India News (इंडिया न्यूज़), Lord Parshuram: भगवान परशुराम, जो विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। वे धर्म, तपस्या, और ज्ञान के प्रतीक माने गए हैं और आज भी भारतीय संस्कृति में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। परशुराम का नाम उन सात चिरंजीवियों में शामिल है, जिन्हें अमर माना जाता है। ब्राह्मण समाज में परशुराम को गुरु, आचार्य, और वेदों के प्रतिनिधि के रूप में पूजा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि परशुराम का कुल और परिवार कौन था? आइए, जानते हैं भगवान परशुराम के परिवार, उनके कुल और उनके वंशजों के बारे में, और साथ ही गुरुग्राम में हुए उनके लीला मंचन के बारे में।
परशुराम का जन्म सप्तऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। वे ऋषि जमदग्नि के सबसे छोटे पुत्र थे। ऋषि जमदग्नि का कुल बेहद प्रतिष्ठित था। जमदग्नि के पिता ऋषि ऋचिका थे, जो प्रख्यात संत भृगु के पुत्र थे। ऋषि भृगु के पिता का नाम च्यावणा था। इस तरह से, परशुराम का परिवार एक समृद्ध और धर्मशील वंश से था।
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परशुराम के चार अन्य भाई भी थे – वासू, विस्वा वासू, ब्रिहुध्यनु, और बृत्वकन्व। परशुराम को उनके भाइयों में सबसे अधिक कुशल योद्धा माना जाता था, जो सभी प्रकार की युद्धकलाओं में निपुण थे। वे न केवल अपने परिवार के लिए बल्कि पूरे ब्राह्मण समाज के लिए एक आदर्श योद्धा और गुरु थे। परशुराम को भारद्वाज और कश्यप गोत्र के कुलगुरु के रूप में भी पूजा जाता है।
रविवार को गुरुग्राम में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और व्यापार प्रकोष्ठ भाजपा, हरियाणा के प्रदेश संयोजक नवीन गोयल की ओर से भगवान परशुराम जी की लीला का भव्य मंचन कराया गया। इस लीला में भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी गईं। कार्यक्रम के दौरान, भगवान परशुराम और उनके पिता जमदग्नि के बीच हुए भावुक संवाद का मंचन हुआ, जिसमें परशुराम द्वारा अपने पिता के वचन को निभाने का अद्वितीय प्रदर्शन देखने को मिला। इस मंचन ने दर्शकों के दिलों में भगवान परशुराम के प्रति आस्था और अधिक गहरी कर दी।
भगवान परशुराम का मुख्य अस्त्र उनका “परशु” (कुल्हाड़ी) था, जिसे उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या के बाद प्राप्त किया था। परशुराम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिसके फलस्वरूप उन्हें दिव्य अस्त्र और युद्धकला में निपुणता का वरदान मिला। उन्होंने “विजया” धनुष भी प्राप्त किया, जो भगवान शिव द्वारा प्रदान किया गया था। परशुराम को देवताओं के अद्वितीय और शक्तिशाली अस्त्र जैसे ब्रह्मांड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र, और पशुपत अस्त्र भी प्राप्त हुए थे, जो उन्हें दैत्य, राक्षस, और दानवों के विनाश के लिए शक्ति प्रदान करते थे।
इस कार्यक्रम में नवीन गोयल ने भगवान परशुराम के आदर्शों का अनुसरण करते हुए गुरुग्राम को एक आदर्श शहर बनाने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भगवान परशुराम ने अधर्म और अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया, उसी प्रकार वे भी गुरुग्राम को हर तरह से बेहतर बनाकर विकास का एक मॉडल बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने ब्राह्मण समाज से एकजुट होकर समाज सेवा का संकल्प लिया और आशीर्वाद मांगा कि वे समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलें।
ब्राह्मण समाज के वरिष्ठ नेताओं ने नवीन गोयल को पगड़ी पहनाकर आशीर्वाद दिया और उनके नेतृत्व की सराहना की। उन्होंने गुरुग्राम की जनता से नवीन गोयल को समर्थन देने का आह्वान किया और उनके प्रयासों को सफल बनाने का संकल्प लिया।
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भगवान परशुराम की लीला का मंचन गुरुग्राम में न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम था, बल्कि यह ब्राह्मण समाज और समस्त भारतीय समाज को उनके मूल्यों और आदर्शों की याद दिलाने का एक प्रयास भी था। भगवान परशुराम के जीवन से हमें सत्य, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है, और यह मंचन इस प्रेरणा को जन-जन तक पहुँचाने में सफल रहा। नवीन गोयल और ब्राह्मण समाज का यह प्रयास निश्चित रूप से आने वाले समय में गुरुग्राम के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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