तो वो न्याय के मार्ग से बुरी तरह भटक भी गए थे।
इस बारे में हम आपको आगे बताएंगे। महाभारत की कहानी में ही कई जगह पता चलता है कि कब युधिष्ठिर को झूठ बोलना पड़ा। उन्हें झूठ का सहारा लेना पड़ा और छल को ढाल बनाना पड़ा. इस बारे में हम आगे सबकुछ बताएंगे। लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि युधिष्ठिर का सबसे बड़ा झूठ क्या था। जिसने उनके गुरु की जान ले ली। और काफी हद तक ये झूठ द्रौपदी द्वारा उनके पांचों बेटों की हत्या की वजह भी बना।
युधिष्ठिर का सबसे बड़ा और सबसे चर्चित झूठ है “अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा”, जो महाभारत युद्ध के दौरान द्रोणाचार्य को हराने के लिए कहा गया था। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य एक अजेय योद्धा थे। उन्हें हराना असंभव था, क्योंकि वे तब तक हथियार नहीं डाल सकते थे, जब तक उन्हें अपने बेटे अश्वत्थामा की मृत्यु का यकीन न हो जाए। कृष्ण ने द्रोणाचार्य से झूठ बोलकर उन्हें उनके बेटे अश्वत्थामा की मृत्यु का संदेश भेजने की रणनीति बनाई। भीम ने एक हाथी को मारकर उसका नाम “अश्वत्थामा” रखा और कहा, “अश्वत्थामा मारा गया।”
जब द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को इस घटना के बारे में पता चला और उसे पता चला कि उसके पिता को युधिष्ठिर से झूठ बोलकर मारा गया है, तो वह क्रोध से पागल हो गया। उसने इसका बदला लेने की ठानी। इसी के चलते उसने रात के समय पांडवों के शिविर में घुसकर द्रौपदी के पांचों पुत्रों को मार डाला जो पांचों पांडवों की गलतफहमी के कारण लेटे हुए थे।
महाभारत की कथा बताती है कि इस झूठ के कारण युधिष्ठिर को कुछ समय के लिए नरक में जाना पड़ा था। हालांकि, यह कुछ समय के लिए ही था। फिर वे हमेशा के लिए स्वर्ग चले गए। लेकिन यह झूठ युधिष्ठिर के लिए हमेशा के लिए कलंक बन गया।
युधिष्ठिर ने दूसरा झूठ तब बोला जब सभी पांडव लाक्षागृह से भाग निकले। वे छिपकर रहने लगे। इसी बीच जब राजा द्रुपद ने द्रौपदी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। तब युधिष्ठिर ब्राह्मण का वेश धारण कर अपने भाइयों के साथ वहां पहुंचे। जब उनसे उनकी पहचान पूछी गई तो उन्होंने झूठ का सहारा लिया और अपनी और अपने भाइयों की पहचान छिपाई। फिर उन्होंने सभी को बताया कि वे ब्राह्मण हैं।
जब द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन जीत गए और वहां पहुंचे सभी राजा इस बात से नाराज हो गए। तब युधिष्ठिर ने पांडवों की असली पहचान बताने के बजाय सभी को बताया कि वे ब्राह्मण हैं।
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महाभारत के अज्ञातवास के दौरान जब युधिष्ठिर अपनी और अपने भाइयों की पहचान छिपाकर राजा विराट के दरबार में पहुंचे, तो उन्होंने खुद को ब्राह्मण और कंक नामक पासा खिलाड़ी के रूप में पेश किया। यह झूठ था लेकिन इसे रणनीतिक धोखा या छद्म कहा जा सकता है।
जब तक युधिष्ठिर कंक के रूप में राजा विराट की सेवा करते रहे, उन्होंने अपनी पहचान छिपाई और हर दिन अपने बारे में झूठ बोला। वे बताते रहे कि कैसे वे पिछले राजा के साथ काम करते समय उनके खेल और चतुराई की प्रशंसा करते थे। फिर उन्हें हर दिन राजा विराट से अपनी पहचान के बारे में झूठ बोलना पड़ा। हालांकि यह कहा जा सकता है कि उन्होंने ऐसा कोई झूठ नहीं बोला जिससे किसी को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचे या जो नैतिकता का बड़ा उल्लंघन हो।
जब युधिष्ठिर शकुनि के साथ पासा खेल रहे थे, तो वे खुद हार गए, लेकिन तब भी उन्होंने अपने भाइयों और फिर द्रौपदी को दांव पर लगा दिया। न्याय कहता है कि युधिष्ठिर ऐसा नहीं कर सकते थे। इसे युधिष्ठिर के न्याय पथ से विचलन भी कहा जाता है।
उन्होंने अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाकर नैतिकता का उल्लंघन किया। युधिष्ठिर ने नीतिगत दुविधाओं में कई मौकों पर सत्य और धर्म के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की। कहीं उन्होंने रणनीति के तहत सत्य को तोड़ा तो कहीं उसे ढाल की तरह इस्तेमाल किया। कई जगहों पर उन्होंने सत्य के साथ समझौता भी किया क्योंकि वह समय की मांग थी।
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