धर्म

महाभारत काल में मछुआरे की बेटी पर मोहित हो गए थे ये ऋषि, दिन में कर दिया ऐसा काम…फिर भी कुंवारी रही ये कन्या

India News (इंडिया न्यूज), Facts Of Mahabharat: महाभारत, विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य, न केवल धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई का वर्णन करता है, बल्कि इसके प्रत्येक पात्र और घटनाएँ गहरी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती हैं। ऐसी ही एक अद्भुत कथा ऋषि पराशर और मत्स्यगंधा (सत्यवती) से जुड़ी हुई है, जो महाभारत के जन्म का आधार है। यह कथा न केवल अद्वितीय है, बल्कि अपने समय की समाज व्यवस्था और प्राकृतिक विज्ञान को समझने का एक माध्यम भी है। आइए, इस कथा को विस्तार से जानें।

मत्स्यगंधा की सुंदरता और ऋषि पराशर का मोह

ऋषि पराशर, जो अपने तप और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे, एक बार तीर्थयात्रा पर निकले। यात्रा करते हुए वे यमुना के तट पर पहुंचे और वहाँ नदी पार करने के लिए एक मछुआरे से सहायता मांगी। मछुआरे ने अपनी पुत्री, मत्स्यगंधा, को नाव चलाकर ऋषि को नदी पार कराने के लिए कहा।

जैसे ही मत्स्यगंधा ने नाव में ऋषि को बिठाया और नदी पार कराना शुरू किया, ऋषि पराशर उसकी अनुपम सुंदरता पर मुग्ध हो गए। मत्स्यगंधा, जो मछुआरे की पुत्री थी, उसके शरीर से मछली की गंध आती थी। उसने ऋषि की आकांक्षा को समझा और विनम्रता से कहा, “हे मुनि! मेरे शरीर से तो मछली की दुर्गंध आती है। यह आपके मन में कामना कैसे उत्पन्न कर सकती है?”

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पराशर मुनि का वरदान

ऋषि पराशर, जो अपने तपोबल और दिव्य शक्तियों के लिए विख्यात थे, उन्होंने मत्स्यगंधा के शरीर से मछली की गंध को समाप्त कर दिया और उसे कस्तूरी की सुगंध से भर दिया। इसके साथ ही उन्होंने उसका नाम बदलकर “सत्यवती” रखा। सत्यवती ने ऋषि को याद दिलाया कि यह दिन का समय है, और इस प्रकार का कार्य उचित नहीं होगा। तब पराशर मुनि ने अपने योगबल से चारों ओर कोहरा उत्पन्न कर दिया, जिससे दिन में ही अंधकार छा गया।

जब सत्यवती ने अपनी कुंवारी होने की चिंता व्यक्त की, तो पराशर मुनि ने उसे आश्वासन दिया, “प्रिय! मेरे इस कार्य के बावजूद तुम कुंवारी ही बनी रहोगी। तुम्हारा कोमार्य भंग नहीं होगा।” इस वरदान के साथ पराशर मुनि ने अपनी इच्छापूर्ति की और फिर वहाँ से चले गए।

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महर्षि वेद व्यास का जन्म

सत्यवती ने यमुना के बीच स्थित एक छोटे द्वीप पर एक पुत्र को जन्म दिया। यह पुत्र जन्म से ही काला था, इसलिए उसका नाम ‘कृष्ण’ रखा गया। द्वीप पर जन्म लेने के कारण वह ‘कृष्ण द्वैपायन’ कहलाया। यह बालक आगे चलकर महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वेद व्यास ने वेदों का संकलन और विस्तार किया, जिससे उनका नाम ‘वेद व्यास’ पड़ा। यही वेद व्यास महाभारत के रचयिता भी बने।

सत्यवती और राजा शांतनु

अपने पुत्र को जन्म देने के बाद सत्यवती ने सामान्य जीवन जीने का निर्णय लिया। उसकी कस्तूरी जैसी सुगंध और अनुपम सौंदर्य ने राजा शांतनु को मोहित कर लिया। सत्यवती के साथ विवाह करने के लिए राजा शांतनु ने अपने बड़े पुत्र भीष्म को राजगद्दी और विवाह का त्याग करने की प्रेरणा दी, जिसके परिणामस्वरूप भीष्म ने ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ ली।

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महाभारत की उत्पत्ति का वैज्ञानिक और सांस्कृतिक पहलू

यह कथा न केवल एक पारिवारिक गाथा है, बल्कि इसमें गहरी वैज्ञानिक और सांस्कृतिक समझ भी है। पराशर मुनि द्वारा दिन में रात का निर्माण और सत्यवती को उनकी इच्छाओं से सुरक्षित रखने का वचन यह दर्शाता है कि उस समय के ऋषि अपनी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक शक्तियों का सही उपयोग करते थे। सत्यवती का पुनः कुंवारी बन जाना उस युग की समाज व्यवस्था और ऋषि परंपरा को भी उजागर करता है।

ऋषि पराशर और सत्यवती की कथा महाभारत के जन्म की आधारशिला है। यह कथा यह दर्शाती है कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी जटिल क्यों न हों, उन्हें समझदारी और धैर्य से संभालना चाहिए। महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत केवल एक महाकाव्य नहीं, बल्कि एक जीवन मार्गदर्शिका है, जो धर्म, सत्य और कर्तव्य का संदेश देती है।

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Prachi Jain

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