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महाभारत में रोज़ बनता था लाखों सैनिकों का खाना, बिना एक तिनका बर्बाद किए! आखिर कैसे होता था ये चमत्कार, राज़ जानकर चौंक जाओगे!

Mahabharat Story: महाभारत भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथों में से एक है। महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। यह युद्ध कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चला था।

BY: Preeti Pandey • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज),Mahabharat Story: महाभारत भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथों में से एक है। महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। यह युद्ध कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चला था। अलग-अलग राज्यों के राजा अपनी इच्छा के अनुसार पांडवों या कौरवों के पक्ष में शामिल हुए थे। अब सवाल यह उठता है कि इतने सारे सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था कैसे की गई। क्योंकि युद्ध के बाद हर दिन सैनिकों की संख्या कम होती जा रही थी, तो उस दौरान इन सभी बातों का ध्यान कैसे रखा जाता था ताकि भोजन बर्बाद न हो और सभी को मिल जाए। आइए जानते हैं इस तथ्य के बारे में।

उडुपी राजा का निर्णय

यह पांडवों और कौरवों के बीच एक बहुत बड़ा युद्ध था, जिसमें सैकड़ों राजा दोनों पक्षों में शामिल हुए थे। लेकिन उडुपी के राजा ने किसी का पक्ष नहीं लिया। इसके बजाय उन्होंने दोनों पक्षों के सैनिकों को भोजन कराने की जिम्मेदारी ली। यह युद्ध धर्म के अनुसार लड़ा गया था और हर दिन की लड़ाई के बाद दोनों पक्षों के सैनिक एक साथ बैठकर भोजन करते थे। उडुपी राजा की अद्भुत बुद्धि

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Mahabharat Story: महाभारत में रोज़ बनता था लाखों सैनिकों का खाना

प्रतिदिन भोजन के समय, श्री कृष्ण युधिष्ठिर के बगल में बैठते थे और उडुपी राजा उन्हें स्वयं भोजन परोसते थे। सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि उडुपी राजा केवल उतना ही भोजन पकाते थे, जितने सैनिक बच जाते थे, कभी अधिक नहीं, कभी कम नहीं। पांडव इस बात से चकित थे कि उन्हें कैसे पता था कि प्रत्येक दिन कितने सैनिक बचेंगे।

जब पांडवों ने रसोइयों से पूछा कि क्या कभी कोई भोजन बच जाता है या कभी भोजन की कमी होती है, तो रसोइयों ने उन्हें बताया कि उडुपी के राजा को पहले से पता होता है कि कितने सैनिक बचेंगे और वे उसी के अनुसार भोजन पकाते हैं।

राजा का रहस्य

जब पांडवों ने उडुपी के राजा से इसके पीछे का रहस्य पूछा, तो उन्होंने उन्हें बताया कि वे प्रतिदिन श्री कृष्ण को उबली हुई मूंगफली खिलाते थे और ध्यान से देखते थे कि श्री कृष्ण कितनी मूंगफली खाते हैं। इससे वे अगले दिन मरने वाले सैनिकों की संख्या का अनुमान लगाते थे। उदाहरण के लिए, यदि श्री कृष्ण 10 मूंगफली खाते हैं, तो अगले दिन 10,000 सैनिक मरेंगे। श्री कृष्ण जितनी मूंगफली खाते, अगली सुबह मरने वाले सैनिकों की संख्या तय होती थी। उसी के अनुसार भोजन की मात्रा तय होती थी और भोजन कभी कम या ज्यादा नहीं होता था।

कृष्ण की इच्छा और हमारा भ्रम

यह जानकर पांडवों ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की और समझ गए कि असली युद्ध तो श्री कृष्ण की इच्छा के अनुसार हो रहा है, हम तो केवल दिखावा कर रहे हैं।

कहानी से सीख

इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि दुनिया में सब कुछ श्री कृष्ण की योजना के अनुसार ही होता है। उनकी अनुमति के बिना एक तिनका भी नहीं हिल सकता। हम चाहे जितना भी सोचें कि हम सब कुछ नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन असली नियंत्रण तो भगवान के हाथ में है।

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