धर्म

भारत का वो इकलौता राजा जो करता था हर 5 साल में अपनी संपत्ति दान, ऐसा क्या था प्रयागराज के कुंभ में उसके लिए खास?

India News(इंडिया न्यूज), Raja Harshvardhan: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेला, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, आज भी लाखों श्रद्धालुओं और साधु-संतों का आस्था का केंद्र बना हुआ है। त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में स्नान करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं, और इसी के साथ कल्पवास और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित होते हैं। कुंभ मेला न केवल मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति का अवसर माना जाता है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है, जिसकी जड़ें प्राचीन भारत में समाहित हैं।

कुंभ मेला, वेदों और पुराणों में वर्णित एक महान धार्मिक आयोजन है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका आयोजन एक समय में एक सम्राट द्वारा किया गया था? आइए जानते हैं कुंभ मेला की शुरुआत और इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में।

कुंभ मेला की शुरुआत: राजा हर्षवर्धन का योगदान

हालांकि वेद-पुराणों में कुंभ के आयोजन का उल्लेख मिलता है, लेकिन इसका मेले के रूप में आयोजन करने का श्रेय राजा हर्षवर्धन को दिया जाता है। राजा हर्षवर्धन (590-647 ईस्वी) प्राचीन भारत के एक महान सम्राट थे, जिन्होंने उत्तरी भारत के विशाल हिस्से पर शासन किया। वे कन्नौज के सम्राट थे और उन्हें भारतीय इतिहास का आखिरी महान सम्राट माना जाता है। हर्षवर्धन ने सम्राट बनने के बाद हर वर्ष कुंभ मेला आयोजित करने का निर्णय लिया।

इतिहासकारों के अनुसार, हर्षवर्धन ने कुंभ मेला को एक धार्मिक और सांस्कृतिक अवसर के रूप में आयोजित किया, जिसमें लोग धर्म, दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए एकत्र होते थे। हर्षवर्धन का मानना था कि कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह समाज के हर वर्ग को जोड़ने और उनके आत्मिक उन्नति के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।

राजा हर्षवर्धन के दानराजा हर्षवर्धन का जीवन पूरी तरह से दान और त्याग के आदर्श पर आधारित था। कहा जाता है कि वह कुंभ मेले में अपनी सारी संपत्ति दान कर देते थे। उनके दान की विशेषता यह थी कि वे पहले सूर्य, शिव और बुध की पूजा करते थे, फिर ब्राह्मणों, आचार्यों, दीन-दुखियों, बौद्ध भिक्षुओं और गरीबों को दान देते थे। यह भी उल्लेख मिलता है कि वह अपने राजकोष को पूरी तरह से खाली कर देते थे और अपनी राजसी वस्त्रों तक को दान कर देते थे। कुछ स्रोतों के अनुसार, वह अपनी संपत्ति को चार हिस्सों में बांटते थे—शाही परिवार, सेना/प्रशासन, धार्मिक निधि और गरीबों के लिए। इस प्रकार, हर्षवर्धन ने कुंभ मेला को एक तरह से विश्व कल्याण का एक बड़ा माध्यम बना दिया।

कुंभ मेला का सबसे पहला लिखित उल्लेख

कुंभ मेला का सबसे पहला लिखित उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों और इतिहास में मिलता है। वेदों और पुराणों में यह कहा गया है कि कुंभ का आयोजन उन स्थानों पर होता है, जहां सागर मंथन के दौरान अमृत कलश की बूंदें गिरी थीं। इसके अलावा, प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (Xuanzang) ने छठी शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया था और अपने यात्रा विवरण में कुंभ मेले का उल्लेख किया था। उन्होंने विशेष रूप से कन्नौज में आयोजित राजा हर्षवर्धन की भव्य सभा का उल्लेख किया, जिसमें हजारों भिक्षु और साधु शामिल होते थे।

ह्वेन त्सांग के अनुसार, राजा हर्षवर्धन के समय में हर पांच साल में “महामोक्ष हरिषद” नामक धार्मिक उत्सव का आयोजन होता था, जो कुंभ मेला के समान था। इस आयोजन में धर्म, साधना और मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग एकत्र होते थे और धार्मिक प्रवचन होते थे।

कुंभ मेला का ऐतिहासिक महत्व

कुंभ मेला, न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का भी प्रतीक है। यह मेला न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि यह पूरे विश्व के लिए एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां लाखों लोग एक साथ आकर अपनी आस्था और श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह आयोजन सामाजिक और धार्मिक एकता का प्रतीक है, जो समय के साथ अपनी महानता को बनाए रखे हुए है।

आज भी कुंभ मेला हर 12 साल में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है, और यह आयोजन भारत के प्रमुख धार्मिक उत्सवों में से एक माना जाता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास के संदर्भ में भी इसका एक बड़ा स्थान है।

कुंभ मेला, जिसे हम आज एक विशाल धार्मिक उत्सव के रूप में देखते हैं, की शुरुआत राजा हर्षवर्धन ने की थी। उनके द्वारा किए गए दान और त्याग ने इस आयोजन को न केवल धार्मिक रूप से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण बना दिया। राजा हर्षवर्धन का यह योगदान आज भी भारतीय समाज में जीवित है और हर साल लाखों लोग इस आयोजन में शामिल होकर अपनी आस्था का इज़हार करते हैं। यह आयोजन न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी है, जो हमें प्राचीन भारतीय समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ता है।

Prachi Jain

Recent Posts

PM Modi के दोस्त ने 4.5 कैरेट हीरे पर बनाया Donald Trump का चेहरा, कीमत जान दांतों तले दबा लेंगे उंगली

Donald Trump Diamond Face: गुजरात के एक हीरा व्यापारी ने एक अद्भुत हीरा तैयार किया…

4 minutes ago

वायरल होना मोनालिसा पर पड़ा भारी, मुंह पर मास्क और आंखों पर चश्मा लगाने को हुई मजबूर, गुस्से में तोड़ा मोबाइल

India News(इंडिया न्यूज)Viral Girl Monalisa: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में भव्य महाकुंभ मेला 2025 चल…

21 minutes ago

सट्टा कारोबारी जयपुर से अगवा, विधायक के रिश्तेदारों पर लगाए संगीन आरोप

 India News (इंडिया न्यूज),MP News: भिंड में सट्टे के कारोबार से जुड़ा एक मामला सामने …

25 minutes ago

टूट गया घमंड! अब इस खिलाड़ी की कप्तानी में खेलने को मजबूर हुए Rohit Sharma, माननी पड़ेगी हर बात

Rohit sharma: भारत के कप्तान रोहित शर्मा को जम्मू-कश्मीर के खिलाफ रणजी ट्रॉफी मैच के…

32 minutes ago

ढाई महीने की मासूम फांसी के फंदे से बच गई, बेटे और मां की जान गई, जानें पूरा मामला

India News (इंडिया न्यूज),Indore: पति की प्रताड़ना से तंग आकर 1 महिला ने अपने दोनो…

45 minutes ago