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Mahabharat Parshuram ki Kahani : महाभारत में भगवान परशुराम के तीनों शिष्यों को कराना पड़ा था निहत्था

Mahabharat Parshuram ki Kahani : भगवान परशुराम (Bhagwan Parshuram) विष्णु के ऐसे अवतार थे जिन्होंने जन्म लेने के बाद भगवान विष्णु के बाद वाले अवतारों के समय भी योगदान दिया। परशुराम भगवान (Bhagwan Parshuram) विष्णु के छठे अवतार थे, जबकि श्रीकृष्ण आठवें किंतु उस समय भी भगवान परशुराम ने अपना योगदान दिया। आप त्रेता युग में माता सीता के स्वयंवर में भगवान परशुराम की भूमिका तो जानते ही होंगे लेकिन उससे भी बड़ी भूमिका उन्होंने महाभारत के युद्ध के समय निभाई थी।

महाभारत (Mahabharat) के युद्ध में उनके तीन ऐसे महान शिष्य थे जिनकी उस भीषण युद्ध में निर्णायक भूमिका रही। आप इसका अनुमान केवल इसी बात से लगा सकते हैं कि 18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 17 दिनों तक कौरवों की सेना का संचालन भगवान परशुराम के शिष्यों द्वारा ही किया गया था और स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को तीनों को निहत्था कराकर मरवाना पड़ा था।

 

आज हम भगवान परशुराम के महाभारत (Mahabharat) काल में योगदान तथा उनके शिष्यों के बारे में जानेंगे। भगवान परशुराम की महाभारत में भूमिका महाभारत काल में भगवान परशुराम के तीन महान शिष्य हुए जिन्हें उन्होंने स्वयं अस्त्र-शस्त्र की विद्या दी। आइये उन तीनों के बारे में जानते हैं:

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भीष्म पितामह और भगवान परशुराम (Mahabharat Parshuram ki Kahani)

महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह को कौन नहीं जानता। उनके पराक्रम के कारण संपूर्ण पांडव सेना दहल उठी थी। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को उनका वध करवाने के लिए शिखंडी का सहारा लेना पड़ा था। भीष्म इतने ज्यादा पराक्रमी थे कि उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर अस्त्र उठाने पर विवश कर दिया था।

चूँकि परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही शिक्षा देते थे लेकिन भीष्म माँ गंगा के पुत्र थे। इसलिये उन्होंने भीष्म को संपूर्ण विद्या में पारंगत किया। एक बार परशुराम का अपने ही शिष्य भीष्म से भी युद्ध हुआ था लेकिन इसमें कोई भी परास्त नही हो सका था। यह युद्ध काशी की राजकुमारी अंबा को न्याय दिलवाने के लिए लड़ा गया था। चूँकि परशुराम स्वयं भगवान थे तथा भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था, इसलिये अंत में देवताओं के द्वारा दोनों के बीच युद्ध को समाप्त करवाया गया था।

गुरु द्रोणाचार्य और भगवान परशुराम (Mahabharat Parshuram ki Kahani)

स्वयं पांडवों तथा कौरवों को अस्त्र-शस्त्र की विद्या प्रदान करने वाले वाले गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा भी भगवान परशुराम के द्वारा हुई थी। उन्होंने ही गुरु द्रोण को संपूर्ण अस्त्र-शस्त्रों को चलाने वाले मंत्रों का ज्ञान दिया था। इसके पश्चात ही गुरु द्रोणाचार्य ने पांचों पांडवों और सौ कौरवों को शिक्षा प्रदान की थी। स्वयं गुरु द्रोणाचार्य का भी कुरुक्षेत्र की भूमि में वध करना असंभव था। इसके लिए श्रीकृष्ण से छल से उनके पुत्र अश्वथामा की मृत्यु का षडयंत्र रचा और उसी के बाद गुरु द्रोणाचार्य का वध हो सका था।

कर्ण और भगवान परशुराम (Mahabharat Parshuram ki Kahani)

कर्ण कुंती का पुत्र और एक क्षत्रिय था, लेकिन विपरीत परिस्थितियों के कारण कुंती ने जन्म के समय ही उसका त्याग कर दिया था। इस कारण उसका पालन-पोषण एक सूत के घर हुआ था। कर्ण के अंदर भी अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त करके विश्व का महान योद्धा बनने की चाह थी। इसके लिए उसने कई गुरुओं से याचना की, लेकिन सूत पुत्र होने के कारण उसे नकार दिया गया।

अंत में वह भगवान परशुराम के पास गया और असत्य कहा कि वह एक ब्राह्मण है। कर्ण ने ब्राह्मण वेशभूषा धारण की तथा भगवान परशुराम से शिक्षा प्राप्त की। एक दिन जब भगवान परशुराम को कर्ण के क्षत्रिय होने का ज्ञान हुआ तब उन्होंने उसे श्राप दिया कि जब उसे अपनी विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी तब वह उसे भूल जायेगा। यहीं श्राप महाभारत के युद्ध में उसकी मृत्यु का कारण बना था।

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Sunita

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