Life is a Farming, Sow the Right Seeds in it
सुधांशु जी महाराज
खेती बहुत नफे का सौदा माना जाता है, इसमें एक दाना बोने पर 100 गुना के लगभग मिलता है। ऐसी फसल कटती है, तो खुशी भी होती है। ठीक इसी प्रकार जीवन भी एक खेत है। हर मनुष्य इसमें हर क्षण तरह-तरह के बीज बोता और उसकी फसल काटकर सुखी-दु:खी होता रहता है। वास्तव में विचारों, भावों, कर्मों के द्वारा हम बीज ही तो बोते हैं। हाँ खेती के बीज बोते रहते हम दिखते हैं, लेकिन जीवन रूपी खेत में अंदर ही अंदर यह कार्य लगातार चलता रहता है। अपने द्वारा अपने से ही चलने वाला अनवरत अंतर्सम्वाद भी यही तो है। पर ध्यान रहे स्थूल बीज में संभव है, पाला मार जाय, सूखा पड़ जाय, पशु चर लें, तो फसल न काट पायें, लेकिन आंतरिक जीवन में किये गये हर बीजारोपण की फसल उगती है और कटती भी है।
इसके दुष्प्रभाव जटिल होते हैं। ध्यान रहे सही फसल बोयें, क्योंकि छल-कपट से जीवन जीने वाले के पास सुख के साधन तो रहते हैं, पर सुख बिल्कुल नहीं रहता। क्योंकि उनके कर्म बीज इन संसाधनों का सुख लेने नहीं देते। ऐसे व्यक्ति पर दुनिया का भरोसा हटता है। छली आदमी का तो खुद के प्रति भी भरोसा डिग जाता है। जैसे-जैसे हम बीज बोते हैं अपने मन, बुद्धि, भाव, विचार एवं शरीर के माध्यम से, तो इन कर्मों के सूक्ष्म भाव चित्त पर स्वत: स्थित होते जाते हैं और सुख-दु:ख के रूप में फल दिये बिना मिटते नहीं। भारतीय ट्टषि परम्परा में यही कर्मफल व्यवस्था तो मूल है, वास्तव में कर्म, भाव, विचार बीज जो जन्मों पूर्व भी बोये जा चुके हैं अथवा वर्तमान में बोये जा रहे हैं, वे सभी फल बनने से पहले नष्ट नहीं होते, लेकिन गुरु की कृपा, पुण्यकर्म द्वारा विशुद्ध मन से इसकी भरपाई के संकल्प द्वारा इसके वे भुनकर नष्ट होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
मूल तथ्य यह कि ह्यह्यजीवन के लिए जरूरत है पंच महाभूतझ्रपृथ्वी जल अग्नि हवा आकाश जिससे जीवन मिला, उनमें बिखराव न हो। यह तभी समभव है, जब हम सत भाव में जीते हैं। चूंकि आकाश तत्व कान से जुड़ा है, अत: जरूरत है श्रवण सात्विक हो। जल का सम्बन्ध जिह्लवा से है, इसलिए जिह्लवा भी संतुष्टिपूर्ण वचन से जुड़े, त्वचाझ्रवायु तत्व से जुड़ी, नाक का सम्बन्ध पृथ्वी से है। आंख अग्नि तत्व से जुड़ी है। अत: ये इंद्रिया निज स्वरूप में स्थित हों, तब संतुष्टि आयेगी। यह स्थिरता देने वाली शक्ति धृति है। धृति ही इंद्रियों में विवेक देकर आत्मतत्व को जगाती है।
धृति के कारण ही स्थित प्रज्ञता आती है। तब अपने अंत: में सद् बीज बोये जाते हैं। प्रश्न उठता है कि ये बीज प्रभावित किसको करते हैं, तो सूत्र है मृत्यु के बाद ह्यह्यसूर्य चक्षु: दक्षह्णह्ण अर्थात् आंखें सूर्य को, इसीप्रकार रुधिर जल को, प्राण वायु तत्व को, हड्डियां पृथ्वी को मिल जाती है, पर आत्मा इनसे अलग परमात्मा से मिल जाती है। आत्मा के साथ ही हमारे कर्म बीज के संस्कार चलते हैं। इस अवधारणा से जुड़कर ही हम सही बीज बो सकते हैं। यद्यपि जीवन की शुरूआत सूचना से होती है, पर इससे जुड़ी अनुभूतियां ही जीवन में गहराई तक कार्य करती हैं। जीवन की प्रगति में सहायक यही अनुभूतियां हैं। यही सुख-दु:ख देती हैं। पर जीवन का सद् अनुभूति स्तर तक उतरना तब ही सम्भ्व है, जब मिथ्या, क्रोध, लोभ अहंकार से पार हो जायें। क्योंकि नम्रता में ज्ञान, योग्यता एवं शक्ति जागती है। नम्रता छदमी न हो, तब पवित्र मन: वाले भोले लोगों का उदय होता है। आज तो धर्म में भी छद्म है। धर्म का प्रचार अधर्म के सहारे हो रहा है, जो दु:खद है। जनमानस दिग्भ्रति होने से बचे और सही कर्मबीज बो सके, तो जीवन धन्य बन सकता है, समाज में फिर 100 गुनी उन्नत सद्कीर्ति की फसल भी कटेगी।
Also Read : Clashes between soldiers and rebels in Yemen : 19 सैनिकों सहित 50 लोगों की मौत
India News (इंडिया न्यूज),Delhi: राजधानी दिल्ली के जल निकायों का प्रदूषण से दम घुट रहा…
Today Rashifal of 23 December 2024: 23 दिसंबर का दिन राशियों के लिए मिला-जुला रहेगा।
India News (इंडिया न्यूज),Bihar: पूर्णिया में आपसी लड़ाई के दौरान शराब के नशे में पिकअप…
India News (इंडिया न्यूज),Delhi: गणतंत्र दिवस परेड में राजधानी दिल्ली की झांकी शामिल न होने…
India News (इंडिया न्यूज),UP News: चमनगंज क्षेत्र के तकिया पार्क के पास स्थित 1 मंदिर…
India News (इंडिया न्यूज),JDU Leaders Flagged Off Chariot: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अब मात्र…