धर्म

कौन था वो महान योद्धा जिसके सिर ने पहले ही देख लिया था महाभारत का युद्ध?

India News(इंडिया न्यूज), Mahabharat Barbaric: बहुत समय पहले की बात है, जब महाभारत का युद्ध धधक रहा था और धरती पर धर्म और अधर्म के बीच एक महान संघर्ष जारी था। इस युद्ध में हर एक योद्धा की वीरता और पराक्रम की कहानियाँ लोगों की जुबां पर थीं, लेकिन एक ऐसा योद्धा भी था, जिसकी ताकत और युद्ध कौशल को पूरी तरह से समझ पाना असंभव था। वह योद्धा थे बर्बरीक, जो भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र थे।

बर्बरीक की मां अहिलावती ने उन्हें हमेशा कमजोर और जरूरतमंद की मदद करने की शिक्षा दी थी। उन्होंने युद्ध के कला में अपनी शिक्षा प्राप्त की थी और देवी से तीन दिव्य बाण प्राप्त किए थे। ये बाण इतने शक्तिशाली थे कि लक्ष्य को भेदने के बाद वे स्वंय बर्बरीक के पास वापस आ जाते थे, जिससे एक ही वार में लाखों सैनिकों को संहार किया जा सकता था। बर्बरीक ने ये बाण ऐसे ही नहीं प्राप्त किए थे; उन्होंने लंबे समय तक तपस्या की थी और कठिन साधना के द्वारा देवी को प्रसन्न किया था।

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बर्बरीक ने किया ये दृणनिश्चय?

जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ, बर्बरीक ने भी उस महाक्रांति में भाग लेने का निश्चय किया। वे युद्ध क्षेत्र की ओर बढ़े, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया। श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक से भिक्षा में उनका सिर मांग लिया। बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को पहचाना और उनकी सच्चाई जानने के लिए उन्हें असली रूप में आने को कहा।

श्रीकृष्ण ने तत्काल अपना असली रूप प्रकट किया और बर्बरीक ने सम्मानपूर्वक अपनी तलवार से अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया। इससे पहले कि बर्बरीक का सिर धरती पर गिरता, उन्होंने श्रीकृष्ण से एक विशेष अनुरोध किया – वे महाभारत का युद्ध देखना चाहते थे।

श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए बर्बरीक के सिर को एक ऊंचे टीले पर टांग दिया। वहां से बर्बरीक ने पूरे युद्ध का दृश्य देखा और युद्ध की रणनीतियों, घटनाओं और परिणामों को समझा। उनका सिर युद्ध के सभी उतार-चढ़ाव देखता रहा, और वे जान गए कि कौरवों की हार निश्चित है।

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इस योद्धा के सिर ने देखा था पूरा युद्ध

युद्ध के बाद, बर्बरीक का सिर नदी में गिर गया और धीरे-धीरे मिट्टी में दब गया। लेकिन बर्बरीक की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। कलयुग में, राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नामक स्थान पर बर्बरीक का सिर फिर से प्रकट हुआ। लोग इसे भगवान खाटू श्यामजी के रूप में पूजा करने लगे, और आज भी उनकी पूजा बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है।

इस प्रकार, बर्बरीक की कहानी हमें सिखाती है कि महान शक्तियाँ और सामर्थ्य केवल शक्ति के उपयोग के लिए नहीं होतीं, बल्कि सही समय और सही जगह पर उनका उपयोग करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। बर्बरीक की तपस्या, बलिदान, और भक्ति की कहानी एक प्रेरणा है कि किसी भी कठिन समय में अपनी सच्ची धर्म और कर्तव्य को पहचानना और निभाना सबसे महत्वपूर्ण है।

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Prachi Jain

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